अब बढ़ेगी टर्की पालन से किसानों की आय
- डॉ. नरेन्द्र सिंह राठौड़, कुलपति मप्रकृप्रौविवि, उदयपुर
2 जून 2022, उदयपुर । अब बढ़ेगी टर्की पालन से किसानों की आय – हमारे देश में टर्की पालन तेजी से बढ़ रहा है। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के अंतर्गत पशु उत्पादन विभाग के द्वारा टर्की की केरी विराट नस्ल का पालन किया जा रहा है। टर्की पालन से मुख्यत मांस, अंडा एवं खाद के लिए किया जाता है।
इसके मांस में लगभग 25 एवं अंडे में 13 प्रतिशत तक प्रौटीन पायी जाती है। इसकी खाद में नाइट्रोजन 5 से 6 प्रतिशत एवं पोटाश 2 से 3 प्रतिशत तक पायी जाती है। टर्की के मांस में कम चर्बी, स्वाद एवं सुगन्ध के कारण अधिक लोकप्रिय है। टर्की पालन खासकर गाँवांे में और ग्रामीण लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करने में सक्षम है। यह व्यवसाय छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए भी उपयुक्त है।
टर्की पालन
टर्की को फ्री रेंज प्रणाली यानि की खुले स्थान खेत/घर पर आसानी से पला जा सकता है। इसको खाने में दाना या घर/खेत में खुले स्थान पर छोटे कीड़े, घोंघे, दीमक, रसोई अवशिष्ट, केंचुए एवं घास आदि खिलाई जा सकती है जिससे इसके प्रबन्धन में कम व्यय होने के कारण लघु एवं सीमांत किसानो द्वारा पला जा सकता है।
टर्की पालन से रोजगार
टर्की पक्षी की शरीर वृद्धि तेजी से होती है जिसकी वजह से 7 से 8 माह में इसका वजन 10 से 12 किलो हो जाता है। इसके अंडे का वजन भी मुर्गी के अंडे से अधिक होता है। टर्की से प्रति वर्ष 100 से 120 अंडे प्राप्त किये जा सकते है।
मांस एवं अंडे की पोष्टिकता
टर्की मांस का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होने के कारण मधुमेह रोगी के लिए उपयोगी है। इसके मांस अमीनो अम्ल, नियासिन, विटामिन-बी जैसे विटामिन से परिपूर्ण होता है। इसमें असंतृप्त वसीय अम्ल और दूसरे आवश्यक वसा प्राप्त मात्रा में पायी जाती है ।
डॉ शांति कुमार शर्मा, निदेशक – अनुसंधान ने बताया की टर्की पालन के लिए दक्षिणी राजस्थान की जलवायु अनुकूल है तथा आदिवासी क्षेत्र में टर्की पालन आजीविका का एक अच्छा स्त्रोत हो सकता है जिससे आदिवासी क्षेत्र के कृषकों के आर्थिक स्तर में उन्नति होगी।
मेवाड़ संभाग में टर्की पालन से सीमांत एवं लघु किसानों की आय में वृद्धि होने के नये अवसर प्राप्त होंगे। साथ ही लोगों की खाद्य तथा पोषण सुरक्षा में इससे सहयोग मिलेगा।