नाडेप कम्पोस्ट खाद बनाने की विधि
14 अक्टूबर 2022, भोपाल: नाडेपकम्पोस्ट खाद बनानेकी विधि – कम्पोस्ट बनाने का एक नया विकसित तरीका नाडेप विधि है, जिसे महाराष्ट्र के कृषक नारायण राव पान्डरी पांडे (नाडेप टांका) ने विकसित किया है। नाडेप विधि में कम्पोस्ट खाद जमीन की सतह का टांका बनाकर उसमें प्रक्षेत्र अवशेष तथा बराबर मात्रा में खेत की मिट्टी तथा गोबर को मिलाकर बनाया जाता है इस विधि से 01 किलो गोबर से 30 किलो खाद चार माह में बनकर तैयार की जाती है नाडेप कम्पोस्ट निम्न प्रक्रिया द्वारा तैयार किया जाता है।
टांका बनाना
नाडेप कम्पोस्ट का टांका उस स्थान पर बनाया जाए जहां भूमि समतल हो तथा जल भराव की समस्या न हो। टांका के निर्माण हेतु आन्तरिक माप 10 फीट लम्बी, 6 फीट चौड़ी और 3 फीट गहरी रखनी चाहिए। इस प्रकार टांका की दीवार 9 इंच चौड़ी रखनी चाहिए। दीवार को बनाने में विशेष बात यह है कि बीच-बीच में यथा स्थान छेद छोड़ें जाएं, जिससे की टांका में वायु का आवागमन बना रहे और खाद सामग्री आसानी से पक सके। प्रत्येक दो ईंटों के बाद तीसरी ईंट की जुड़ाई करते समय 7 इंच का छेद छोड़ देना चाहिए। 3 फीट ऊंची दीवार में पहले, तीसरे छठे और नवे रद्दे में छेद बनाने चाहिए। दीवार के भीतरी व बाहरी हिस्से को गाय या भैंस के गोबर से लीप दिया जाता है। फिर तैयार टांका को सूखने देना चाहिए। इस प्रकार बने टांका में नाडेप खाद बनाने के लिए मुख्य रूप से चार चीजों की आवश्यकता होती है।
पहली: व्यर्थ पदार्थ या कचरा जैसे सूखे हरे पत्ते, छिलके, डंठल, जड़ें, बारीक टहनियां व व्यर्थ खाद पदार्थ आदि। इस बात का विशेष ध्यान रखा चाहिए कि इन पदार्थों के साथ प्लास्टिक/पॉलीथिन, पत्थर व कांच आदि शामिल न हो। इस तरह के कचरे 1500 किलोग्राम मात्रा की आवश्यकता होती है।
दूसरी: 100 किलोग्राम गाय या भैंस का गोबर या गैस संयंत्र से निकले गोबर का घोल।
तीसरी: सूखी महीन छनी हुई तालाब या नाले की 1750 किलोग्राम मिट्टी। मिट्टी पॉलीथिन/प्लास्टिक से रहित होना आवश्यक है।
चौथी: पानी की आवश्यकता काफी हद तक मौसम पर निर्भर करती है। बरसात में जहां कम पानी की आवश्यकता रहेगी। वहीं पर गर्मी के मौसम में अधिक पानी की आवश्यकता होगी। कुल मिलाकर करीब 1500 से 2000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। गौमूत्र या अन्य पशु मूत्र मिला देने से नाडेप खाद की गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी होगी।
टांका भरना: टांका भरते समय विशेष ध्यान देना चाहिए कि इसके भरने की प्रक्रिया एक ही दिन में समाप्त हो जाए। इसके लिए आवश्यक है कि कम से कम दो टैंकों का निर्माण किया जाए, जिससे कि सभी सामग्री इकट्ठा होने पर एक ही दिन में टैंक भरने की प्रक्रिया पूरी हो सके। टैंक भरने का क्रम निम्न प्रकार है:
पहली परत: व्यर्थ पदार्थों को 6 इंच ऊंचाई तक भरते हैं। इस प्रकार व्यर्थ पदार्थों की 30 घन फुट में लगभग एक क्विंटल की जरूरत होती है।
दूसरी परत: गोबर के घोल की होती है, इसके लिए 150 लीटर पानी में 4 किलोग्राम गोबर अथवा बायोगैस संयंत्र से प्राप्त गोबर के घोल की ढाई गुना ज्यादा मात्रा प्रयोग में लाते हैं। इस घोल को व्यर्थ पदार्थों द्वारा निर्मित पहली परत पर अच्छी तरह से भीगने देते हैं।
तीसरी परत: छनी हुई सूखी मिट्टी की परत आधा इंच मोटी दूसरी परत के ऊपर बिछाकर परत समतल कर लेते हैं।
चौथी परत: इस परत को वास्तव में परत न कहकर पानी के छीटें कह सकते हैं। इसलिए आवश्यक है कि टैंक में लगाई गई परतें ठीक से बैठ जाएं।
इसी क्रम को क्रमश: टांका के पूरा भरने तक दोहराते हैं। टैंक भर जाने के बाद अंत में 2.5 फुट ऊंचा झोपड़ीनुमा आकार में भराई करते हैं। इस प्रकार टैंक भर जाने के बाद इसको गोबर व गीली मिट्टी के मिश्रण से लेप कर देते हैं। प्राय: यह देखा गया है कि 10 या 12 परतों में गड्ढा भर जाता है।
यदि नाडेप कम्पोस्ट की गुणवत्ता में अधिक वृद्धि करनी है तो आधा इंच मिट्टी की परतों के ऊपर 1.5 किलोग्राम जिप्सम 1.5 किलोग्राम राक फास्फेट +एक किलो यूरिया का मिश्रण बनाकर सौ ग्राम प्रति परत बिखेरते जाते हैं। टांका भरने के 60 से 70 दिन बाद राइजोबियम +पी.एस.बी.+एजेक्टोबेक्टर का कल्चर बनाकर मिश्रण को छेदों के द्वारा प्रविष्ट करा देते हैं।
टांका भरने के 15 से 20 दिनों बाद उसमें दरारें पडऩे लगती हैं तथा इस विघटन के कारण मिश्रण टैंक में नीचे की ओर बैठने लगता है। ऐसी अवस्था में इसे उपरोक्त बताई गई विधि से दोबारा भरकर मिट्टी एवं गोबर के मिश्रण से उसी प्रकार लीप दिया जाए जैसा कि प्रथम बार किया गया था। यह आवश्यक है कि टांका में 60 प्रतिशत नमी का स्तर हमेशा बना रहे। इस तरह से नाडेप कम्पोस्ट 90 से 110 दिनों में बनकर प्रयोग हेतु तैयार हो जाती है।
लगभग 3.0 से 3.25 टन प्रति टैंक नाडेप कम्पोस्ट बनकर प्राप्त होती है। तथा इसका 3.5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से खेतों में प्रयोग करना पर्याप्त है। इस कम्पोस्ट में पोषक तत्वों की मात्रा नत्रजन के रूप में 0.5 से 1.5 फास्फोरस के रूप में 0.5 से 0.9 तथा पोटाश के रूप में 1.2 से 1.4 प्रतिशत तक पाई जाती है। नाडेप टांका 10 वर्ष तक अपनी पूरी क्षमता से कम्पोस्ट बनाने में सक्षम रहता है। नाडेप कम्पोस्ट बनाने हेतु प्रति टांका निर्माण में लगभग दो हजार रु. की लागत आती है। यदि 6 टांका का निर्माण कर अंतराल स्वरूप एक-एक टांका भरकर कम्पोस्ट बनाई जाए तो गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले व शिक्षित बेरोजगारों को चार हजार रु. प्रति माह के हिसाब से आर्थिक लाभ हो सकता है।
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