मटर की खेती का पूरा फॉर्मूला: सही बीज मात्रा, उर्वरक और बुवाई से बढ़ेगी पैदावार
29 अक्टूबर 2025, नई दिल्ली: मटर की खेती का पूरा फॉर्मूला: सही बीज मात्रा, उर्वरक और बुवाई से बढ़ेगी पैदावार – देशभर में रबी फसलों की बुवाई शुरू हो गई है। ऐसे तो रबी सीजन की प्रमुख फसलें गेहूं और सरसों को माना जाता है, लेकिन इस सीजन में दलहन फसलें भी बड़े पैमाने पर उगाई जाती है, जो किसानों को फायदे का सौदा साबित होती हैं।
मटर, एक ऐसी फसल है, जो न केवल अपने पौष्टिक गुणों से भरपूर है, बल्कि भारतीय रसोई में भी इसकी खास अहमियत है। साथ ही, मटर का उपयोग दाल के रूप में भी किया जाता है। अगर आप भी इस सीजन में मटर की खेती करने का विचार कर रहे हैं, तो आपको सबसे पहले खेत की तैयारी और उचित देखभाल और उन्नत किस्मों के बारे में जानना बेहद जरूरी है। सही तकनीक और अच्छे ख्याल से आप मटर की बेहतरीन पैदावार प्राप्त कर सकते हैं और अपनी शानदार कमाई कर सकते हैं।
मटर की खेती के लिए खेत की तैयारी कैसे करें
मटर एक शीत ऋतु की फसल है, जो ठंडे मौसम में अच्छी पैदावार देती है। इस फसल के लिए भुरभुरी और दोमट मिट्टी उत्तम मानी जाती है, क्योंकि ऐसी मिट्टी में पानी का संचय और वायु का संचार अच्छा होता है। मटर के अंकुरण के लिए 22 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे उपयुक्त होता है। इसके अलावा, मटर की वृद्धि के लिए 13 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे आदर्श माना जाता है। पाले के प्रभाव से मटर की फसल को बहुत नुकसान हो सकता है, खासकर पुष्पन अवस्था में। इसलिए, मटर को पाले से बचाने के लिए खेत की उचित देखभाल करनी जरूरी है। इस फसल को पाले से सुरक्षित रखने के लिए खेत में पलेवा (गहरी जुताई) करना और पौधों के बीच उचित दूरी बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
बीज की मात्रा- शीघ्र पकने वाली किस्मों के लिए 100-120 किग्रा एवं मध्यम व देर से पकने वाली किस्मों के लिए 80 से 90 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
बीज उपचार- बीज को थायरम 3 ग्राम प्रति किलो या बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति किलो की दर से उपचारित कर लें एवं इसके बाद 3 ग्राम प्रति किलोग्राम राइजोबियम से भी उपचारित करें।
बीज बोने की दूरी- शीघ्र तैयार होने वाली किस्मों के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी एवं पौधे से पौधे की दूरी 5-6 सेमी रखें। मध्यम एवं देर से पकने वाली किस्मों में, 45 सेमी पंक्ति से पंक्ति तथा पौधे से पौधे की दूरी 8-10 सेमी रखें। खेत में पलेवा देकर बतर आने पर 5-7 सेमी गहराई पर बोनी करें।
खाद एवं उर्वरक- अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 20 टन प्रति हे. की दर से खेत की तैयारी के समय में अच्छी तरह से मिला दें। 40 किग्रा यूरिया, 375 सिंग सुपर फास्फेट किग्रा एवं 50 म्यूरेट ऑफ पोटाश बुवाई के समय दें।
मटर की खेती के लिए उन्नतशील किस्में –
पूसा प्रगति – फलियों की लंबाई 9-10 सेमी एवं प्रति फली 8-10 दाने पाये जाते है। पहली तुड़ाई 60-65 दिन में हो जाती है एवं पाउडरी मिल्डयु प्रतिरोधी किस्म है। इसकी उपज 70 क्विंटल हरी फलिया प्रति हेक्टेयर है।
पीएलएम-3 – फलियों की लम्बाई 8-10 सेमी एवं फलियों में 8-10 दाने पाये जाते है। पहली तुड़ाई 60-65 दिन में हो जाती है। इसकी उपज 90 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरी फलियां है।
जवाहर मटर-3- यह किस्म टी-19 एवं अर्लीबेजर के क्रास से विकसित की गई है। इसमें फलियों की लम्बाई 6-7 सेमी एवं फली में दाने 7 तक होते है। इसकी उपज 75 क्विंटल प्रति हे. हरी फलियां है।
जवाहर मटर-4- यह किस्म बीज की बुवाई से 75 दिन में तैयार हो जाती है। फलियों की लम्बाई 7 सेमी एवं फलियों में 6 दाने पाये जाते है इसमें प्रोटीन की मात्रा 28.7 प्रतिशत तक होती है।
जवाहर मटर-1- यह जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई है। इसकी तुड़ाई 70-80 दिन में आरंभ हो जाती है। इसकी उपज 90-120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरी फली है। फली में दानों की संख्या 8 से 9 एवं प्रोटीन प्रतिशत 24.6 प्रतिशत तक होता है।
खरपतवार नियंत्रण
खेतों में पलेवा करके खेत को तैयार करने में काफी संख्या में खरपतवार खत्म हो जाते हैं। रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 48 घंटे के भीतर पेंडीमिथालीन नामक दवा 3.3 किग्रा/ हे. की दर से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
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