आलू उत्पादन की उन्नत तकनीकी
आलू उत्पादन की उन्नत तकनीकी – मप्र में आलू फसल सब्जी के रूप में उगाई जाने वाली एक मुख्य फसल है। अन्य फसलों जैसे- गेहंू, धान एवं मक्का फसलों की तुलना में आलू में अधिक शुष्क पदार्थ खाद्य प्रोटीन एवं मिनरल (खनिज) पाये जाते हैं यह फसल अल्पावधि वाली होने के कारण मिश्रित खेती के लिए लाभदायक है। अत: इसकी व्यापारिक खेती की जाती है।
राज्य में 60 जिलों है तथा राज्य का कृषि से 24 प्रतिशत खेती की जाती है तथा रोजगार के लिए 70 प्रतिशत म.प्र. में आलू की खेती के लिए कुल बुवाई क्षेत्र 47.87 प्रतिशत कुल भौगोलिक क्षेत्र का है। सफल फसल क्षेत्र 182 लाख एवं फसल सघनता 124 प्रतिशत में कार्य किया जाता है। छोटे एवं सीमांत किसानों के पास 60 प्रतिशत भूमि उपलब्ध है तथा 22 प्रतिशत क्षेत्र में कार्य किया जाता है। 31 प्रतिशत कुल बुआई क्षेत्र भूमि में सिंचाई होती है। तथा बाकी 60 प्रतिशत भूमि असिंचित है।
म.प्र. में उच्च भौगोलिक विविधता है। कुल 9 कृषि जलवायु खेत है। विभिन्न प्रकार की सब्जियों के उत्पादन के लिये यहां की मृदा बहुत अच्छी है। भारत में आलू उत्पादन में मप्र का आठवां स्थान है। सन् 2007-08 में प्रदेश में 455549 हेक्टेयर क्षेत्र में बोनी,640128 टन प्रति हेक्टेयर है। वर्ष 2006-08 में मध्यप्रदेश में इंदौर, देवास, शाजापुर,छिंदवाड़ा एवं उज्जैन में मुख्यत: से इस फसल को लगाया जाता है। उत्पादकता की दृष्टि से छिंदवाड़ा म.प्र. मेें सबसे आगे है।
म.प्र. में कृषि जलवायु क्षेत्र : म.प्र. में आलू क्षेत्र पश्चिम मध्य मैदानों एवं उत्तर पूर्वी मैदानों के अंतर्गत आता है। जनवरी-फरवरी में जब तापमान कम रहता है तथा दिन छोटे होता है तब आलू की फसल 60 से 120 दिनों की होती है इस क्षेत्र में सामान्य आलू फसल रोगों से मुक्त होती है। पिछेती अंगमारी इस क्षेत्र में नहीं पायी जाती।
बुआई की विधि : आलू को पौध से पौध 20 से.मी. तथा पंक्ति से पंक्ति 60 से.मी. की दूरी से लगाया जाता है। 25 से 30 ग्राम का कंद लगाया जाता है। बुआई के लिए अच्छी अंकुरण का बीज 30-35 क्वि./हे. के हिसाब से बीज लगता है तथा मिट्टी की ढकाई ट्रैक्टर से की जाती है बहुत से किसानों के यहां मिट्टी ढकाई डोरा से की जाती है।
आलू की बुआई का समय : म.प्र. के विभिन्न जिलों जैसे छिंदवाड़ा देवास, धार एवं शाजापुर जो कि सिंचित क्षेत्र के अंतर्गत आते है। यहां आलू की बुआई सितम्बर से नवम्बर में की जाती है। इस फसल को अगेती फसल के रूप में इसे मुख्य फसल के रूप में लगाकर पूर्ण परिवक्ता में खुदाई करके इसका परिवहन तथा शीत भंडारण (कोल्ड स्टोरेज) किया जा सकता है। तथा अगेती फसल की तुलना में अधिक उत्पादन लिया जा सकता है।
उर्वरक : उर्वरक की मात्रा मृदा की उर्वरकता पर निर्भर करती है। इस क्षेत्र की मृदा नत्रजन उर्वरक के लिए अधिक प्रति किया है। आलू की फसल के लिए उर्वरक 100,100,100 एनपीके. कि./हे. एवं 20 टन/हे. अच्छी तरह से सड़ी गोबर खाद (एफवायएम) आलू लगाने के पहले खेत में डालें। बुआई के 25-30 दिन बाद मिट्टी चढ़ाते समय 20 किग्रा नत्रजन/हे. टॉप ड्रेसिंग के रूप में दें। सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव करने से आलू की उपज 15-18त्न तक वृद्धि होती है।
सिंचाई : सिंचाई की संख्या मृदा के प्रकार पर निर्भर करती है यदि बुआई के पहले सिंचाई नहीं गयी है तो बुआई के तुरंत बाद पानी देना आवश्यक है। पहली सिंचाई हल्की होनी चाहिए तथा दूसरी सिंचाई के एक हफ्ते के अंतराल में करें तथा इसके बाद 7-10 दिनों के अंतराल पर आवश्यकता के आधार पर सिंचाई करें। आलू की खुदाई के 10 से 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें। समान्यत: 7-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है।
खरपतवार नियंत्रण : आलू के 5 प्रतिशत अंकुरण होने पर पैराक्वाट (प्रेमेजोन) 2.5 लीटर पानी हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें एवं जब फसल 30 दिन की अवस्था की हो तब 20 किग्रा नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से डालकर मिट्टी चढ़ाने का कार्य करें तत्पश्चात सिंचाई करें।
पौध संरक्षण : आलू फसल बोते समय थिमेट 10 जी दानेदार दवा 15 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलायेें। जिससे फसल को भूमिगत कीटों एवं रस सूसक कीटों से 30-35 दिनों तक बचाया जा सकता है। खड़ी फसल अवस्था में अगेती, पिछेती, अंगमारी एवं रस चूसक की रोकथाम हेतु डायथेन एम 45 दवा 2.5 ग्राम एवं मेटासिस्टॉक्स या रोगोर दवा 1.25 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर 10-15 दिनों के अतराल में छिड़काव करें।
भण्डारण : भारत में आलू की खुदाई फरवरी से मार्च में करते हैं। म.प्र. में आलू का भण्डारण दो प्रकार से किया जाता है।