फसल की खेती (Crop Cultivation)

खरीफ प्याज की उन्नत कृषि कार्यमाला

खरीफ प्याज की उन्नत कृषि कार्यमाला

खरीफ प्याज की उन्नत कृषि कार्यमाला – प्याज एक महत्वपूर्ण सब्जी एवं मसाला फसल है। इसमें प्रोटीन एवं कुछ विटामिन भी अल्प मात्रा में रहते हैं। प्याज में बहुत से औषधीय गुण पाये जाते हैं। प्याज का सूप, अचार एवं सलाद के रूप में उपयोग किया जाता है। मप्र में सामान्य रूप में सभी जिलों में प्याज की खेती की जाती है। प्याज के कच्चे व पके कन्द दोनों रूप में सब्जियों और मसालों के रूप में उपयोग किये जाते हैं।

मृदा: प्याज को विभिन्न प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकता हैं लेेकिन उचित जलनिकास वाली जीवांशयुक्त दोमट भूमि और जलौढ़ मृदाएं इसकी कास्त के लिए सर्वोत्तम मानी जाती हैं, प्याज को अधिक क्षारीय या दलदली मृदाओं में नहीं उगाना चाहिए, इसे उगाने के लिए पी.एच. मान 6.5-7.5 अनुकूलतम होता हैं।

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उन्नत किस्में: एग्री फाउण्ड डार्क रेड , एन-53, भीमा सुपर

फसल चक्र: प्याज-लौकी, प्याज-भिन्डी, प्याज-तरबूज

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बीजोपचार: बीजों को बोने से पहले थायरम 2 ग्राम प्रति किलो अथवा बाविस्टीन 2 से 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।

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बोने का समय: प्याज की नर्सरी 15 जून के आसपास बोई जाती है

पौध तैयार करना: पौधशाला के लिए चुनी हुई जगह की पहले जुताई करें इसके पश्चात् उसमें पर्याप्त मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट डालें। पौधशाला का आकार 3 मीटर 30.75 मीटर रखा जाता हैं और दो क्यारियों के बीच 60-70 सेमी. की दूरी रखी जाती हैं जिससे कृषि कार्य आसानी से किये जा सके। पौधशाला के लिए रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती हैं, पौध शैय्या लगभग 15 सेमी. जमीन से ऊँचाई पर बनाना चाहिए बुवाई के बाद शैय्या में बीजों को 2-3 सेमी. मोटी सतह जिसमें छनी हुई महीन मृदा एवं सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद से ढंक दें। बुवाई से पूर्व शैय्या को 250 गेज पालीथिन द्वारा सौर्यकरण उपचारित कर लें।
बीजों को हमेशा पंक्तियों में बोना चाहिए। खरीफ मौसम की फसल के लिए 5-7 सेमी. रखते हैं। इसके पश्चात् क्यारियों पर कम्पोस्ट, सूखी घास की पलवार (मल्चिंग) बिछा देते हैं जिससे भूमि में नमी संरक्षण हो सकें। पौधशाला में अंकुरण हो जाने के बाद पलवार हटा दें। इस बात का ध्यान रखा जाये कि पौधशाला की सिंचाई पहले फब्बारे से करें। पौधों को अधिक वर्षा से बचानेे के लिए पौधशाला या रोपणी को पॉलीटेनल में उगाना उपयुक्त होगा।

भूमि की तैयारी: प्याज के सफल उत्पादन में भूमि की तैयारी का विशेष महत्व हैं। खेत की प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें इसके उपरान्त 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या हैरो से करें, प्रत्येक जुताई के पश्चात् पाटा अवश्य लगाएं जिससे नमी सुरक्षित रहें तथा साथ ही मिट्टी भुर-भुरी हो जाए। भूमि को सतह से 15 से.मी. उंचाई पर 1.2 मीटर चौड़ी पट्टी पर रोपाई की जाती है अत: खेत को रेज्ड-बेड सिस्टम से तैयार किया जाना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक: प्याज के सफल उत्पादन के लिए खाद एवं उर्वरकों की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती हैं। प्याज की पोषण आवश्यकता भूमि की किस्म और फसल के प्रकार पर निर्भर करती हैं। फसल में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करें। गोबर की सड़ी खाद 20-25 टन बुआई/रोपाई से एक-दो माह पूर्व खेत में डालें। इसके अतिरिक्त नत्रजन 100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर, स्फुर 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा पोटाश 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर देने की अनुसंशा की जाती हैं। इसके अतिरिक्त अन्य पोषक तत्व प्याज की गुणवत्ता सुधारने के लिए आवश्यकता होते हैं इसमें जिंक महत्वपूर्ण हैं।

बीज की मात्रा: खरीफ मौसम के लिए 10-12 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती हैं।

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पौधशाला शैय्या पर बीज की बुवाई एवं रोपाई का समय:

खरीफ मौसम हेतु पौधशाला शैय्या पर बीजों की पंक्तियों में बुवाई 15 जून तक कर दें, जब पौध 45 दिन की हो जाए तो उसकी रोपाई कर देना उत्तम माना जाता हैं। पौध की रोपाई कूड़ शैय्या पद्धति से तैयार खेतों पर करना चाहिए, इसमें 1.2 मीटर चौड़ी शैय्या एवं लगभग 30 से.मी. चौड़ी नाली तैयार की जाती हैं।

सिंचाई एवं जलनिकास: खरीफ मौसम की फसल में रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई करें अन्यथा सिंचाई में देरी से पौधे मरने की संभावना बढ़ जाती हैं। खरीफ मौसम में उगाई पाने वाली प्याज की फसल को जब मानसून चला जाता हैं उस समय सिंचाईयां आवश्यकतानुसार करें। इस बात का ध्यान रखा जाए कि शल्ककन्द निर्माण के समय पानी की कमी नहीं होना चाहिए क्योंकि यह प्याज फसल की क्रान्तिक अवस्था होती हैं क्योंकि इस अवस्था में पानी की कमी के कारण उपज में भारी कमी हो जाती हैं, जबकि अधिक मात्रा में पानी बैंगनी धब्बा (पर्पिल ब्लाच) रोग को आमंत्रित करता हैं। काफी लम्बे समय तक खेत को सूखा नहीं रखें अन्यथा शल्ककंद फट जाएंगे एवं फसल जल्दी आ जाऐगी, परिणामस्वरूप उत्पादन कम प्राप्त होगा। अत: आवश्यकतानुसार 8-10 दिन के अंतराल से हल्की सिंचाई करें। यदि अधिक वर्षा या अन्य कारण से खेत में पानी रूक जाए तो उसे शीघ्र निकालने की व्यवस्था करें अन्यथा फसल में फफूंदी जनित रोग लगने की संभावना बढ़ जाती हैं।

कंदों की खुदाई: खरीफ प्याज की फसल लगभग 5 माह में नवम्बर-दिसम्बर माह में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। जैसे ही प्याज की गाँठ अपना पूरा आकर ले लेती है और पत्तियां सूखने लगे तो लगभग 10-15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर दें और प्याज के पौधों के शीर्ष को पैर की मदद से कुचल दें। इससे कंद ठोस हो जाते हैं और उनकी वृद्धि रूक जाती है। इसके बाद कंदों को खोदकर खेत में ही कतारों में ही रखकर सुखाते है। खरीफ प्याज की औसत उपज 300-350 क्विं/ हेक्टेयर होती है।

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