फसल की खेती (Crop Cultivation)उद्यानिकी (Horticulture)

गोभीवर्गीय सब्जियों के हानिकारक कीट एवं प्रबंधन

लेखक: डॉ. आर. एस. मराबी (सहायक प्राध्यापक) कीट विज्ञान विभाग,;  भुनेश्वरी देवी (एम.एससी. कृषि) प्रसार शिक्षा, कृषि महाविद्यालय, ज.ने.कृ.वि.वि., जबलपुर

02 दिसम्बर 2023, नई दिल्ली: गोभीवर्गीय सब्जियों के हानिकारक कीट एवं प्रबंधन – भारत को विश्व में गोभीवर्गीय सब्जियों के उत्पादन करने वाले देशों में द्वितीय स्थान प्राप्त है। गोभीवर्गीय सब्जियां शीतऋतु एवं ग्रीष्मऋतु में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें हैं जैसे पत्तागोभी, फूलगोभी एवं गांठगोभी। वर्तमान में इन फसलों को हमारे किसान भाई एक नकदी फसल के रूप में उगा रहे हैं। इन सब्जियों का उपयोग हमारे भोजन में महत्वपूर्ण स्थान है जिसके द्वारा हमारे शरीर में आवश्यक पोषक तत्वों जैसे विटामिन्स, प्रोटीन, आयरन एवं क्रूड रेशेयुक्त आदि की पूर्ति होती है। गोभी के उपयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार करने में किया जाता है। प्राय: देखा गया है कि पिछले कुछ दशकों से गोभीवर्गीय फसलों में विभिन्न प्रकार के कीट एवं व्याधियों का प्रकोप हो रहा है जिससे इनके उत्पादन में काफी कमी आयी है। गोभाीवर्गीय सब्जियों को क्षति पहुंचाने वाले प्रमुख हानिकारक कीट जैसे हीरक पृष्ठ शलभ, पत्तागोभी की तितली, पत्तगोभी की अर्धकुण्लाकार इल्ली, तम्बाकू की इल्ली, माहू एवं चित्तीदार मत्कुण आदि हैं जो इस प्रकार के सब्जियों के उत्पादन को कम करने वाले मुख्य कारक हैं। अत: इन हानिकारक कीटों को समय पर पहचान कर उनके उचित प्रबंधन उपाय को अपनाकर इसके द्वारा होने वाले आर्थिक नुकसान से फसल को बचाया जा सकता है और किसान भाई इस प्रकार अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

हीरक पृष्ठ शलभ (प्लुटेल्ला जाइलोसटेल्ला ): इस कीट के वयस्क शलभ भूरे रंग की होती हैं जिसके पंख संकरी भूरे सफेद तथा इनके पृष्ठ भाग में हीरे जैसे सफेद धब्बे पंखों के सिकुड़ने पर बनती है जिसके कारण इसे डायमंड बैक मॉथ कहते हैं। इसकी इल्ली अवस्था जब पूर्ण विकसित हो जाती है तो 8 मि.मी. लम्बी एवं हल्के पीले हरे रंग की जिसके शरीर पर कत्थई बालों के जैसे रोम होते हैं।

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क्षति: इस कीट की सिर्फ  इल्ली अवस्था ही हानिकारक होती है। प्रारंभ में छोटी हरी इल्लियां पत्तियों के इपिडर्मिस को खुरचकर खाती हैं जिससे पत्तियों में सफेद धब्बे बन जाते हैं तथा पूर्ण रूप से विकसित इल्लियां पत्तियों में छिद्र कर फसल को नुकसान करती हैं। अधिक आक्रमण होने पर पूरी पत्तियां कंकालनुमा हो जाती हैं। यह कीट पत्तागोभी, फूलगोभी एवं गांठगोभी को अत्यधिक नुकसान पहुंचाती है।

नियंत्रण: फसल के कटाई उपरान्त पौधों के अवशेषों को एकत्र कर नष्ट कर दें। सरसों को प्रपंच फसल के रूप में पत्तागोभी एवं सरसों को 2:1 के अनुपात में, जिसमें सरसों को मुख्य फसल से 10 दिन पहले लगाने से हीरक पृष्ठ शलभ मादा कीट अपने अण्डों का निरोपण सरसों पर कर देती हैं जिन्हें उपयुक्त कीटनाशक दवाईयों का छिड़काव कर नष्ट कर दें। वयस्क कीटों को आकर्षित करने के लिए फेरोमोन प्रपंचों को 12 नग प्रति हेक्टेयर के दर से लगायें। एक ही कुल के फसल को लगातार एक ही खेत में लगाने से बचें। नीम के बीज को सुखाकर उसके सत्व का 5 प्रतिशत प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करें। बेसिलस थूरेन्जेनेसिस कुर्सटकी नामक जैविक कीटनाशक दवाई 2 ग्राम या ट्रायक्लोरोफेन 50 ई.सी. का 1 मिली/लीटर  या  इमामेक्टिन बेन्जोएट 5 प्रतिशत को 0.4 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। जैविक प्रबंधन हेतु खेत में प्राकृतिक शत्रुओं जैसे सिरफिड मक्खी, काक्सीनेलिड भृंग एवं मकड़ियों को संर्वधन करें।

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पत्तागोभी की तितली (पाइरिस ब्रेसीकी): वयस्क तितली कीट 5 से 7 सेंटीमीटर लम्बी एवं पीला-सफेद रंग की होती है जिसके अग्र पंख के किनारे पर काले धब्बे एवं मादा वयस्क कीट के अग्र पंख पर 2 काले धब्बे पायी जाती है। इनके इल्लियां नीले हरे रंग होती हैं जिनके शरीर पर काले धब्बे पाये जाते हैं।

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क्षति: इस कीट की क्षतिकारक अवस्था इल्ली होती है। प्रथम इन्सटार की इल्ली पत्तियों के ऊपरी सतह से इपिडरमिस को खुरचकर खाती है एवं पूर्णविकसित इल्लियां पत्तियों के किनारे से खाती हैं। इस कीट के द्वारा अधिक नुकसान करने पर ग्रसित पत्तियों के सिर्फ मुख्य शिरायें ही दिखायी देती हैं।

नियंत्रण: शुरूआती अवस्था में अण्डा निरोपित पत्तियों को एवं इल्लियों के समूह को एकत्र कर नष्ट कर देने से इसके द्वारा होने वाली आर्थिक क्षति से फसल को बचाया जा सकता है। खेत में इसके परिजीविव्याम कीट जैसे कोटेशिया ग्लोमेराटा का संवर्धन करें। रासायनिक कीटनाशक दवा फेनवलरेट 1 मि.ली. या ट्रायजोफास 40 ई.सी. 1.5 मि.ली. या कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 2 मि.ली. मात्रा को प्रति लीटर पानी में मिलाकार छिड़काव करें।

पत्तगोभी की अर्धकुण्लाकार इल्ली (थायसेनोप्लूसिया ओरीचैल्सिया): इस कीट की इल्ली थोड़ा हरे रंग की एवं शरीर के दोनों तरफ एक-एक सफेद धारी होती है। वयस्क कीट लंबाई में लगभग 25 मिमी पंख विस्तार सहित होती है। इसके पंख भूरे मटमैले एवं अग्रपंखों पर एक सुनहरे चमकदार धब्बा पाया जाता है।

क्षति: इस कीट की हानिकारक अवस्था इल्ली होती है जो प्रांरभ में पत्तियों पर छिद्र बनाकर नुकसान करती है तथा अत्यधिक आक्रमण होने पर पूरे पत्ती के हरे भाग को खा जाती है तथा शेष शिरायें ही दिखायी देती हैं।

नियंत्रण: भूमि में पड़े संखी अवस्था को नष्ट करने हेतु गहरी जुताई करें। प्रारंभ में खेत में इल्लियों के दिखायी देने पर उन्हें पकड़ कर नष्ट कर दें। वयस्क कीटों को आकर्षित करने हेतु प्रति हेक्टेयर के हिसाब से एक प्रकाश प्रंपच लगायें। वयस्क नर कीटों के आकर्षित करने हेतु फेरोमोन प्रपंच को 15 नग प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 15 मीटर की दूरी पर खेत में लगायें। कीटनाशक रसायन क्लोरोपायरीफास 20 ईसी को 2 लीटर या अधिक आक्रमण होने पर प्रोफेनोफॉस+साइपरमेथ्रिन 44 ई.सी. 1 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।

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तम्बाकू की इल्ली (स्पोडोप्टेरा लिटुरा): वयस्क शलभ कीट आकार में लगभग 22 मि.मी. एवं पंख विस्तार सहित 40 मि.मी. लम्बी होती है जिसके अग्र पंखों के रंग भूरे, धूसर एवं सफेद धब्बे होते हैं। पिछले पंखों के रंग सफेद रंग के साथ भूरापन लिए हुए होतेे हैं। प्रारंभिक अवस्था में इसके इल्लियों का रंग कुछ हरापन लिए हुए सिर पर दो काले धब्बे होते हैं। पूर्ण विकसित इल्ली के शरीर पर प्रत्येक उदरीय खण्ड पर दोनों तरफ एक-एक काले एवं भूरे धब्बे तथा धूसर एवं गहरे भूरे रंग के तथा इनके पार्श्व सतह पर लहरियादार भूरे सफेद लाइन होती है। प्रारंभ में इसकी इल्ली पत्तियों के हरे भाग को खुरचकर खाती हैं जिससे प्रभावित पत्तियों की सतह सफेद हो जाती है। पूर्ण विकसित इल्ली फूलगोभी एवं पत्तियों में छेदकर हानि पहुंचाती है।

नियंत्रण: खेत में हमेशा साफ -सफाई बनाये रखें। भूमि में पड़े संखी या प्यूपा अवस्था को नष्ट करने हेतु गहरी जुताई करें। प्रपंच फसल के रूप में फसल के चारों तरफ  अरंडी को लगाने से मुख्य फसल सुरक्षित रहती है। हाथों से अण्डों के गुच्छों एवं इल्लियों को एकत्र कर नष्ट कर देें। वयस्क कीटों को आकर्षित करने हेतु एक प्रकाश प्रंपच प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगायें। वयस्क नर कीटों के आकर्षित करने हेतु फेरोमोन प्रपंच को 15 नग प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 15 मीटर की दूरी पर खेत में लगायें। 250 इल्लियों के समतुल्य एस.एल. न्यूक्लियर पोलीहाईड्रोसिस विषाणु नामक दवा को 2.5 किग्रा गुड़  एवं 0.1 प्रतिशत टिपाल मिलाकार छिड़काव करें या क्लोरोपायरीफास 20 ईसी को 2 लीटर प्रति हेक्टेयर के दर से लगभग 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

माहू या चेंपा (ब्रेविकारनी ब्रेसिकी): इस कीट के शरीर का आकार नाशपाती के फल जैसे होते हैं। इस कीट के शीशु अवस्था प्रारंभ में हरा फिर पीलापन तथा वयस्क कीट के शरीर का रंग पीला-हरापन लिए हुए होती है तथा इनके आठवें खंड के उदरीय भाग पर एक जोड़ी कोर्निकल्स पायी जाती है जो कि शहद जैसी तरल पदार्थ स्त्रावित करती हैं जो बाद में कवक बीमारी फैलाती हैं। वयस्क कीट पंखहीन एवं पंखयुक्त दोनों प्रकार के होते हैं, पंख हरे रंग के होते हैं।

क्षति: इस कीट के शीशु एवं वयस्क दोनों ही अवस्थायें फसल को नुकसान पहुंचाती हैं। इस कीट के मुखांग चुभाने एवं चूसने वाले होते हैं जिससे ये पत्तियों से रस चूसकर फसल को गोभीवर्गीय सब्जियों को हानि पहुंचाती हैं जिसके कारण ग्रसित पौधे पीलापन लिये सिकुड़ जाती हैं एवं पौधों की वृद्धि रूक जाती है। पौधों पर कीटों की संख्या ज्यादातर पत्तियों की निचले सतह एवं शीर्ष पर पाये जाते हैं।

नियंत्रण: पंखयुक्त वयस्क कीटों को मारने हेतु पीलापान स्टीकी ट्रेप (चिपचिपा प्रपंच) लगायें। अधिक प्रकोप होने पर दैहिक/सर्वांगी रासायनिक कीटनाशक दवाई जैसे डाइमेथोयेट 30 ईसी का 2 मिली या  एसिटामप्रिड 20 एस पी का 0.2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यदि आवश्यक हो तो 15 दिन बाद इनमें से किसी एक दवा का फिर से छिड़काव करें।

चित्तीदार मत्कुण (बगराडा हिलेरिस): वयस्क कीट का आकार लंबाई में लगभग 5 मि.मी. एवं चौड़ाई में 4 मि.मी. के होते हैं। यह कीट चमकीले काले रंग के होते हैं तथा बीच-बीच में नारंगी एवं पीले रंग के चकत्ते होते हैं। मत्कुण कीट का सिर छोटा तिकोना आंखें काली तथा एन्टिनी पांच खण्डीय होते हैं। इसके पीठ जिसे स्कूटेलम कहते हैं काफी बड़ा होता है।

क्षति: इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ दोनों ही अवस्थायें क्षतिकारक होती है जिनके चुभाने एवं चूसने वाले मुखांगें होते हैं। दोनों अवस्थायें पत्तियों, कोमल तनों एवं फूलों से रस चूसती हैं। ग्रसित पौधों पर काले कवक का भी आक्रमण हो जाता है जिससे पौधों के विभिन्न भागों पर काले धब्बे दिखायी देते हैं। ग्रसित पौधों की वृद्धि रूक जाती है जिससे सब्जियां बाजार में बेचने योग्य नहीं होते।

नियंत्रण: खेत की साफ-सफाई एवं खरपतवार रहित बनाये रखें। शिशु एवं प्रौढ़ों को हस्त जाल से पकड़कर नष्ट कर दें। खेत में सिंचाई करते समय पानी में क्रूड आयल को लगभग 4.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिला दें जिससे भूमि के दरारों में छिपे कीट मर जाते हैं। अधिक प्रकोप होने पर दैहिक/सर्वांगी रासायनिक कीटनाशक दवाई जैसे इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. 0.25 मिली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

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