किसान हो जाएंगे मालामाल! ठंड में उगाएं ये हाई-यील्ड गाजर की किस्में, मिलेगी प्रति हेक्टेयर 30 टन तक पैदावार
03 नवंबर 2025, नई दिल्ली: किसान हो जाएंगे मालामाल! ठंड में उगाएं ये हाई-यील्ड गाजर की किस्में, मिलेगी प्रति हेक्टेयर 30 टन तक पैदावार – देशभर में सर्दियों में गाजर की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। जल वाली सब्जियों में गाजर एक प्रमुख फसल हैं, जो किसानों को कम समय में अच्छा मुनाफा दिलाती है। अब किसान हाई-यील्ड किस्मों का अधिक उपयोग करते हैं , ताकि उन्हें अधिक मुनाफा मिल सकें। ऐसे में यहां हम आपको गाजर की हाई-यील्ड – उष्णवर्गीय और शीतोष्णवर्गीय किस्मों के बारे में बताएंगे, जिनसे आप प्रति हेक्टेयर 30 टन तक की पैदावार पा सकते हैं।
गाजर की हाई-यील्ड किस्में
गाजर की प्रमुख किस्मों को दो श्रेणी में बांटा गया हैं। इसमें उष्णवर्गीय और शीतोष्णवर्गीय किस्में शामिल है। यह किस्में कुछ इस प्रकार है-
गाजर की प्रमुख उष्णवर्गीय किस्में
1. पूसा वसुधा- पूसा वसुधा एक उष्णवर्गीय श्रेणी की फसल हैं। पूसा वसुधा करीब 85-90 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती हैं। यह किस्म 35 टन प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्रदान करती हैं।
2. पूसा रूधिरा- पूसा रूधिरा एक उष्णवर्गीय श्रेणी की फसल हैं। पूसा रूधिरा करीब 90 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती हैं। यह किस्म 25-30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्रदान करती हैं।
3. पूसा अशिता- पूसा अशिता एक उष्णवर्गीय श्रेणी की फसल हैं। पूसा अशिता एक काली रंग की किस्म हैं। गहरे बैंगनी रंग जिसको काला गाजर भी कहा जाता हैं। पूसा अशिता करीब 100-110 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती हैं। इसकी औसतन पैदावार 20-25 टन प्रति हेक्टेयर हैं।
4. पूसा कुल्फी– पूसा अशिता एक उष्णवर्गीय श्रेणी की फसल हैं। पूसा अशिता एक पीले रंग की किस्म हैं। पूसा अशिता करीब 90- 00 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती हैं। इसकी औसतन पैदावार 25 टन प्रति हेक्टेयर हैं।
ये जितनी उष्ण वर्गीय श्रेणी की किस्म है इनको किसान उत्तर भारतीय मैदानी क्षेत्रों में सितंबर के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक बुवाई कर सकते हैं।
गाजर की प्रमुख शीतोष्ण वर्गीय किस्में
1. पूसा नेनटीस व पूसा जमदग्नि– पूसा नेनटीस व पूसा जमदन्गि यह दोनों ही किस्में शीतोष्णवर्गीय श्रेणी की फसल हैं। पूसा नेनटीस व पूसा जमदग्नि करीब 100-110 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती हैं। यह दोनों ही किस्में 10-12 टन प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्रदान करती हैं।
2. पूसा नयनज्योति- पूसा नयनज्योति एक शीतोष्णवर्गीय श्रेणी की फसल हैं। पूसा नयनज्योति एक संकर फसल किस्म हैं। यह करीब 100 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती हैं। यह किस्म 20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्रदान करती हैं।
गाजर की बुवाई से पहले करें ये उपाय
सर्दियों के मौसम में जो जड़ों वाली सब्जियां लगाई जाती हैं उनमें गाजर भी शामिल हैं। इन फसलों की खेती करने से पहले इसकी मिट्टी का चयन बहुत जरूरी हैं। इसके लिए बलुई मिट्टी व दोमट मिट्टी होनी चाहिए।
इसके अलावा मिट्टी की अच्छे से जुताई कर दे तो फासल्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा, नीम की खली 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मि्टी में अच्छी तरह से मिला दें। इसके साथ ही खेत में मेड़ बना दे। इन मे़ड़ों के बीच अंतराल 45 सेमी. का होना चाहिए और मेड़ों पर लाइन से बुवाई करते हैं।
इसके अलावा बुवाई करने से पहले खेत की सिंचाई कर लें ताकि मिट्टी में नमी बने रहे हैं। बुवाई करने के तुरंत बाद खरपतवार नाशी पेंडीमेथिलीन को 3 लीटर प्रति 1000 लीटर पानी में मिलाकर पूरे खेत में स्प्रे करें।
अगर बीज उपचारित नही तो उसको आप फफूंदी नाशी कैप्टान या थिरम (2.5-3 ग्राम पाउडर को लेकर 1 किलोग्रम बीज में मिलाकर बिजाई (बुवाई) करें।
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