फसल की खेती (Crop Cultivation)

आईएआरआई ने किसानों को बताया, कैसे करें गाजर, मूली, शलजम का बीजोत्पादन

30 दिसम्बर 2023, नई दिल्ली: आईएआरआई ने किसानों को बताया, कैसे करें गाजर, मूली, शलजम का बीजोत्पादन – सर्दियों में इस समय खेत में कई जड़ों वाली सब्जियां लगी हुई हैं। इन सब्जियों में प्रमुख हैं गाजर, मोली, शलजम  एंव चुकंदर। किसान इन सर्दियों में बीज उत्पादन करके अपनी आय को और बढ़ा सकते हैं। बीजोत्पादन हेतु किन समसमायिक कृषि कार्यों का विशेष ध्यान रखना चाहिए इसकी संपूर्ण जानकारी पूसा संस्थान ( भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) के विशेषज्ञ एंव शासकीय विज्ञान संभाग के अध्यक्ष  डॉ. बी. एस. तोमर ने दी हैं, जो इस प्रकार हैं।

गाजर की बीजोत्पादन के लिए किस्में

गाजर की संकर किस्में पूसा रूधिरा, पूसा केसर, पूसा असिता और पूसा वसुधा एसीटी किस्में हैं। इन किस्मों का बीजोत्पादन किसान सर्दियों के मौसम में उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में कर सकते हैं।

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मोली की बीजोत्पादन के लिए किस्में

पूसा संस्थान ने मोली की 3 किस्मो को विकसित किया हैं। जिनमें पूसा चेतकी, पूसा देशी और तीसरी किस्म जो फ्रेंच टाइप हैं पूसा मृदुला शामिल हैं। किसान इन तीनों ही किस्मों का बीजोत्पादन सर्दियों के मौसम में उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में कर सकते हैं।

शलजम की बीजोत्पादन के लिए किस्में

पूसा संस्थान द्वारा विकसित शलजम की किस्में पूसा श्वेत एंव पूसा लाल हैं। किसान इन किस्मों का बीजोत्पादन सर्दियों के मौसम में मैदानी क्षेत्रों में कर सकते हैं।

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चुकंदर की बीजोत्पादन के लिए किस्में

पूसा संस्थान द्वारा चुकंदर की दो किस्में विकसित की गई हैं। पूसा डीडीआर और क्रीमसन ग्लो। किसान इन किस्मों का बीजोत्पादन सर्दियों के मौसम में मैदानी क्षेत्रों में कर सकते हैं।

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कैसे करें चयन

गाजर तकरीबन 100 दिन के आसपास जड़ो का निर्माण कर लेती हैं। तो उसकी आदर्श अवस्था यानि बुवाई के 100 दिन बाद जड़ निकालकर चयन करें।

इसी प्रकार शलजम 50-55 दिन के अंदर पक कर तैयार हो जाती हैं। वही मूली की किस्म पूसा मृदुला 28-30 दिन के अंदर पक कर तैयार हो जाती हैं और पूसा चेतकी 35-38 दिन में पक जाती हैं।

तो यह अवधि महत्वपूर्ण इसलिए हो जाती हैं अगर हम देरी से जड़ो को निकालते हैं तो जड़ो का आकार बड़ा हो जाता हैं। इसके अलावा मूली व शलजम के अंदर स्पंजी टिस्सू के विकास होने की संभावना बढ़ जाती हैं। इसी प्रकार हम गाजर में देरी करते हैं तो जड़ों का विकास ज्यादा हो जाता हैं या जड़े सड़ जाती हैं। इसलिए समय पर निकालने व खुदाई करने के बाद जड़ो का चयन करना बहुत मह्त्वपूर्ण हैं।

जड़ो को उनके अनुरूप विकसित देखने के लिए जड़ों का टॉर्क (ऊपरी भाग) मध्यम आकार का होना चाहिए। जड़ फटी हुई नहीं होना चाहिए, उसके ऊपर कोई दाग या धब्बा नही होना चाहिए।

गाजर की किस्म पूसा रूधिरा की जड़ ऊपर से नीचे तक लाल होती हैं। अगर कई बार मिट्टी चढ़ाने में कमी रह जाती हैं, तो इसकी ऊपरी जड़े नीली हो जाती हैं। यह एक अवांछनीय लक्षण हैं। जो जड़े जकड़ा बन गई हैं, फट गई हैं या उनमें किसी प्रकार विकृति हैं तो उन जड़ो को निकाल दें।

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गाजर की किस्में पूसा रूधिरा, पूसा असिता और पूसा वसुधा। इन तीनों किस्मों के कोर व गुदा का रंग एक जैसा होता हैं जिसको सेल्फ कोर कहते हैं। तो इनमें सेल्फ कोर होना चाहिए। इसके अलावा पूसा चेतकी में स्पंजी टिस्सू नहीं होना चाहिए।

कैसे करें रोपाई

ये संरक्षण करने के बाद गाजर के ऊपरी भाग को जितना हम एक मुट्ठी में जड़ को रख पाते हैं उस भाग को छोड़कर ऊपर का सारा हिस्सा काट दें। फिर वापस से रोपाई करें।

गाजर में रोपाई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी रखें। इसी प्रकार मूली में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 45-50 सेमी रखना उचित रहता हैं। वही शलजम में रोपाई के लिए पंक्ति से पक्तिं की दूरी 50 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी. पर्याप्त रहती हैं।

ध्यान देने योग्य बातें

अनुवांशिक रूप से शुध्द बीज उत्पादन करने के लिए आपको प्रथक्करण दूरी का ध्यान रखना हैं। प्रथक्करण दूरी मतलब आपने जो किस्म लगाई हैं उसके आस-पास में निर्धारित दूरी के अंदर कोई दूसरी किस्म नहीं होना चाहिए।

गाजर की फसल में आधार बीज उत्पादन के लिए 1000 मीटर की दूरी होना चाहिए। खेत के चारों तऱफ 1 हजार मीटर तक कोई अन्य गाजर की किस्म किसी भी तरह से नहीं उगाई जानी चाहिए। अगर आप प्रमाणित बीज का उत्पादन कर रहे हैं तो उसके लिए 600 मीटर की दूरी पर्याप्त रहती हैं।

अगर बात करें मूली, चुकंदर एंव शलजम की तो इनमें आधार बीज उत्पादन के लिए 1600 मीटर की दूरी होनी चाहिए। वही प्रमाणित बीज उत्पादन के लिए 1000 मीटर की दूरी रखना जरूरी हैं।

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