Crop Cultivation (फसल की खेती)

गेहूँ की सफल खेती के सूत्र

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  • अनिल कुमार सिंह, कैलाश चन्द्र शर्मा
  • उपेन्द्र सिंह , दिव्या अंबटी

2 अक्टूबर 2021, गेहूँ की सफल खेती के सूत्र

  • खेत की तैयारी (जुताई तथा पठार) खरीफ फसल कटते ही करें।
  • पलेवा नहीं करें, बल्कि सूखे में बुवाई करके तुरन्त सिंचाई करें।
  • क्षेत्र के लिए अनुशंसित प्रजातियों का ही इस्तेमाल करें। प्रजाति का चुनाव अपने संसाधनों यानि उपलब्ध सिंचाई की मात्रा तथा आवश्यकताओं के अनुरूप करें।
  • सूखा रोधी एवं कम सिंचाई चाहने वाली उन्नत किस्मों का अधिकाधिक उपयोग करें।
  • पोषक तत्वों का उपयोग मृदा स्वास्थ्य जाँच रिपोर्ट के आधार पर करें।
  • नत्रजन: स्फुर: पोटाश संतुलित मात्रा अर्थात् 4:2:1 के अनुपात में डालें।

गेहूं की फसल को चूहों से बचाने के उपाय बतायें

  • ऊँचे कद की (कम सिंचाई वाली) जातियों में नत्रजन:स्फुर:पोटाश की मात्रा 80:40:20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुआई से पूर्व ही देें।
  • बौनी शरबती किस्मों को नत्रजन: स्फुर: पोटाश की मात्रा 120:60:30 तथा मालवी किस्मों को 140:70:35 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर दें।
  • नत्रजन की आधी मात्रा और स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई पूर्व दें तथा नत्रजन की शेष आधी मात्रा प्रथम सिंचाई (बुआई के 20 दिन बाद) दें।
  • बुवाई से पहले मिश्रित खाद जैसे 12:32:16 तथा यूरिया का उपयोग करें।
  • मृदा में जीवांश पदार्थ यानि कार्बनिक या हरी खादों का प्रति तीसरे वर्ष प्रयोग अवश्य करें ताकि भूमि को सूक्ष्म तत्वों की कमी से बचा जा सके।
  • खाद तथा बीज अलग-अलग बोयें, खाद गहरा (ढाई से तीन इंच) तथा बीज उथला (एक से डेढ़ इंच गहरा) बोयें, बुवाई पश्चात पठार/पाटा न करें।
  • बुवाई के बाद खेत में दोनों ओर से (आड़ी तथा खड़ी) नालियाँ प्रत्येक 15-20 मीटर (खेत के ढाल के अनुसार) पर बनायें तथा बुवाई के तुरन्त बाद इन्हीं नालियों द्वारा बारी-बारी से क्यारियों में सिंचाई करें। 
  • अद्र्धसिंचित/कम सिंचाई (1-2 सिंचाई) वाली प्रजातियों में एक से दो बार सिंचाई 35-40 दिन के अंतराल पर करें।
  • पूर्ण सिंचित प्रजातियों में 20-20 दिन के अन्तराल पर 4 सिंचाई करें। 
  • सिंचाई समय पर, निर्धारित मात्रा में, तथा अनुशंसित अंतराल पर ही करें।
  • खड़ी फसल में डोरे (व्हील हो) या मजदूरों द्वारा खरपतवारों की सफाई करायें।
  • खेती में जहरीले रसायनों का उपयोग सीमित करें। रोग व नीदा नियत्रंण के लिये जीवनाशक रसायनों का उपयोग वैज्ञानिक संस्तुति के आधार पर ही करें।
  • चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिये 2-4 डी 650 ग्राम सक्रिय तत्व/हे. अथवा मैटसल्फ्युरॉन मिथाइल 4 ग्राम सक्रिय तत्व/हे. 600 लीटर पानी में मिलाकर 30-35 दिन की फसल होने पर छिडक़ें।
  • संकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिये क्लॉडीनेफॉप प्रोपरजिल – 60 ग्राम सक्रिय तत्व/हे. 600 लीटर पानी में मिलाकर 30-35 दिन की फसल होने पर छिडक़ें।
  • दोनों प्रकार के खरपतवारों के लियेे एटलान्टिस 400 मिलीलीटर अथवा वैस्टा 400 ग्राम अथवा सल्फोसल्फ्यूरॉन 25 ग्राम सक्रिय तत्व/हे. अथवा सल्फोसल्फ्यूरॉन 25 ग्राम सक्रिय तत्व/हे$ मैटसल्फ्यूरॉन मिथाइल 4 ग्राम सक्रिय तत्व/हे. 600 लीटर पानी में मिलाकर 30-35 दिन की फसल होने पर छिडक़ें।
  • गेरूआ रोग से बचाव तथा कुपोषण निवारण के लिए कम से कम आधे क्षेत्रफल में मालवी गेहूं की नई किस्मों की खेती अवश्य करें।
  • सतत अच्छी उपज के लिए फसल विविधता एवं किस्म विविधता अपनायें।
  • फसल अवशेषों को जलायें नहीं, उनकी खाद बनायें।
  • परस्पर सहभागिता व सहकारी समूहों के माध्यम से गेहूं की सामुदायिक खेती, वैज्ञानिक भडारण व यथोचित समय पर बिक्री द्वारा खेती का लाभांश बढ़ायें।
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One thought on “गेहूँ की सफल खेती के सूत्र

  • बहोत ही फायदेमंद जाणकारी हे..
    आपका धन्यवाद जी

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