धान कटाई के बाद खेत खाली? अब दलहन-तिलहन से कमाएं ज्यादा
13 फ़रवरी 2025, नई दिल्ली: धान कटाई के बाद खेत खाली? अब दलहन-तिलहन से कमाएं ज्यादा – धान कटने के बाद परती (खाली) पड़ी रहने वाली जमीन को अब दलहन और तिलहन की खेती से उपजाऊ बनाया जा रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना के वैज्ञानिकों ने गया जिले के टिकारी प्रखंड के गुलेरियाचक गांव में इस नई तकनीक का सफल परीक्षण किया है। यह परियोजना 2023 में शुरू की गई थी और अब इसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं।
इस परियोजना के तहत किसानों को बताया गया कि धान के बाद उनकी भूमि खाली न रहे, बल्कि दलहन और तिलहन जैसी फसलें लगाकर वे अपनी आय बढ़ा सकते हैं। अभी तक इस प्रयोग को 300 एकड़ में लागू किया गया है, जहां कम अवधि वाली धान की कटाई के बाद अवशिष्ट नमी का उपयोग कर दूसरी फसलें उगाने की कोशिश की जा रही है।
गया की 25 हजार हेक्टेयर परती भूमि को हरा-भरा बनाने की पहल
गया जिले में करीब 25 हजार हेक्टेयर धान-परती भूमि है, जहां आमतौर पर धान की कटाई के बाद कोई दूसरी फसल नहीं लगाई जाती। इससे किसानों को साल के बाकी महीनों में खेत खाली छोड़ने पड़ते हैं, जिससे उनकी आय सीमित रहती है। इस स्थिति को सुधारने के लिए वैज्ञानिकों की एक बहु-विषयक टीम धान के बाद दलहन और तिलहन उगाने की रणनीति पर काम कर रही है।
परियोजना के प्रमुख वैज्ञानिकों डॉ. अनुप दास (संस्थान के निदेशक) और डॉ. राकेश कुमार (वरिष्ठ वैज्ञानिक) ने किसानों को उन्नत कृषि तकनीकों से अवगत कराया और बताया कि किस तरह से परती भूमि का प्रबंधन कर उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा सकती है।
8 फरवरी 2025 को टिकारी प्रखंड के गुलेरियाचक गांव में किसानों के लिए एक कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें उन्नत कृषि तकनीकों पर जानकारी दी गई। इस कार्यक्रम में श्री राम कुमार मीना (तकनीशियन), श्री रणधीर कुमार (वरिष्ठ अनुसंधान फेलो) और श्री श्रीकांत चौबे (प्रक्षेत्र सहयोगी) ने किसानों को मृदा जांच, जल संरक्षण उपाय और उर्वरक प्रबंधन पर विशेष जानकारी दी।
वैज्ञानिकों ने किसानों के खेतों से चना, मसूर और कुसुम के लिए मिट्टी के नमूने लिए, ताकि यह जांचा जा सके कि इन फसलों के लिए मिट्टी कितनी उपयुक्त है। कार्यशाला में किसानों को मिट्टी की नमी बनाए रखने के उपायों के साथ-साथ उन्नत किस्मों के चयन और उनकी पैदावार बढ़ाने के तरीकों पर भी जानकारी दी गई। 75 एकड़ में सर्वोत्तम किस्मों का परीक्षण किया गया है, जिससे किसानों को बेहतर फसल विकल्पों की जानकारी मिल सके।
सूखे में भी उपज बढ़ाने पर जोर, एनपीके स्प्रे का सुझाव
कार्यशाला में किसानों को बताया गया कि एनपीके (15:15:15) स्प्रे का उपयोग फसल की सूखा सहनशीलता को बढ़ा सकता है और कम पानी में भी अच्छी उपज मिल सकती है। वैज्ञानिकों ने बताया कि इस उर्वरक का प्रयोग फसलों की उत्पादन क्षमता सुधारने में मदद करता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां जल की उपलब्धता कम होती है।
इस कार्यक्रम को सफल बनाने में कृषि विज्ञान केंद्र, मानपुर, गया की अहम भूमिका रही। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर इस मॉडल को बड़े स्तर पर अपनाया जाए, तो गया और आसपास के इलाकों में किसानों की आमदनी में सुधार हो सकता है। हालाँकि, इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि किसानों को जरूरी संसाधन और तकनीकी सहायता कितनी मिलती है।
कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों ने इस पहल में रुचि दिखाई और कई ने दलहन और तिलहन की खेती शुरू करने की इच्छा जताई। उनका कहना है कि अगर सरकार और कृषि संस्थान इस तरह की योजनाओं को लगातार बढ़ावा दें, तो इससे खेती का परिदृश्य बदल सकता है।
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