फसल की खेती (Crop Cultivation)

बिना जुताई ‘जीरो टिलेज’ के खेती एवं उसका कृषि पर प्रभाव

  • दिलवर सिंह परिहार , विशाल चौधरी
    कृषि मशीनरी एवं ऊर्जा विभाग
    पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना

25  मई 2021, लुधियाना ।  बिना जुताई ‘जीरो टिलेज’ के खेती एवं उसका कृषि पर प्रभाव – जुताई (टिलेज) को फसल चक्र का पहला चरण माना जाता है, इसमें खेत तैयार करने के लिए कृषि उपकरणों की मदद से मिट्टी की ऊपरी सतह को पलटा जाता है। जुताई का मुख्य उद्देश्य अगली फसल के लिए खेत तैयार करना, खरपतवार को उखाड़कर ख़त्म करना, मृदा अपरदन को काम करना, हानिकारक कीटों को मारना एवं मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता को बढ़ाना है। उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति न्यूनतम जुताई या बिना जुताई (जीरो टिलेज) के द्वारा भी की जा सकती है। जबकि न्यूनतम जुताई या बिना जुताई (जीरो टिलेज) वाला सिद्धांत पारम्परिक जुताई से भी पुराना है। पुराने समय में उपकरणों के आभाव में फसलों को बिना जुताई के लगाया जाता था जबकि आज के समय में जीरो टिलेज का उपयोग बढ़ता जा रहा है क्योंकि यह पर्यावरण संरक्षण के साथ साथ मृदा तथा नमी को भी संरक्षित करता है।

जीरो टिलेज क्या है ?

जीरो टिलेज फसल उत्पादन का वह तरीका है जिसमे मिट्टी को पारम्परिक तरीके से जुताई करने की जगह विशेष उपकरणों की मदद से सीधे मिटटी को पलटे बिना बीजो की बुआई की जाती है। जैसा कि पारम्परिक तरीको में मिटटी की ऊपरी सतह को किसी उपकरण की मदद से पलटा जाता है जो कि मृदा अपरदन को बढ़ावा देता है , साथ ही कई आवश्यक सुक्ष्म जीव जो मिटटी के लिए जरुरी होते है उनकी संख्या में कमी आ जाती है साथ ही मिटटी में उपस्थित कार्बन वातावरण में उत्सर्जित होकर कार्बन डाई ऑक्साइड बनाता जो कि ग्रीन हाउस प्रभाव को बढ़ाने के लिए उत्तरदायी होती है।

(ग्रीनहाउस प्रभाव या हरितगृह प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी ग्रह या उपग्रह के वातावरण में मौजूद कुछ गैसें वातावरण के तापमान को अपेक्षाकृत अधिक बढ़ाने में मदद करती हैं। इन ग्रीनहाउस गैसों में कार्बन डाई आक्साइड, जल-वाष्प, मिथेन आदि शामिल हैं।
खेती की इस विधि में विशेष प्रकार के उपकरणों से तथा मिट्टी को कम से काम पलटा जाता है तथा बीजों को मिट्टी में बोया जाता है। डिस्क सीडड्रिल इसी तरह का उपकरण है जो न्यूनतम जुताई करके बीजों को नालियों (फरो) में डालता है तथा उन्हें मिट्टी से अच्छी तरह ढँक देता है। इस विधि में उसी जगह की मिट्टी को हटाया जाता है जहाँ पर बीज गिराना है। इसके आलावा प्लांटर (एक प्रकार का बुआई यंत्र ) की मदद से खाद को भी बीज के साथ खेत में डाला जा सकता है।

क्योंकि इस पद्धति में मिट्टी की जुताई नहीं की जाती है खरपतवार नियंत्रण इस पद्धति की मुख्या समस्या है। इस समस्या को हल करने के लिए तथा खरपतवार को कम करने के लिए पुरानी फसलों के अवशेषों को पंक्तियों के बीच में खाली सतह पर बिछा दिया जाता है। इस व्यवस्था को मल्चिंग कहा जाता है। कई क्षेत्रों में प्लास्टिक का उपयोग भी मल्चिंग के लिए किया जाता है। मल्चिंग न केवल खरपतवारों को बढऩे से रोकती है जबकि मिट्टी की नमी को वातावरण में वाष्पित होने से बचाती है साथ ही पौधों की जड़ों को भी धूप से बचने में मदद करती है।

जीरो टिलेज के प्रभाव
मृदा अपरदन को रोकने में सहायक

मृदा अपरदन रोकने में उपरोक्त विधि सहायक है। चूँकि पारम्परिक जुताई मिट्टी की ऊपरी कठोर सतह को तोड़ कर पलट दिया जाता है जिसके कारण निचली सतह जो कि ऊपरी सतह की अपेक्षा मुलायम होती है ऊपर आ जाती है तथा हवा या पानी के बहाव के कारण अपनी जगह से बह जाती है। पठारी इलाकों में यह समस्या ढालू सतह होने के कारण ज्यादा होती है क्योंकि मिट्टी आसानी से बह कर निचले इलाकों में जमा हो जाती है। इसके आलावा तेज पानी की बूंदों के साथ भी मि_ी उछाल कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर चली जाती है। जबकि जीरो टिलेज में मिट्टी को बहुत काम या नहीं पलटा जाता है मृदा अपरदन की समस्या को काम किया जा सकता है।

नमी को संरक्षित करने में सहायक

यह विधि मिट्टी की नमी को बने रखने में भी सहायक है। इस विधि में पुरानी फसलों के अवशेषों को मिट्टी की सतह पर ही रहने दिया जाता है। ये अवशेष पानी को सहेज कर मिट्टी में नमी को बढ़ाते हैं तथा पानी के सतही बहाव को भी काम कर देते हंै जो पानी को मिट्टी के साथ बहने से रोकता है। इसके आलावा यह मिट्टी की सतह से पानी के वाष्पीकरण को भी कम करता है तथा पौधों के जल्दी अंकुरण में सहायता करता है।

उत्पादकता पर प्रभाव

पारम्परिक विधि में और इस विधि में फसल की उत्पादकता लगभग समान होती है। किन्तु यह देखा गया है कि पानी की कमी वाले सालो में या ऐसे क्षेत्रों में जहाँ पानी की उपलब्धता कम है वहां पर यह विधि पारम्परिक विधि से ज्यादा लाभदायक है क्योंकि पुरानी फसलों के अवशेष मिट्टी में नमी को बरकऱार रखते हंै जो बीजों को अंकुरित होने में मदद करते है साथ ही वाष्पीकरण को भी कम करते हंै।

पर्यावरण संरक्षण में सहायक

पर्यावरण संरक्षण के लिए भी यह विधि बहुत लाभदायक है, चूँकि इस विधि में न्यूनतम जुताई की जाती है, ईंधन (डीजल ) की खपत कम हो जाती है। ईंधन की खपत कम होने से कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन भी कम हो जाता है जो कि ग्लोबल वार्मिंग की मुख्य कारक है।
जुताई के समय मिट्टी से कार्बन सतह पर आ जाता है जो की पौधों को आवश्यक तत्व प्रदान करता है ।

मिट्टी की उत्पादकता बनाए रखने में सहायक

यह विधि मृदा संरक्षण के साथ साथ मिट्टी के उपजाऊपन को भी बनाए रखने में मदद करती है। जुताई के कारण मिटटी में उपस्थित कई सुक्ष्म जीव नष्ट हो जाते है जो कि मिट्टी के लिए लाभदायक होते है तथा प्राकृतिक तौर पर मिट्टी में रहकर मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने में मदद करते है। यह विधि सूक्ष्म जीवों को संरेखित करने के साथ मिट्टी में नाइट्रोजन की उपलब्धता बढ़ाने में भी सहायक है।

न्यूनतम जुताई विधि के फायदे
  • इस विधि का मुख्य फ़ायदा यह है कि यह मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखती है, इसके आलावा कुछ मुख्य लाभ इस प्रकार है –
  • ईंधन की लागत में कमी करता है।
  • वाष्पीकरण को काम करता है तथा मिट्टी की नमी को बनाए रखने में सहायक है।
  • खेत में पानी के बहाव को काम करता है तथा मिट्टी को बहने से रोकने में सहायक।
  • समय की बचत तथा साधनों का उचित उपयोग सुनिश्चित करता है।
  • मानव श्रम को भी कम करता है।

इस विधि के कई फायदे हैं तथा कई किसान इस विधि को अपना रहे हैं जिससे फसल की उत्पादाकता बढ़ रही है एवं किसान की आय में वृद्धि हो रही है।

 

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