Crop Cultivation (फसल की खेती)

भूमि की उर्वरा-शक्ति बढ़ाने हरी खाद का महत्व

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  • डॉ. बी .एस. किरार, वरिष्ठ वैज्ञानिक
  • डॉ. एस. के. सिंह , डॉ. सुनील कुमार जाटव
  • जयपाल छिगारहा कृविके, टीकमगढ़

23 अगस्त 2022, भोपाल  भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ाने हरी खाद का महत्व – हमारे यहाँ कृषि में दलहनी फसलों का महत्व सदैव रहा है। दलहनी एवं गैर दलहनी फसलों को उनके वानस्पतिक वृद्धि के समय जुताई करके उपयुक्त पर सडऩे (अपघटन) के लिए मिट्टी में दबाना ही हरी खाद कहलाता है। इससे मृदा उर्वरता एवं उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है। ये फसले अपनी जलग्रंथियों उपस्थित सहजीवी जीवाणुओं द्वारा वायुमंडल में उपस्थित नत्रजन को सोखकर भूमि में एकत्र करती हैं। हरी खाद के लिए प्रयुक्त होने वाली प्रमुख फसलें दलहनी फसलों में ढेंचा, सनई, उर्द, मूँग, अरहर, चना, मसूर, मटर, लोबिया, मोठ, खेसारी तथा कुल्थी मुख्य हैं। लेकिन जायद में हरी खाद के रूप में अधिकतर सनई ऊँचा, उर्द एवं मूँग का प्रयोग ही प्राय: अधिक होता है।

निम्न गुणों का होना आवश्यक

  • दलहनी फसलों की जड़ों में उपस्थित सहजीवी जीवाणु ग्रंथियाँ (गांठें) वातावरण में मुक्त नाइट्रोजन को यौगिकीकरण द्वारा पौधों को उपलब्ध कराती हो।
  • फसल शीघ्र वृद्धि करने वाली हो।
  • हरी खाद के लिए ऐसी फसल हो जिसमें तना, शाखाएँ और पत्तियों कोमल एवं अधिक हाँ ताकि मिट्टी में शीघ्र अपघटन होकर अधिक से अधिक जीवांश तथा नाइट्रोजन मिल सके।
  • फसलें मूसला जड़ वाली हो ताकि गहराई से पोषक तत्वों का अवशोषण हो सके।
हरी खाद के लाभ
  • हरी खाद के प्रयोग से मृदा की भौतिक दशा में सुधार होता है जिससे वायु संचार अच्छा होता है एवं जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है।
  • अम्लीयता/क्षारीयता में सुधार होने के साथ ही मृदा क्षरण भी कम होता है।
  • हरी खाद के प्रयोग से मृदा में सूक्ष्मजीवों की संख्या एवं क्रियाशीलता बढ़ती है तथा मृदा की उर्वराशक्ति एवं उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है। हरी खाद के प्रयोग से मृदा से पोषक तत्वों की हानि भी कम होती है।
  • हरी खाद के प्रयोग से मृदा जनित रोगों में कमी आती है।
  • यह खरपतवारों की वृद्धि भी रोकने में सहायक है।

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