Crop Cultivation (फसल की खेती)

पौधों के लिए पोषक तत्व और कमी के लक्षण

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  • डॉ. सच्चिदानन्द मिश्र
  • डॉ. सी.एल. गौर , डॉ. पवन कुमार पारा , डॉ. देवेश कुमार पाण्डेय
    कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी संकाय
    मानसरोवर ग्लोबल विश्वविद्यालय, भोपाल

27 जुलाई 2022,  पौधों के लिए पोषक तत्व और कमी के लक्षण पौधों के सामान्य विकास एवं वृद्धि हेतु कुल 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें से किसी एक पोषक तत्व की कमी होने पर पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और भरपूर फसल नहीं मिलती कार्बन, हाइड्रोजन व आक्सीजन को पौधे हवा एवं जल से प्राप्त करते है। नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटैशियम को पौधे मिट्टी से प्राप्त करते हैं।

कोई भी पौधा अपना जीवन चक्र बिना पोषक तत्वों के पूर्ण नहीं कर सकता क्योंकि सभी पौधों को बढ़वार और विकास के लिये कम से कम सोलह तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें से कार्बन, हाइड्रोजन और आक्सीजन पानी तथा हवा से प्राप्त होते हंै। अन्य 13 तत्व भूमि, उर्वरक तथा खादों से मिलते हंै। ये पोषक तत्व मुख्य रूप से तीन भागों में बांटे जाते हैं। पौधों के प्रमुख तत्व पौधों के प्रमुख तत्व में वे तत्व आते हैं जिनको अधिक मात्रा में पौधे ग्रहण करते हैं। जैसे- नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटैशियम।

पौधों के गौण तत्व

पौधों के प्रमुख तत्व में वे तत्व आते हैं जिनको गौण मात्रा में पौधे ग्रहण करते हैं। जैसे- गंधक, कैल्शियम एवं मैग्नीशियम।

पौधों के सूक्ष्म तत्व

पौधों के प्रमुख तत्व में वे तत्व आते हैं जिनको सूक्ष्म मात्रा में पौधे ग्रहण करते हैं। जैसे – बोरोन, आयरन, मैंगनीज, कापर, जिंक, मोलिब्डेनम एवं क्लोरीन। पौधे का 94 प्रतिशत भाग कार्बन, हाइड्रोजन और आक्सीजन से मिलकर बनता है, शेष 6 प्रतिशत अन्य सभी तत्वों से। सभी पोषक तत्व सभी फसलों के लिये आवश्यक होते हैं। हालांकि विभिन्न फसलों में उनकी मात्रा अलग-अलग होती है। उदाहरण के लिये धान की एक अच्छी फसल 200 कि.ग्रा. प्रति हे. नाइट्रोजन ग्रहण करती है लेकिन वह केवल 250 ग्राम जिंक या 20 ग्राम मोलिब्डेनम (यानि नाइट्रोजन का दस हजारवां भाग) ही ग्रहण करेगी। फिर भी सभी तत्व समान रूप से आवश्यक होंगे। यदि फसल को थोड़ी मात्रा की आवश्यकता वाले ये सूक्ष्म तत्व न मिलें तो वह फसल बड़ी मात्रा में दिये गये एनपीके का पूरा उपयोग नहीं कर पायेगी।

पौधों में पोषक तत्वों के मुख्य कार्य और कमी के लक्षण

प्रत्येक पोषक तत्व को पौधे के अन्दर कुछ विशेष कार्य करने होते हैं। एक पोषक तत्व दूसरे का कार्य नहीं कर सकता। किसी एक तत्व की सान्द्रता जब निश्चित क्रान्तिक स्तर से नीचे आ जाती है तो पौधे में उस तत्व की कमी हो जाती है। इससे पौधे की जीवन क्रिया में बाधा पड़ती है तथा उसके विभिन्न अंगों (खासकर पत्तियों) पर तत्व विशेष की कमी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। कुछ 9 ऐसे तत्वों के बारे में भी जानकारी प्रदान की गई है जो कि वर्तमान भारतीय कृषि में खास महत्व रखते हैं। पौधों की बढ़वार एवं विकास के लिए कम से कम 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें से कार्बन, हाइड्रोजन एवं आक्सीजन तीन तत्व हवा एवं पानी से तथा अन्य 13 सत्य भूमि, उर्वरक तथा खादों से मिलते हैं। जिनमें से 3 प्रमुख तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश हैं तथा 3 गौण तथ्य गंधक, कैल्शियम, मैग्नीशियम हैं और शेष 7 सूक्ष्म तत्व बोरान, लोहा, मैग्नीज, तांबा, जस्ता, मालिब्डेनम तथा क्लोरीन पौधों के सूक्ष्म पोषक तत्व हैं

बोरान

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मुख्य कार्य: पौधों के नये अंगों के निर्माण, जटिल रसायनिक प्रक्रियाओं एवं कोशिका विभाजन में सहायक, पोटेशियम तथा कैल्शियम के अनुपात को नियंत्रित करना, शर्करा, न्यूक्लिक अम्ल तथा हार्मोन्स के निर्माण में सहायक दलहनी फसलों की जड़ ग्रंथियों में सहयोग।

कमी के लक्षण
  • ऊपर की कलिकाओं तथा नई पत्तियों में प्रकट होते हैं।
  • बढ़वार रूक जाती है।
  • पत्तियां मोटी हो जाती हैं।
  • फूल, कलियां आदि गिरने लगती हैं।
  • नई वृद्धि सूख जाती है।
  • फल एवं बीज पूरी तरह नहीं बन पाते हैं।
  • जड़ वाली फसलों में ब्राउन हार्ट रोग हो जाता है।

उर्वरक: बोरान की पूर्ति के लिए बोरेक्स, सोल्यूवर एवं सुहागा द्वारा पूर्ति होती है।

लोहा

मुख्य कार्य : हरे पदार्थ के निर्माण में सहायक है। शर्करा एवं प्रोटीन संश्लेषण में सहयोगी। कुछ एंजाइम का वाहक है और पौधों की श्वसन क्रिया में सहयोग करता है।
कमी के लक्षण : लोहे की कमी से पत्तियां लाल रंग की हो जाती हैं। नई पत्तियों की शिराओं के बीच से हरा रंग गायब होने लगता है। धान की नर्सरी में पीलापन आ जाता है।
उर्वरक: फेरस सल्फेट, आयरन चिलेटेड।

मैग्नीज

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मुख्य कार्य : मैग्नीज पौधों में नाइट्रोजन एवं लोहे की जैविक क्रियाओं को प्रभावित करता है तथा पौधों में एस्कार्दिक ऐसिड के शोषण में उत्प्रेरक का कार्य करता है।
कमी के लक्षण: इसकी कमी के लक्षण सबसे पहले पौधों की नई पत्तियों पर प्रकट होता है। पत्तियों का रंग पीला धूसर या लाल धूसर हो जाता है तथा शिराएं हरी होती हैं। पत्तियों का किनारा और शिराओं का मध्य भाग हरितिमाहीन हो जाता है और पत्तियां अपने सामान्य आकार में ही रहती हैं।
उर्वरक: इसकी पूर्ति के लिए सर्वाधिक उपयुक्त उर्वरक मैग्नीज सल्फेट है।

तांबा

मुख्य कार्य : तांबा एंजाइम में इलेक्ट्रान करियर का काम करता है। ये एंजाइम पौधों में ऑक्सीडेशन और रिडेवरान क्रिया में सहयोगी होते हैं। इसी क्रिया के द्वारा पौधों का विकास एवं प्रजनन होता है।
कमी के लक्षण : नई पत्तियां एक साथ गहरी पीले रंग की हो जाती हंै तथा सूखकर गिरने लगती हैं। खाद्यान्न बाली फसलों में गुच्छों में वृद्धि होती है तथा शीर्ष में दाने नहीं होते है।
उर्वरक: कॉपर सल्फेट अर्थात् तूतिया या नीला थोथा।

जस्ता (जिंक)

मुख्य कार्य : जिंक पौधों में एंजाइम क्रियाओं को उत्तेजित की वृद्धि करता है तथा नाइट्रोजन एवं फास्फोरस के उपयोग में सहायक होता है।
कमी के लक्षण : पत्तियों पर सफेद अथवा पीले रंग की धारियां जो बाद में भूरे रंग अथवा कांसा के रंग में परिवर्तित हो जाती हंै, पौधों की बढ़वार रूक जाती है, बालियां देर से निकलती हैं।
उर्वरक: जिंक सल्फेट, चिलेटेड जिंक, कार्बनिक खादें आदि। जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेटेड और हेप्टा हाइड्रेटेड दोनों रूप में आता है।

मालिब्डेनम

मुख्य कार्य : दलहनी फसलों की जड़ों में नाइट्रोजन संग्रह करने वाले जीवाणुओं के कार्य में सहयोगी होता है, अमीनो एसिड तथा प्रोटीन निर्माण की समस्त क्रियाएं शिथिल हो जाती हैं। पौधों की रोगरोधी क्षमता कम होने लगती है।
कमी के लक्षण : नई पत्तियां सूख जाती हैं, हल्के हरे रंग की हो जाती हंै मध्य शिराओं को छोडक़र पूरी पत्तियों पर सूखे धब्बे दिखाई देते हैं। नाइट्रोजन के उचित ढंग से उपयोग न होने कारण पुरानी पत्तियां हरितिमाहीन होने लगती हैं।
उर्वरक: अमोनियम मालिब्डेट में 52 प्रतिशत मालिब्डेनम होता है तथा नाइट्रोजन रहता है।

क्लोरीन

मुख्य कार्य : पौधों की वृद्धि में सहयोगी होता है, पौधों की लाल, नीले, बंैगनी रंगों को पैदा करने में सहयोगी होता है। इसकी उपस्थिति से फसलें शीघ्र पकती हैं, मैग्नीशियम का अवशोषण बढ़ाता है।
कमी के लक्षण: क्लोरीन की अनुपस्थिति से पौधों के ऊतकों में पानी तथा क्लोरीन का सम्बंध बिगड़ जाता है। जिससे ऊतक सूखने लगते हैं और इसकी कमी से फसलें देर से पकती हैं।
उर्वरक: क्लोरीन की पूर्ति कार्बनिक खादों, पानी आदि से हो जाती है।

ध्यान देने योग्य बातें

सभी खनिज पोषक तत्व भूमि में उपस्थित होते हैं। फसलों द्वारा निरंतर पोषक तत्वों का उपयोग, भूक्षरण (भूमि का कटाव), रिसाव आदि के कारण धीरे-धीरे भूमि में एक या अधिक तत्व की कमी हो जाती है। इस कमी का अर्थ है भूमि के अपने भंडार से फसल के लिये उस तत्व की आवश्यक मात्रा में आपूर्ति करने की क्षमता न रहना। जब अधिक उपज और सघन खेती के कारण फसल की पोषक तत्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है तो यह कमी और भी व्यापक और तीव्र हो जाती है। तब किसान को उर्वरकों और खादों से पोषक तत्वों की आपूर्ति करनी होती है। ऐसा करने से किसान अपनी भूमि की शक्ति बढ़ाता है, ठीक उसी तरह जैसे कि बैंक खाते में धन जमा किया जाता है ताकि जरूरत पडऩे पर निकाला जा सके। उर्वरकों को उस धन की तरह देखा जा सकता है जिनसे एक या अधिक पोषक तत्व भूमि के बैंक में जमा किये जाते हैं, जिन्हें किसान की फसल आवश्यकतानुसार निकालती रहती हैं।

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