फसल की खेती (Crop Cultivation)

खैरा रोग: धान की खेती के लिए एक चुनौती

लेखक: प्रथम कुमार सिंह, स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर, आई.टी.एम. यूनीवर्सिटी, ग्वालियर, डॉ. प्रद्युम्न सिंह,वैज्ञानिक, बी. एम. कृषि महाविद्यालय, खण्डवा

05 अगस्त 2024, भोपाल: खैरा रोग: धान की खेती के लिए एक चुनौती – मध्य प्रदेश, भारत का एक प्रमुख राज्य है जो अपनी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की प्रमुख फसलों में धान का विशेष स्थान है। धान की खेती यहाँ के किसानों के जीवनयापन का मुख्य स्रोत है, लेकिन इसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें से एक प्रमुख समस्या है खैरा रोग, जो धान की फसल को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। इस लेख में, हम खैरा रोग के कारण, लक्षण, प्रभाव, प्रबंधन और रोकथाम के उपायों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

खैरा रोग के कारण

मिट्टी में जिंक की कमी: यह रोग तब होता है जब मिट्टी में जिंक की मात्रा कम हो जाती है। जिंक एक आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व है जो पौधों की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक होता है।

मिट्टी की उच्च पीएच: अगर मिट्टी की पीएच अधिक होती है, तो यह जिंक की उपलब्धता को प्रभावित कर सकती है।

अधिक सिंचाई और जल जमाव: अधिक सिंचाई और जल जमाव के कारण मिट्टी में जिंक की कमी हो सकती है, जिससे खैरा रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।

नाइट्रोजन का अत्यधिक उपयोग: नाइट्रोजन उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग भी जिंक की उपलब्धता को प्रभावित कर सकता है।

लक्षण

पत्तियों पर पीले धब्बे: रोगग्रस्त पौधों की पत्तियों पर छोटे-छोटे पीले धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं।

पत्तियों का सूखना: रोग के बढऩे पर पत्तियाँ सूखने लगती हैं और उनमें नमी की कमी हो जाती है।

पौधों का धीमा विकास: जिंक की कमी के कारण पौधों का विकास धीमा हो जाता है और उनकी ऊंचाई कम हो जाती है।

जड़ प्रणाली का कमजोर होना: जड़ प्रणाली कमजोर हो जाती है, जिससे पौधे आवश्यक पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं कर पाते।

प्रभाव

उत्पादन में कमी: खैरा रोग के कारण धान की फसल का उत्पादन कम हो जाता है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है।

गुणवत्ता में कमी: रोगग्रस्त फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है, जिससे बाजार में उसकी कीमत कम हो जाती है।

पौधों की मृत्यु: यदि समय पर उपचार न किया जाए, तो पौधों की मृत्यु भी हो सकती है।

प्रबंधन और रोकथाम

जिंक उर्वरकों का उपयोग: मिट्टी में जिंक की कमी को पूरा करने के लिए जिंक उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए। जिंक सल्फेट एक प्रमुख जिंक उर्वरक है जिसे धान की फसल में प्रयोग किया जा सकता है।

मिट्टी परीक्षण: नियमित रूप से मिट्टी का परीक्षण करवायें ताकि जिंक की कमी का पता चल सके और समय पर उचित उपाय किए जा सकें।

संतुलित उर्वरक उपयोग: नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम के साथ जिंक का संतुलित उपयोग करें ताकि मिट्टी में सभी आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध हों।

सिंचाई का प्रबंधन: अधिक सिंचाई और जल जमाव से बचें ताकि मिट्टी में जिंक की उपलब्धता बनी रहे।

जैविक खेती: जैविक खेती के तरीकों का अपनायें जिससे मिट्टी की संरचना और पोषक तत्वों की उपलब्धता में सुधार हो सके।

खैरा रोग का प्रभाव

आर्थिक प्रभाव: खैरा रोग के कारण धान की उत्पादन क्षमता में कमी आने से किसानों को आर्थिक नुकसान होता है। उन्हें फसल से कम आमदनी प्राप्त होती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है।

खाद्यान्न सुरक्षा: धान मध्य प्रदेश में एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है। खैरा रोग के कारण धान की उत्पादन में कमी आने से खाद्यान्न सुरक्षा पर भी असर पड़ता है।

किसानों की जीवनशैली: खैरा रोग से प्रभावित किसान आर्थिक तंगी और मानसिक तनाव का सामना करते हैं, जिससे उनकी जीवनशैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

सफलताओं और चुनौतियों का विश्लेषण

सरकारी पहल: सरकार ने किसानों को जिंक उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई हैं। मिट्टी परीक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है।

शोध और विकास: कृषि वैज्ञानिक और शोधकर्ता लगातार खैरा रोग के प्रबंधन के नए तरीकों की खोज में लगे हुए हैं। नई किस्में विकसित की जा रही हैं जो जिंक की कमी के प्रति सहनशील हों।

किसानों की भागीदारी: किसानों की भागीदारी और सहयोग से खैरा रोग के प्रबंधन में सुधार हुआ है। जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों को नई तकनीकों के बारे में जानकारी दी जा रही है।

स्थायी समाधान की दिशा में कदम

सतत कृषि पद्धतियाँ: सतत कृषि पद्धतियों को अपनाना चाहिए जिससे मिट्टी की स्वास्थ्य और पोषक तत्वों की उपलब्धता में सुधार हो सके।

जिंक-समृद्ध किस्मों का विकास: जिंक-समृद्ध धान की किस्मों का विकास और प्रचार-प्रसार करना चाहिए जो जिंक की कमी के प्रति सहनशील हों।

किसानों की शिक्षा और प्रशिक्षण: किसानों को नियमित रूप से शिक्षा और प्रशिक्षण देना चाहिए ताकि वे नवीनतम तकनीकों और प्रबंधन उपायों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें।

समुदाय आधारित प्रयास: समुदाय आधारित प्रयासों को बढ़ावा दें जिसमें किसानों की भागीदारी हो और वे मिलकर खैरा रोग के प्रबंधन के लिए प्रयास करें।

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