ICAR: क्या आप सही तरीके से कर रहे हैं गेहूं की बुवाई? पढ़ें विशेषज्ञों की राय
आईसीएआर भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल
प्रमुख सलाह (1-15 दिसंबर, 2024)
फसल मौसम 2024-25
30 नवंबर 2024, भोपाल: ICAR: क्या आप सही तरीके से कर रहे हैं गेहूं की बुवाई? पढ़ें विशेषज्ञों की राय – खेती, जो न केवल हमारा भोजन प्रदान करती है बल्कि हमारे देश की समृद्धि का भी आधार है, उसमें गेहूं की भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। बदलते मौसम, उन्नत तकनीकों और जागरूकता के साथ, अब हर किसान अपनी फसल को बेहतर बना सकता है। यह सलाह आपको न केवल गेहूं की खेती में आने वाली चुनौतियों का सामना करने में मदद करेगी, बल्कि उपज में अभूतपूर्व वृद्धि करने का मार्ग भी दिखाएगी। धान की कटाई के बाद से लेकर तापमान में उतार-चढ़ाव तक, हर परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए यह मार्गदर्शन तैयार किया गया है।
हालांकि धान की कटाई में देरी और तापमान में उतार-चढ़ाव की चुनौतियां थीं, फिर भी नवंबर के अंत तक गेहूं की बुवाई काफी संतोषजनक रही। जिन किसानों ने अब तक बुवाई नहीं की है, उनके लिए यह सुझाव दिया जाता है कि वे कृषि जलवायु परिस्थितियों और बुवाई के समय को ध्यान में रखते हुए, उपयुक्त किस्मों का चयन करें ताकि उत्पादन अधिकतम हो सके।
सामान्य सुझाव
- उपयुक्त किस्मों का चयन: अपने क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुसार, देर से बुवाई में उपयुक्त किस्मों का चयन करें।
- क्षेत्रीय उपयुक्तता: अन्य क्षेत्रों की किस्में लगाने से बचें क्योंकि ये स्थानीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त नहीं होतीं।
- संतुलित इनपुट का उपयोग: अधिकतम उपज के लिए उर्वरक, सिंचाई, शाकनाशी और कवकनाशी का विवेकपूर्ण उपयोग करें।
- पानी की बचत: खेतों में समय पर और विवेकपूर्ण सिंचाई करें, जिससे पानी की बर्बादी रोकी जा सके।
- पीलापन रोकथाम: यदि फसल में पीलापन हो, तो नाइट्रोजन (यूरिया) का अधिक उपयोग न करें। कोहरे या बादलों की स्थिति में नाइट्रोजन के उपयोग से बचें।
- मौसम पूर्वानुमान का ध्यान रखें: सिंचाई से पहले बारिश की संभावना को अवश्य जांचें ताकि जलभराव की समस्या न हो।
- फसल अवशेष प्रबंधन: खेतों में फसल अवशेष जलाने से बचें। इन्हें मिट्टी में मिला देना या सतह पर छोड़ देना बेहतर है। मिट्टी की सतह पर फसल अवशेषों की उपस्थिति में, गेहूं की बुवाई के लिए हैप्पी सीडर या स्मार्ट सीडर का उपयोग किया जा सकता है।
- यूरिया का उपयोग: सिंचाई से ठीक पहले यूरिया का टॉप ड्रेसिंग करें।
उत्तरी, पूर्वी और मध्य भारत में समय पर, देर से, बहुत देरी से बुआई के लिए गेहूं की किस्में
क़िस्म | उत्पादन स्थितियों | |
देर से बोई जाने वाली किस्में | ||
पीबीडब्ल्यू 752, पीबीडब्ल्यू 771, डीबीडब्ल्यू 173, जेकेडब्ल्यू 261, एचडी 3059, डब्ल्यूएच 1021 | सिंचित, देर से बोया गया (25 दिसंबर तक) | एनडब्ल्यूपीजेडः पंजाब, हरियाणा, राजस्थान का कुछ आग, पश्चिम यूपी |
डीबीडब्ल्यू 316, पीबीडब्ल्यू 833, डीबीडब्ल्यू 107, एचडी 3118, जेकेडब्ल्यू 261, पीबीडब्ल्यू 752 | एनईपीजेडः पूर्वी यूपी, बिहार, बंगाल, झारखंड | |
एचडी 3407, एचआई 1634, सीजी 1029, एमपी 3336 | सीजेंड: एमपी, गुजरात, राजस्थान | |
बहुत देर से बोई जाने वाली किस्में | ||
एचडी 3271, एचआई 1621, डब्ल्यूआर 544 | सिंचाई बहुत देर से बुवाई (25 दिसंबर से आगे) | सभी जोन |
बुआई का समय, बीज दर और उर्वरक प्रयोगः भारत में गेहूं की फसल विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों और उत्पादन स्थितियों में उगाई जाती है। बुआई के समय से क्षेत्र दर क्षेत्र और अलग-अलग उत्पादन परिस्थितियों में थोड़ा अंतर होता है।
गेहूं की फसल के लिए क्षेत्रवार बुआई बीज दर एवं उर्वरक की मात्रा
क्षेत्र | बुआई की स्थिति | बीज दर | उर्वरक की खुराक और प्रयोग का समय |
एनडब्ल्यूपीजेड और एनईपीजेड | सिंचित, देर से बोया गया | 125 किया/हैक्टर | 120:60:40 किया एनपीके हे (1/3 एन और पूर्ण पी और के बुआई के समय बेसल के रूप में और शेष एन पहली और दूसरी सिंचाई में दो बराबर भागों में) |
सीजेड और पौजेड | सिंचित, देर से बोया गया | 125 किया/हैक्टर | 90:60:40 किग्रा एनपीके है (1/3 एन और पूर्ण पी और के बुआई के समय बेसल के रूप में और शेष एन पहली और दूसरी सिंचाई में दो बराबर आगो में) |
संकरी और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का प्रबंधन
गेहूं की फसल में संकरी और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का प्रभावी प्रबंधन बेहद जरूरी है। संकरी पत्ती वाले खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए क्लोडिनाफॉप 15 डब्ल्यूपी का 160 ग्राम प्रति एकड़ या पिनोक्साडेन 5 ईसी का 400 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करें।
वहीं, चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए 2,4-डी ई का 500 मिली प्रति एकड़, मेटसल्फ्यूरॉन 20 डब्ल्यूपी का 8 ग्राम प्रति एकड़ या कार्केट्राजोन 40 डीएफ का 20 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें।
संकरी और चौड़ी पत्ती वाले दोनों खरपतवारों का प्रबंधन
यदि खेत में संकरी और चौड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवार मौजूद हों, तो सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 डब्ल्यूजी का 13.5 ग्राम प्रति एकड़ या सल्फोसल्फ्यूरॉन + मेटसल्फ्यूरॉन 80 डब्ल्यूजी का 16 ग्राम प्रति एकड़ का उपयोग करें। इसे 120-150 लीटर पानी में मिलाकर पहली सिंचाई से पहले या सिंचाई के 10-15 दिन बाद छिड़कें। इसके अतिरिक्त, विविध खरपतवारों के नियंत्रण के लिए मेसोसल्फ्यूरॉन + आयोडोसल्फ्यूरॉन 3.6% डब्ल्यूडीजी का 160 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग किया जा सकता है।
फलारिस माइनर (कनकी गुल्ली डंडा) के लिए विशेष प्रबंधन
बहु खरपतवारनाशी प्रतिरोधी फलारिस माइनर (कनकी गुल्ली डंडा) के नियंत्रण के लिए बुवाई के 0-3 दिन बाद पायरोक्सासल्फोन 85 डब्ल्यूजी का 60 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें। यदि यह बुवाई के समय उपयोग नहीं किया गया हो, तो इसे पहली सिंचाई से 1-2 दिन पहले (20 दिन बाद) भी उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, क्लोडिनाफॉप + मेट्रिब्यूजिन 12+42% डब्ल्यूपी का 200 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें, जिसे पहली सिंचाई के 10-15 दिन बाद 120-150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें।
शीघ्र बोई जाने वाली गेहूं की फसल के लिए प्रबंधन
शीघ्र बोई जाने वाली और उच्च उर्वरता वाली गेहूं की फसलों के लिए, क्लोरमेक्वेट क्लोराइड 50% एसएल का 0.2% और टेबुकोनाजोल 25.9% ईसी का 0.1% मिलाकर टैंक मिक्स तैयार करें और इसका छिड़काव प्रथम नोड अवस्था (50-55 डीएएस) में करें। यह प्रक्रिया 160 लीटर प्रति एकड़ पानी के साथ पूरी करें।
शाकनाशी के उपयोग में सावधानियां
शाकनाशी का छिड़काव हमेशा साफ मौसम में करें। यह सुनिश्चित करें कि बारिश, कोहरा, या ओस की स्थिति न हो। छिड़काव के लिए सही समय और निर्धारित मात्रा का पालन करना आवश्यक है। खेत में खरपतवारों की पहचान और उनकी गंभीरता के अनुसार शाकनाशी का चयन करें। इन उपायों से फसल को खरपतवारों से बचाया जा सकता है और उपज में सुधार किया जा सकता है।
सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन
- पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करें।
- उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें और बुआई के समय बेसल ड्रेसिंग के रूप में एक-तिहाई नाइट्रोजन तथा शेष को पहली और दूसरी सिंचाई के दौरान डालें।
दीमक नियंत्रण: दीमक प्रभावित क्षेत्रों में फसलों को सुरक्षित रखने के लिए बीज उपचार एक प्रभावी उपाय है। बीजों का उपचार क्लोरोपाइरीफॉस @ 0.9 ग्राम ए.आई./किलो बीज (4.5 मिली उत्पाद डोज प्रति किलो बीज) के साथ करें। इसके अलावा, थायमेथोक्साम 70 डब्ल्यूएस (क्रूजर 70 डब्ल्यूएस) @ 0.7 ग्राम ए.आई./किलो बीज (4.5 मिली उत्पाद डोज प्रति किलो बीज) या फिप्रोनिल (रीजेंट 5 एफएस @ 0.3 ग्राम ए.आई./किलो बीज या 4.5 मिली उत्पाद डोज प्रति किलो बीज) का उपयोग भी अत्यधिक प्रभावी है। ये उपचार फसलों को दीमक के नुकसान से बचाने में मददगार हैं।
गुलाबी तना छेदक नियंत्रण: गुलाबी तना छेदक का प्रकोप चावल-गेहूं फसल प्रणाली में विशेष रूप से उन क्षेत्रों में अधिक देखा जाता है, जहां गेहूं को शून्य जुताई वाले खेतों में बोया जाता है। इस कीट के प्रबंधन के लिए, गुलाबी तना छेदक के शुरुआती लक्षण दिखाई देते ही क्विनालफोस (ईकालक्स) @ 800 मिली प्रति एकड़ की दर से पौधों पर छिड़काव करें। इसके साथ ही सिंचाई करने से भी कीट के प्रभाव को कम किया जा सकता है, जिससे फसल को नुकसान होने से बचाया जा सकता है।
पीला रतुआ रोग नियंत्रण: गेहूं की फसल में पीला रतुआ एक प्रमुख रोग है, जो उत्तर पश्चिमी मैदानी और उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है। इस रोग की पहचान पीले रंग के पाउडर से होती है, जो छूने पर उंगलियों और कपड़ों पर लग जाता है। इस रोग के लक्षण दिखने पर नजदीकी आईसीएआर संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय, राज्य कृषि विभाग या केवीके के विशेषज्ञ से संपर्क कर इसकी पहचान सुनिश्चित करें। इसके बाद प्रभावित क्षेत्रों में अनुशंसित कवकनाशकों जैसे प्रोपिकोनाजोल @ 0.1% या टेबुकोनाजोल 50% + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% @ 0.06% का छिड़काव करें। आवश्यकता पड़ने पर 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव दोहराएं। इन उपायों से पीले रतुआ रोग के प्रकोप को नियंत्रित किया जा सकता है और फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है।
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