यदि आप पशुपालक किसान है तो जरा ध्यान दें
30 सितम्बर 2024, भोपाल: यदि आप पशुपालक किसान है तो जरा ध्यान दें – देश के अधिकांश किसानों द्वारा गाय भैंस पाली जाती है. अमुमन जब गाय-भैंस बच्चा देती है तो पशुपालक खूब खुश होते हैं. अगर वो बच्चा मादा है तो और ज्यादा खुश होते हैं. सोचते हैं कि दूध देने के लिए एक और पशु आ गया. लेकिन एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो गाय-भैंस के बच्चा देने और जेर गिरने के बाद पशुपालन दूसरे काम में लग जाते हैं. बच्चा देने वाली गाय-भैंस की तरफ उनका कोई ध्यान नहीं रहता है. मतलब पशु के प्रति लापरवाही बरतने लगते हैं. लेकिन 72 घंटे तक बरती गई ये लापरवाही पशु के लिए जानलेवा बन जाती है.
यहां तक की पशु बांझ भी हो सकता है. पशु का दूध सूखने से पशुपालक का नुकसान और ज्यादा बढ़ जाता है. इस बीमारी के तहत पशु की बच्चेदानी (गर्भाशय) में मवाद पड़ जाता है. और इसी वजह से पशु के इलाज पर होने वाले खर्च के चलते पशुपालन की लागत बढ़ जाती है. यही बीमारी मिल्क फीवर की शक्ल भी ले लेती है.
बीमारी के लक्षण और उपाय
- बच्चा देने के बाद कुछ भैसों के गर्भाशय में मवाद पड़ जाता है.
- मवाद की मात्रा कुछ मिली से लेकर कई लीटर तक हो सकती है.
- बच्चा देने के दो महीने बाद तक गर्भाशय में संक्रमण हो सकता है.
- मवाद पड़ने पर भैंस की पूंछ के आसपास चिपचिपा मवाद दिखाई देता है.
- मवाद पड़ने पर भैंस की पूंछ के पास मक्खियां भिनकती रहती हैं.
- भैंस के बैठने पर मवाद अक्सर बाहर निकलता रहता है.
- मवाद देखने में फटे हुए दूध की तरह या लालपन लिए हुए गाढ़े सफेद रंग का होता है.
- पूंछ के पास जलन होने के चलते पशु पीछे की ओर जोर लगाते रहते हैं.
- जलन ज्यादा होने पर पशु को बुखार हो सकता है.
- गर्भाशय के इस संक्रमण के चलते भूख कम हो जाती है और दूध सूख जाता है.
- इलाज के तौर पर बच्चेदानी में दवा रखी जाती है.
- पीड़ित पशु को इंजेक्शन लगाकर भी इलाज किया जाता है.
- पीड़ित पशु का इलाज कम से कम तीन से पांच दिन करना चाहिए.
- पूरा इलाज न करवाने पर पशु बांझ हो सकता है.
- इस बीमारी के बाद पशु हीट में आए तो पहले डॉक्टरी जांच करा लें.
- डॉक्टरी जांच के बाद ही प्राकृतिक या कृत्रिम गर्भाधान कराना चाहिए.
- इस बीमारी के बाद हीट के एक-दो मौके छोड़ने पर सकते हैं.
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