पशुपालन (Animal Husbandry)किसानों की सफलता की कहानी (Farmer Success Story)

बुंदेलखंड में शहद उत्पादन ने ₹1 लाख तक का रिटर्न देकर किसानों को बनाया आत्मनिर्भर

16 दिसंबर 2024, भोपाल: बुंदेलखंड में शहद उत्पादन ने ₹1 लाख तक का रिटर्न देकर किसानों को बनाया आत्मनिर्भर – बुंदेलखंड, मध्य भारत का एक अर्ध-शुष्क क्षेत्र, लंबे समय से आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस क्षेत्र में 90% आबादी कृषि पर निर्भर है, जिसमें से लगभग 75% खेती वर्षा पर आधारित है। छोटे और सीमांत किसानों की अधिकता (67%) इस क्षेत्र को और भी संवेदनशील बनाती है। ऐसे में, हमीरपुर जिले में मधुमक्खी पालन के जरिए एक अनूठी पहल की गई, जो न केवल किसानों की आय बढ़ाने में सफल रही, बल्कि ग्रामीण युवाओं को रोजगार सृजन के अवसर भी प्रदान किए।

बुंदेलखंड में शहद उत्पादन ने ₹1 लाख तक का रिटर्न देकर किसानों को बनाया आत्मनिर्भर

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत परियोजना का शुभारंभ

हमीरपुर जिले की जलवायु और फसली विविधता ने मधुमक्खी पालन के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान किया। यहां का तापमान गर्मियों में 43 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जबकि सर्दियों में यह 20 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। क्षेत्र में पहले से उगाई जाने वाली तिल, सरसों, ज्वार, बाजरा और तोरिया जैसी तिलहन फसलें मधुमक्खियों के लिए पराग और शहद उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं। इसके साथ ही, अमरूद, आंवला, पपीता और खीरा जैसी बागवानी फसलें और अर्जुन, करंज, नीम, शिसम जैसे वृक्ष भी मधुमक्खियों के लिए आदर्श पोषण स्रोत प्रदान करते हैं।

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के तहत, कृषि विज्ञान केंद्र, हमीरपुर और बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की टीम ने इस क्षेत्र में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए एक परियोजना शुरू की। इस परियोजना का उद्देश्य किसानों की आय को दोगुना करना और मधुमक्खी पालन को एक लाभदायक उद्यम बनाना था। इसके तहत, ग्रामीण युवाओं, किसानों और स्कूल छोड़ने वाले बच्चों को शामिल कर किसान हित समूह (एफआईजी) का गठन किया गया। जिले में कुल 7 एफआईजी बनाए गए और उन्हें वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन के लिए प्रशिक्षण, उपकरण और तकनीकी सहायता प्रदान की गई।

वैज्ञानिक पद्धतियों के साथ मधुमक्खी पालन का विकास

मधुमक्खी पालन के लिए उपयुक्त स्थानों का चयन करते समय जल-जमाव और गर्म हवाओं से मुक्त क्षेत्रों को प्राथमिकता दी गई। साथ ही, चयनित स्थानों पर पीने के पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की गई। किसानों को वैज्ञानिक तरीके से मधुमक्खी कालोनियों को व्यवस्थित करना सिखाया गया और समय-समय पर मधुमक्खी पालन प्रबंधन पर सलाह भी दी गई। टीम ने प्रशिक्षण के दौरान फ्रंटलाइन डिमॉन्स्ट्रेशन (एफएलडी) का आयोजन किया और मधुमक्खी पालन के हर चरण को “देख कर और विश्वास के साथ सीखने” की अवधारणा पर आधारित रखा।

परियोजना के परिणाम बेहद उत्साहजनक रहे। 50 मधुमक्खी कालोनियों से 146 किलोग्राम शहद और 63 किलोग्राम मधुमक्खी पराग का उत्पादन किया गया। एक मधुमक्खी पालन इकाई की औसत परिचालन लागत ₹25,017 रही, जबकि अधिकतम रिटर्न ₹1,00,887 तक दर्ज किया गया। शुद्ध लाभ की बात करें तो यह ₹51,780 से ₹72,137 के बीच रहा। लाभ-लागत अनुपात 2.0 से 2.5 के बीच पाया गया, जो इसे एक अत्यधिक लाभकारी उद्यम साबित करता है।

किसानों की आय और रोजगार में वृद्धि

इस परियोजना ने न केवल किसानों की आय बढ़ाने में मदद की, बल्कि ग्रामीण युवाओं को उद्यमिता के प्रति प्रेरित भी किया। हमीरपुर की जलवायु परिस्थितियों और फसली विविधता ने मधुमक्खियों के विकास और उत्पादकता के लिए एक आदर्श वातावरण प्रदान किया। इसके साथ ही, किसानों ने अच्छे मधुमक्खी पालन पद्धतियों (जीबीपी) को अपनाकर अपनी आजीविका को सुदृढ़ किया।

मधुमक्खी पालन ने हमीरपुर जिले में एक नए बदलाव की शुरुआत की है। यह पहल न केवल किसानों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाई है, बल्कि इसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सशक्त किया है। इस तरह की परियोजनाएं यह दिखाती हैं कि कैसे वैज्ञानिक तरीकों और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और आय सृजन के नए अवसर बनाए जा सकते हैं।

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