फसल की खेती (Crop Cultivation)

Niger Nutrient Management: रामतिल में कौन-सी खाद दें? जानिए राज्यवार उर्वरक योजना

16 जून 2025, नई दिल्ली: Niger Nutrient Management: रामतिल में कौन-सी खाद दें? जानिए राज्यवार उर्वरक योजना – रामतिल (Niger) की खेती में पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग फसल की सेहत और उत्पादन दोनों को बढ़ाता है। चूंकि अलग-अलग राज्यों की मिट्टी और जलवायु अलग होती है, इसलिए हर क्षेत्र के लिए खाद और उर्वरकों की मात्रा भी अलग-अलग होती है। इस लेख में हम राज्यवार अनुशंसित खाद प्रबंधन के बारे में जानेंगे, जिससे किसान भाई सीमित लागत में अधिक उपज प्राप्त कर सकें और अपनी मिट्टी की उर्वरता को भी बनाए रखें।

खाद और उर्वरक

रामतिल ज्यादातर बिना उर्वरक के उगाई जाती है, लेकिन थोड़ा ध्यान देने से उपज बढ़ सकती है। कुछ राज्यों में अनुशंसित उर्वरक खुराक:

  • मध्य प्रदेश: बुआई के समय 10 किलो नाइट्रोजन + 20 किलो फॉस्फोरस, और 35 दिन बाद 10 किलो नाइट्रोजन।
  • महाराष्ट्र: 4 टन गोबर की खाद + 20 किलो नाइट्रोजन बुआई के समय।
  • ओडिशा: 20 किलो नाइट्रोजन + 40 किलो फॉस्फोरस बुआई के समय, और 30 दिन बाद 20 किलो नाइट्रोजन।
  • झारखंड/बिहार: 20 किलो नाइट्रोजन + 20 किलो फॉस्फोरस + 20 किलो पोटाश + 15 किलो जिंक सल्फेट।
  • सल्फर (20-30 किलो/हेक्टेयर) देने से बीज और तेल की मात्रा बढ़ती है।

रामतिल, जिसे नाइजर या राम तिल भी कहते हैं, एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। यह ज्यादातर बारिश पर निर्भर खेती में उगाई जाती है और इसके बीजों का इस्तेमाल खाने से लेकर कई उद्योगों में होता है। रामतिल के बीज में 37-47% तेल होता है, जो हल्का पीला, अखरोट जैसा स्वाद और खुशबू वाला होता है। इस तेल का उपयोग खाना पकाने, त्वचा पर लगाने, पेंट, मुलायम साबुन, और इत्र उद्योग में बेस ऑयल के रूप में किया जाता है। साथ ही, इसका उपयोग जन्म नियंत्रण और कुछ बीमारियों के इलाज में भी होता है। रामतिल का खल (बीज निकालने के बाद बचा हिस्सा) पशुओं, खासकर दुधारू मवेशियों के लिए पौष्टिक चारा है और खाद के रूप में भी काम आता है। इसे हरी खाद के तौर पर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं।

भारत में रामतिल की खेती खरीफ के मौसम में करीब 2.61 लाख हेक्टेयर में होती है, लेकिन ओडिशा में इसे रबी की फसल के रूप में उगाया जाता है। आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और पश्चिम बंगाल इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। औसत उपज 3.21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, लेकिन बेहतर तकनीकों से इसे बढ़ाया जा सकता है।

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