फसल की खेती (Crop Cultivation)

उड़द की उन्नत उत्पादन तकनीक

  • डॉ. आशीष कुमार त्रिपाठी
    वैज्ञानिक-पौध संरक्षण
    कृषि विज्ञान केन्द्र, सागर

28 जून 2021, सागर । उड़द की उन्नत उत्पादन तकनीक – उड़द महत्वपूर्ण खरीफ की दलहनी फसल है। मप्र में खरीफ में उड़द की खेती लगभग 9.32 लाख हे. में की जाती है व प्रदेश की उत्पादकता लगभग 4.50 क्ंिवटल/हे. है। उड़द की फसल कम समय में पककर तैयार होने के कारण सघन फसल प्रणाली के लिये भी उपयुक्त हैं साथ ही दलहनी फसल होने के कारण इसकी जड़ों में वनने वाली गांठों में उपस्थित जीवाणु वायुमण्डलीय नत्रजन को भूमि में 40-50 कि.ग्रा/हे. की दर से स्थिर करके भूमि को उपजाऊ बनाती है। इस प्रकार यह फसल भूमि की उर्वराशक्ति को बनाये रखने में भी सहायक हैं। उड़द में 25 प्रतिशत प्रोटीन व प्रचुर मात्रा में फास्फोरिक अम्ल पाया जाता है जो पौष्टिक है, उड़द दाल के रूप में, पापड़ के रूप में तथा इडली डोसा के रूप में भोजन में शामिल है। उड़द की पकी हुई फसल से दाना निकालने के उपरांत भूसा बहुत ही पौष्टिक तथा स्वादिष्ट होता है जिसको पशु बड़े ही चाव से खाते हैं। इस फसल का चारा पशुओं में दूध की मात्रा बढ़ाता है।

उत्पादकता कम होने के कारण
  • उड़द में योलो मोजेक रंग का प्रकोप
  • उन्नत शस्य तकनीकियों को न अपनाना जिससे खरपतवार का प्रकोप
  • अधिक उत्पादन क्षमता एवं उन्नत बीजों की कमी
  • सीमांत एवं अनउपजाऊ भूमियों में उगाना एवं असंतुलित एवं अपर्याप्त उर्वरक प्रयोग, मुख्य रूप से फॉस्फोरस व पोटाश की कमी।
भूमि का चुनाव एवं खेत की तैयारी

मध्यम प्रकार की भूमि जिसमे पानी का निकास की समुचित हो वह उड़द के लिये उपयुक्त है। खेतों को दो-तीन बार जुताई कर पाटा लगाकर समतल खरपतवार रहित खेत तैयार करें तत्पश्चात् बुवाई करें। उड़द की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए रबी फसलों की कटाई के तुरन्त बाद गहरी जुताई कर ग्रीष्म ऋतु में खेत को खाली रखना बहुत ही लाभदायक रहता है। ग्रीष्मकालीन जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने पर खेत की मिट्टी ऊपर-नीचे हो जाती है इस जुताई से जो ढेले पड़ते हैं वह धीरे-धीरे हवा व बरसात के पानी से टूटते रहते हैं साथ ही जुताई से मिट्टी की सतह के फसल अवशेषों की पत्तियां, नरवाई (गेहूं व धान की फसल के 8 से 12 इंच लम्बे डंठल) एवं खेत में उगे हुए खरपतवार आदि नीचे दब जाते हैं जो सडऩे के बाद खेत की मिट्टी में जीवाश्म/कार्बनिक खादों की मात्रा में बढ़ोतरी करते हैं जिससे भूमि की उर्वरता स्तर एवं मृदा की भौतिक दशा या भूमि की संरचना में सुधार होता है।

बीज मात्रा, बोने का समय एवं उपचार

प्रमाणित व स्वस्थ बीज की 15-20 किग्रा. मात्रा प्रति हे. उपयोग करें जिससे 3 से 3.5 लाख तक पौध संख्या (प्रति हेक्टेयर) मिल सकेगी । जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के द्वितीय सप्ताह तक बोनी करें। बीज 4 से.मी. की गहराई पर 10 से.मी. दूरी रखते हुए बोयें। कतारों से कतारों की दूरी 30 से.मी. रखें। बीज की अंकुरण क्षमता को बिना कोई नुकसान पहुंचाये बीज में उपस्थित रोग जनकों को नष्ट करने की प्रक्रिया को बीजोपचार कहते हैं। बीजोपचार से बाह्य एवं आंतिरक बीज जनित रोग जनकों को समाप्त किया जा सके। जिससे बीज को अंकुरण ठीक से हो तथा पौध एवं पौधा स्वस्थ्य पैदा हो। बोनी से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम या पूर्व मिश्रित फफूंदनाशक कार्बोक्सिन+ थायरम की 2 ग्राम मात्रा या ट्राइकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति कि. ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। उपचारित बीज को राइजोबियम व पीएसबी कल्चर से निवेशित (उपचारित) करें। इस हेतु कल्चर की 8-10 ग्राम प्रति किग्रा. बीज के मान से उपयोग करें।

मृदा जनित कीट-दीमक, सफेद गृब, बायर वर्म तथा रसचूसक कीटों के फसल पर प्रकोप से बचाव हेतु बीज को कीटनाशी रसायन से बीजोपचार करें। उर्द में पीला मोजेक रोग से बचाव के लिये इमिडाक्लोप्रिड 48 डब्ल्यू.पी. (600 एफ.एस.) या थायोमेथोक्सेम 70 डब्ल्यू. पी. की 3 ग्राम मात्रा द्वारा प्रति कि.ग्रा. बीज का उपचार किया जाने 25-30 दिनों तक रसचूसक कीटों का प्रकोप नहीं होता और उस समय तक प्राकृतिक शत्रुओं की संख्या बढ़ जाती है।

खाद एवं उर्वरक

भूमि की उर्वराशक्ति बनाये रखने के लिए हर दो या तीन वर्ष में एक बार अपने खेतों में पकी हुई गोबर की खाद (100-150 क्वि. प्रति हे.) का उपयोग करें।
उड़द हेतु 20 किलो नत्रजन और 50 किलो स्फुर 20 किलो पोटाश प्रति हे. प्रयोग करें जिसकी पूर्ति डीएपी 100 किग्रा म्यूरेट ऑॅफ पोटाश 30 किग्रा अथवा एनपीके (12:32:16) 150 किग्रा से की जा सकती है । खाद उर्वरक की संपूर्ण मात्रा बूवाई पूर्व खेत में डालें।

सिंचाई

फूल-फल बनने की अवस्था पर यदि खेत में नमी न हो तो सिंचाई करेें।

कटाई एवं गहाई

जब 70-80 प्रतिशत फलियाँ पक जाये तक कटाई आंरम्भ करें। फसल को खलिहान में 3-4 दिन तक सुखाकर गहाई करें। उड़द में प्रति हेक्टेयर 12000 रूपये लागत आती है तथा 8-10 क्ंिवटल उपज/हे. उत्पादन प्राप्त होने से कुल आय 40000 रूपये प्राप्त की जा सकती हैं।

उड़द फसल पर आधारित तकनीकी प्रदर्शन के परिणाम

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-दलहन के अंतर्गत में उन्नत तकनीकी पर आधारित प्रदर्शनों का आयोजन कृषक प्रक्षेत्रों पर किया गया। जिसमें उड़द की उत्पादकता 669 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर (उत्पादन में वृद्धि 53.7 प्रतिशत) प्राप्त हुई अत: उन्नत तकनीकी अपनाकर अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।

उन्नतशील जातियां
किस्म पकने की  उपज प्रति 
  अवधि (दिन) हेक्टेयर (किलो)
जवाहर उड़द-2 65-70 1200-1500
जवाहर उड़द-3 65-70 1200-1400
जवाहर उड़द-86 60-65 1200-1400
पीडीयू-1 70-80 1300-1500
पीयू-35 75-80 1000-1200
पीयू-19 80-82 1000-1200
पीयू-30 70-75 1200-1400
पीयू-30 70-75 1200-1400
पीयू-31 75-80 1200-1500
एलबीजी 20  70-75 1300-1500
(तेजा)    
आईपीयू 94-1  80-85 1100-1300
(उत्तरा)    
आईपीयू 2-43 80-82 1200-1500
शेखर-2 75-80 1200-1500
शेखर-3 75-80 1200-1500
केयू-96-3 70-72 1200-1500
इंदिरा उर्द प्रथम 70-75 1200-1500
प्रताप उर्द -1 70-75 1300-1500
निंदाई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण

फसल एवं खरपतवार की प्रतिस्पर्धा की अंतिम अवधि बुवाई के 15-30 दिनों तक रहती है इस बीच निंदाई करने या डोरा चलाने से खरपतवार नष्ट हो जाते है। रासायनिक नियंत्रण हेतु बोने से पहले पेंडिमिथालीन 3 ली. या एलाक्लोर 2 ली. को 500 ली. पानी में मिलाकर बोने के बाद व अकुंरण से पूर्ण भूमि में फ्लेटफेन नोजल युक्त पम्प से मिलायें। खड़ी फसल में निम्नानुसार खरपतवार नाशक का छिडक़ाव बुवाई के 15-20 दिन पश्चात् करें।

सामान्य नाम मात्रा/हेक्टेयर नियंत्रित होने 
    वाले खरपतवार
क्विजालोफॉप. पी. इथाईल 5% ईसी 750 मिली सकरी पत्ती
इमिजाथाइपर 10% एसएल 750 मिली सकरी व चौड़ी पत्ती
इमिजाथाइपर 3.75% +प्रॉपाक्विजाफॉप 2.5% 2.0 लीटर सकरी व चौड़ी पत्ती
फ्लूजिफाफब्यूटाइल 11.1% +फोमेक्साफेन 11.1% 1 लीटर सकरी व चौड़ी पत्ती
सोडियम एसीफ्लारफेन 16.5% +क्लोडीनोफॉफ 6% ईसी 1 लीटर सकरी व चौड़ी पत्ती

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