फसल की खेती (Crop Cultivation)

रबी प्याज की उन्नत खेती

रबी प्याज की उन्नत खेती – मध्यप्रदेश का मालवां अंचल क्षेत्र में कृषकों के पास पर्याप्त कृषि योग्य भूमि एवं संसाधन हंै। यहां अधिकांश कृषक सीमांत कृषक की श्रेणी में आते हैं अर्धशुष्क जलवायु के साथ मध्यम काली मृदा और सिंचाई का पानी रबी मौसम की खेती करने के लिए कुछ क्षेत्रों को छोड़कर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। इस क्षेत्र में किसानों के पास रबी में प्याज उत्पादन के लिए पर्याप्त मात्रा में संसाधन एवं तकनीक उपलब्ध है। इससे किसान को अच्छी कीमत पर बिकने वाली प्याज उत्पादन बहुत ज्यादा होती है। रबी में प्याज की फसल सोयाबीन की फसल कटाई के बाद ली जाती है और सोयाबीन फसल के द्वारा मृदा से सल्फर की अधिक मात्रा का दोहन करनेे के कारण प्याज के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता हैं क्योंकि प्याज की फसल को भी सल्फर तत्व की अधिक मात्रा की आवश्यकता है। प्याज में सल्फर की वजह से उसकी गुणवत्ता युक्त कंद का उत्पादन होता है तथा प्याज की भंडारण क्षमता भी बढ़ जाती है। किसान को प्याज की नई व अच्छी प्रजातियों के बारे में जानकारी न होने की वजह से अच्छी गुणवत्तायुक्त उत्पादन नहीं ले पाते हैं। लेकिन अब खेती की नई जानकारी एवं तकनीक का उपयोग कर प्याज का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।

महत्वपूर्ण खबर : गेहूं उत्पादन की नवीनतम तकनीकियां

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रबी प्याज उत्पादन की तकनीकी

प्याज की फसल पर तापमान, मृदा का प्रकार, खेत ढ़लान, रोपण का समय, बीज की गुणवत्ता इत्यादि कारकों का प्रभाव प्याज की अच्छी पैदावार एवं गुणवत्ता पर सबसे अधिक पड़ता है। प्याज पौधों की सर्वोत्तम वृृद्धि के लिए तापमान 20-25 सेल्सियस तथा हवा में आद्र्रता 70 प्रतिशत तक कंद के विकास हेतु अनुकूल वातावरण माना जाता है। प्याज की अच्छी बढ़वार के लिए वातावरण का तापमान 25 सेल्सियस कम एवं कंद बनने व बड़े आकार लेने के समय इससे अधिक तापमान प्याज के उत्पादन के लिए उपयुक्त होता है। वानस्पतिक वृृद्धि के समय उच्च तापमान एवं वर्षा के कारण वातावरण में अधिक आर्द्रता होने से बैंगनी धब्बा एवं झुलसा रोग का प्रकोप बढ़ जाता हैं जिससे कंद अच्छे नहीं बनते जिसका सीधा प्रभाव कंद के विकास व उत्पादन पर होता है, कंद के विकास के समय अधिक दिनों तक तापमान गिरावट होने से फूल के डंठल निकलने लगते हैं। वहीं अचानक तापमान बढऩे से गांठें पूरी तरह विकसित हुए बिना परिपक्व हो जाती हैं। इसलिए रबी मौसम में प्याज की रोपाई मध्य दिसंबर से जनवरी प्रथम सप्ताह तक कर देने से प्याज की अच्छी बढ़वार व उत्पादन के लिए जनवरी से मार्च तक का वातावरण उपयुक्त होता है।

प्याज की किस्म का चुनाव

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की बागवानी अनुसंधान संस्थाओं, राष्ट्रीय बीज निगम एवं कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई प्याज की उन्नत प्रजाति का उपयोग कर अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। जो कि किसान को भी आर्थिक रूप से लाभकारी होती हैं। अधिक उत्पादन देने वाली प्याज की प्रजातियां जैसे पूसा रत्नार, पूसा माधवी, एग्रीफाउंड डार्क रेड, लाईन-883, भीमा डार्क रेड, भीमा किरण, भीमा शक्ती, भीमा श्वेता, भीमा सुपर, भीमा रेड, भीमा राज, फुले स्वर्णा, फुले सामथ्र्य, अर्का कल्याण, एन-53 इत्यादि को अपने प्रक्षेत्र पर लगाकर अच्छा उत्पादन ले सकते हैं।

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बुआई का समय तथा बीज की मात्रा

रबी मौसम में प्याज उत्पादन के लिए बीज की बुआई अक्टूबर माह में मानसून समाप्ति के बाद कर 45-60 दिन कि पौध का रोपण नवंबर-दिसंबर में तथा खुदाई मार्च-अप्रैल तक करते हैं। खरीफ (स्थानीय भाषा में नाशिक प्याज) के लिए बुआई अगस्त-सितंबर में, पौध रोपण सितंबर-अक्टूबर में तथा खुदाई जनवरी-फरवरी तक करते हैं। 8-10 कि.ग्रा. बीज एक हेक्टर खेत के लिए पर्याप्त होता है।

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मृदा एवं खेत की तैयारी

प्याज उत्पादन के लिए बलुई दोमट मृदा उपयुक्त होती हैं लेकिन मध्यम काली मृदा में भी प्याज की खेती आसानी से की जा सकती है। मृदा का पीएच मान 6.5-7.5 के बीच एवं मध्यम कार्बनिक पदार्थ युक्त सर्वोत्तम मानी जाती हैं। वैसे प्याज की फसल को सभी प्रकार की मृदा में उगा सकते हैं। प्याज की अच्छी फसल के लिए मृदा में उपलब्ध पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, सल्फर, सूक्ष्म पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में होना बहुत आवश्यक है। भूमि को सुविधानुसार 2-3 बार हल से जुताई करके भुरभुरी बनाएं। यदि खेत में अधिक बड़े ढेले हो तो ट्रैक्टर द्वारा रोटोवेटर चलाकर भुरभुरा एवं समतल कर लें तथा 1.5-2.0 मीटर चौड़ाई एवं आवश्यकता अनुसार लम्बाई में छोटी-छोटी क्यारियों तैयार करते हैं, क्यारी की चौड़ाई ऐसी हो, जिससे मेड़ों पर बैठकर निराई, गुड़ाई एवं अन्य कृषि क्रियायें की जा सकें। और नाली के द्वारा सिंचाई करें। मेड़ वाली क्यारियों की अपेक्षा ऊंची उठी क्यारियों में कंद की आकार व गुणवत्ता अच्छी होने के कारण प्याज उत्पादन अच्छी होती है।

पौध तैयार करना

प्याज के बीज बहुत छोटे आकार के होने के कारण इनकी बुवाई मिट्टी की सतह पर छिड़काव विधि द्वारा की जाती है जिस खेत में नर्सरी की बुआई करनी हो बुवाई से 15-20 दिनों पहले सिंचाई करके काली पॉलीथिन बिछा दें, जिससे खेत के हानिकारक कीट एवं रोगाणु एवं खरपतवार के बीज सौरीकरण क्रिया से नष्ट हो जाये। इसके पश्चात खेत जुताई ट्रैक्टर या बैल चलित बक्खर से 5-7 सेमी. गहराई तक करें जिससे मिट्टी कि सतह भुरभुरी हो जाए इससे अधिक गहरी जुताई करने पर काली मृदा में पौध की जडं़े अधिक गहरी चली जाती हैं और निकालते समय प्याज की पौध जड़ के पास से अधिक टूटती है या प्याज के बीज की बुवाई 15-20 सेमी. ऊंची उठी हुई क्यारियों बनाकर नर्सरी तैयार करें इन क्यारियों के मध्य में गहरी एवं चौड़ी नाली बनाएं, जिनसे आसानी से सिंचाई व कृषि क्रियायें की जा सकें। बुआई के पहले बीज को आद्र्र गलन जैसे रोग से बचाव के लिए फफंूदनाशक दवा से उपचारित कर बुआई करें। बुआई के बाद बीज को बारीक छनी हुई मिट्टी या गोबर की खाद या कम्पोस्ट से ढक देने के बाद फव्वारे से सिंचाई करें या क्यारियों के मध्य में बनाई गहरी नाली से पानी धीमी गति की दर से मिट्टी गीली होने तक दें।

सिंचाई एवं खरपतवार प्रबंधन

प्याज एक उथली एवं सूक्ष्म जड़ वाली फसल है। इसकी जड़ें जमीन की सतह से अधिकतम 15 सेमी. तक सीमित होती हैं रबी की प्याज फसल में एक सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करते हैं। इसके बाद 15-20 दिन के अंतराल पर कंद बनने तक 5-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है। सूक्ष्म टपक सिंचाई तकनीकी द्वारा प्याज की सिंचाई करना सतह सिंचाई कि अपेक्षा अधिक लाभदायक पाया गया है। इससे उत्पादन और गुणवत्ता के साथ ही पानी की बचत और प्याज अधिक उत्पादन होती हैं इस विधि से पानी की कमी होने पर फसल की सिंचाई की पूर्ति पैदावार को बिना प्रभावित किए की जा सकती है। प्याज में खरपतवार जैसे-मोथा, दूब, बथुआ, दुधी, चौलाई इत्यादि खेत में उगते हैं। इनका नियंत्रण फसल बढ़वार के पहले करना आवश्यक है नहीं तो मजदूर के द्वारा इनका नियंत्रण अधिक खर्चीला हो जाता है। खरपतवार फसल को अधिक नुकसान पहुचाते हैं। खरपतवारनाशी का उपयोग जैसे ऑक्सीफ्रलोरोपफेन का 10-15 मिली. या क्यूजालोफाप इथाइल 25 मिली. प्रति 15 लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करने से खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है।

पोषक तत्व प्रबंधन

फसल की अच्छी बढ़वार एवं उत्पादन के लिए 20-25 टन/हेक्टर गोबर की खाद क्यारियों तैयार करने के पूर्व समान रूप के खेत में मिला दें या गोबर की खाद उपलब्ध ना होने की स्थिति में 3 टन वर्मीकम्पोस्ट की खाद का उपयोग करें। प्याज की फसल को 100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस, 50 कि.ग्रा. पोटाश तथा 30 कि.ग्रा. सल्फर देने की सिफारिश की जाती है। फास्फोरस, पोटाश और सल्फर की पूरी एवं नाइट्रोजन की 25 कि.ग्रा. मात्रा को पौध रोपाई के पहले मिट्टी में मिला दें। और शेष बची नाइट्रोजन को तीन समान भागों में विभाजित करके पौध रोपण के 30, 45 और 60 दिनों के बाद खड़ी फसल एक समान छिड़क देते हैं। यदि प्याज की फसल बालुई मिट्टी में लगाई गई हो तो इसमें नाइट्रोजन व अन्य पोषक तत्वों की हानी जल अंत:स्त्राव के कारण अधिक होती हैं ऐसी स्थिति में पौध रोपण के 15, 30, और 45 दिनों के बाद जल घुलनशील उर्वरक एनपीके (19:19:19) को 150-200 ग्राम प्रति पम्प (15 लीटर जल) और एनपीके (13:0:46) को भी 150-200 ग्राम प्रति पम्प 60, 75 और 90 दिनों के बाद एवं जल घुलनशील पोटेशियम सल्फेट (0:0:50:17.5) का 45, 60, और 75 दिनों के बाद पर्णीय छिड़काव करने से उपज में बढ़ोतरी के साथ लम्बी अवधि के भंडारण के लिए गुणवत्तायुक्त कंद की प्राप्ति होती है।

कंदों की खुदाई एवं भंडारण

रबी मौसम में प्याज के कंदों की खुदाई मध्य मार्च तक उस समय करते हैं, जब पत्तियों का रंग थोड़ा पीला होने लगता है, तथा मिट्टी कि ऊपरी सतह तोड़कर कंद ऊपर निकलने लगती हैं। कंद का ऊपरी भाग डंठल या पत्तियों के नीचे का तना हाथ से दबाने पर सख्त न होकर मुलायम हो जाता है और कंद का ऊपरी हिस्सा पत्तियों सहित गिरने लगता हैं, इसी समय कंदों की खुदाई करना उपयुक्त होता हैैं। प्याज के कंदों का भंडारण वैज्ञानीक तरीके से 0-3 सेल्सियस तापमान तथा 90 प्रतिशत आद्र्रता पर कोल्ड स्टोरेज में करते हैं लेकिन किसान के लिए यह खर्चीला होने के कारण किसान स्वयं सुविधाअनुसार हवादार शुष्क स्थान पर मोटे तार की जाली में प्याज कंद का भंडारण 8-10 माह के लिए आसानी से कर सकते हैं। तार की जाली की संरचना इस प्रकार तैयार करें कि जिसे ईंट या लकड़ी के चौकोर टुकड़ों पर रखा जा सके जिससे प्याज के कंदों के चारों तरफ से हवा का आवागमन हो सके, प्रायोगिक तौर पर यह देखा गया कि प्याज के कंदों की ग्रेडिंग करके भंडारण से कंद में सडऩ-गलन की समस्या 90 प्रतिशत तक कम हो जाती है क्योंकि एक समान आकार के कंद में हवा का संचालन, विभिन्न आकार के कंद की अपेक्षा अधिक होता है।

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