फसल की खेती (Crop Cultivation)

सब्जी उत्पादन का विकास लाभकारी खेती का आईना

सब्जी उत्पादन का विकास लाभकारी खेती का आईना – कृषि को लाभ का धंधा बनाने की दिशा में सब्जी उत्पादन का महत्व आज की स्थिति में बहुत बढ़ गया है। भारत एक शाकाहारी प्रधान देश है जिसमें सब्जियों के द्वारा मानव को सभी प्रकार के पोषक तत्व आसानी से उपलब्ध हो सकते हैं। सब्जियों में केवल पोषक तत्व ही नहीं होता है बल्कि कई सब्जियां जैसे करेला, लौकी, भिंडी, टमाटर, ककड़ी, परवल तथा गाजर एवं मूली के औषधि गुणों से सभी परिचित हंै। पत्तीदार सब्जियों के रूप में प्रकृति ने हमें एक अनमोल भेंट प्रदान की है। सब्जियों से कुपोषण की स्थिति से निपटा जाना आसान हो सकता है। तथा नित्य थोड़ा बहुत पैसा कमाया जा सकता है जिसमें रोजमर्रा के खर्च की व्यवस्था सुलभ हो सकती है। यही कारण है कि अधिकांश सब्जियों को व्यवसायिक दृष्टि से नगदी फसल माना जाता है जैसे आलू का उपयोग हर बड़े-छोटे घरों में प्राय: रोज ही किया जाता है और यदि इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाये तो आलू के विभिन्न उत्पाद हाथों-हाथ बाजार में महंगे दामों में बेचे जा सकते हैं। इसके लिये बाजार में आज समस्या नहीं रह गई है। भारत में सदियों से सब्जियों का उत्पादन होता आ रहा है।

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विश्व में चीन के बाद भारत दूसरा देश है जहां सब्जी उत्पादन का रकबा आता है। विश्व के कुल सब्जी उत्पादन की 15 प्रतिशत हिस्सेदारी हमारे देश की है। परंतु उत्पादन तथा उत्पादकता के हिसाब से हम आज भी बहुत पीछे हैं। वर्तमान में हमारे देश में लगभग 80 लाख हेक्टर के आसपास में सब्जी उत्पादन किया जाता है और उत्पादन लगभग 9 करोड़ टन तक होता है। हमारे प्रदेश में सभी प्रकार के सब्जियों के उत्पादन के लिये उपयुक्त भूमि, जलवायु, वर्षा तथा सिंचाई के लिये पर्याप्त सुविधा उपलब्ध है। आज की स्थिति में फिर भी सब्जियों का क्षेत्र लगभग 60,3675 हेक्टर तथा उत्पादन लगभग 124.53 लाख टन है। जिसके बढ़ाये जाने की आवश्यकता है क्योंकि आज भी हम समाज को उसकी मांग के अनुरूप सब्जियां उपलब्ध कराने में पीछे हैं।

भोजन शास्त्रियों की मानें तो भोजन को स्वादिष्ट, पौष्टिक तथा संतुलित बनाने के लिये लगभग 300 ग्राम सब्जी प्रतिदिन, प्रति व्यक्ति के उपयोग में आनी चाहिये। परंतु यह मात्रा आज भी अपेक्षित है। आज से 4 दशक पहले की स्थिति पर एक नजर डालें तो ग्रीष्मकाल में बाजार में केवल आलू-प्याज उपलब्ध रहता था। हरी सब्जियों के लिये बरसात तथा शरद ऋतुओं की प्रतीक्षा करनी पड़ती थी, पंरतु सतत अनुसंधान के परिणामस्वरूप आज सभी ऋतुओं के अनुकूल अनेकों संकर एवं विकसित जातियां उपलब्ध हैं। जिसमें उत्पादकता बढ़ाई जाने लगी है। इसके अलावा निजी कम्पनियों की भी भागीदारी सराहनीय है। जो करीब-करीब सब्जियों की संकर किस्मों को सरलता से उपलब्ध करा रही है।

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शासन द्वारा प्रचलित अनुदान सभी क्षेत्र एवं सब्जी विशेष के उत्पादन के लिये उपलब्ध है। आज का कृषक चाहे तो इसका लाभ उठाकर सब्जी उत्पादन में क्रांति ला सकता है। स्थिति यह है कि किसान और उपभोक्ता के बीच में बिचोलियों की भूमिका बहुत बढ़ गई है। जो सस्ते दामों में सब्जी लेकर दोगुने दामों में उपभोक्ताओं को उपलब्ध हो पाती है। इस दिशा में हरी-ताजी सब्जियों के भंडारण का जितना विस्तार होगा कृषकों को उतने अधिक दाम मिल सकेंगे। परंतु वर्तमान में इसके अभाव का लाभ उठाकर औने-पौने दाम में क्रय चल रहा परंतु विक्रय पर लगाई जाने वाली नकेल अभी बाकी है।

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