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जल कृषि से चारा उत्पादन एवं पशुओं के लिए उपयोगिता

हाइड्रोपोनिक्स या जल कृषि शब्द ग्रीक शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है पानी में कार्य करना अत: इस तकनीक में पौधों को बिना मिट्टी के सिर्फ खनिज घोल वाले जल में उगाया जाता है। इसमें की जाने वाली कृषि नियंत्रित वातावरण में की जाती है, जिन्हें ग्रीन हाउस कहते हैं।
जल कृषि के फायदे

  • इसे ऐसे क्षेत्रों में किया जा सकता है जहां जल की कमी होती है क्योंकि इसमें सामान्य कृषि से कम जल व्यय होता है एवं एक बार उपयोग में लाये गए जल को दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है।
  • पोषक तत्वों को नियंत्रित मात्रा में डाला जाता है, इस तरह पोषक तत्वों की कम आवश्यकता होती है।
  • इससे हरा चारा अधिक प्राप्त किया जा सकता है।
  • इसमें कीट का खतरा नहीं रहता है।
  • चारे को आसानी से हार्वेस्ट किया जा सकता है।

जल कृषि के लिए जिन ढांचों का उपयोग किया जाता हैं, उन्हें ग्रीन हाउस कहते हैं ये ग्रीन हाउस दो तरफ के होते हैं, (1) हाईटेक ग्रीन हाउस चारा सिंचाई इकाई (2) लौ कॉस्ट या कम खर्च ग्रीन वाले हाउस चारा सिंचाई इकाई
हाईटेक ग्रीन हाउस चारा सिंचाई इकाई
इसमें एक नियंत्रक इकाई होती है जिसमें वातानुकूलक या एयर कंडीशनर लगे होते हैं। इसमें लगी नियंत्रक इकाई पानी के प्रवाह को नियंत्रित करती हैं एवं सेंसर के माध्यम से प्रकाश को भी नियंत्रित किया जाता है, इस प्रकार के चारे को लगाने में लागत अधिक आती है। विशेष रूप से रबी की फसलों जैसे जौ, जई, गेहूं आदि की कृषि में ठंडा एवं सूखा वातावरण बनाये रखने के लिये एयर कंडीशनर की आवश्यकता पड़ती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की गोवा इकाई में एक 2010-11 में एक चारा उत्पादन इकाई स्थापित की गई जिसकी मक्का उत्पादन क्षमता 600 किलोग्राम थी एवं इसमें पूरी लागत लगभग 15 लाख रुपए आई।
कम लागत वाले ग्रीन हाउस जल कृषि चारा सिंचाई इकाई
यह कम लागत में तैयार किया जा सकता है एवं इसे छोटे किसान भी लगा सकते हैं इस इकाई के ढाँचे को बांस, लकड़ी, गैल्वेनाइज्ड लोहे आदि से तैयार किया जा सकता है। इन ढांचों को सहारा देने के लिये एक ओर से दीवार का उपयोग भी किया जा सकता है जिससे की यह और भी कम कीमत में तैयार किया जा सके। इसमें सिंचाई के लिये छोटे-छोटे फव्वारे जो कि आटोमेटिक या हाथ से चलाये जाने वाले हो सकते हैं, उपयोग में लाये जाते हैं। चूंकि ये वातानुकूलित नहीं होते है, अत: इसमें जिसे चारे को या फसल को लगाया जाता है वह उस स्थान के मौसम पर निर्भर करता है। 30-300 किलोग्राम ताजा चारा उगाने के लिये लगाई गयी इकाई में लगभग 6,000 से 50,000 तक लागत आती है।
जल कृषि में उगाई जाने वाली फसलें
हाइड्रोपोनिक्स में विभिन्न प्रकार की फसलों से चारा प्राप्त किया जा सकता है जैसे की जौ, ओट, गेहूं, ज्वार, मक्का आदि। जल कृषि से चारा उत्पादन भौगोलिक स्थिति, क्षेत्र के वातावरण एवं बीज की उपलब्धता पर निर्भर करता है। उत्पादन के लिये बोए गए बीज साफ, साबुत, कीड़ा रहित एवं अच्छी गुणवत्ता के होने चाहिए। इसमें बीजों को जल में भिगोया जाता है, जिससे की बीज का उपापचय शुरू हो सके और बीज आसानी से वृद्धि कर पौधा तैयार कर सके। सामान्यत: बीजों को जुट के थैलों में रखकर अच्छी तरह से बंद करके उन्हें भिगो कर 1 से 2 दिन के लिये रखा जा सकता है, ये बीज अब अंकुरित हो चुके होते हैं इसके बाद इन्हें तस्तरियों में रखा जाता है यह तस्तरियाँ साबुन से साफ की ही होना चाहिए। अंकुरित बीजों की सिंचाई दिन में कई बार की जाती है इसमें इस बात का ध्यान रखना होता है की पौधे की जड़ें हमेशा भीगी हुई रहे। छोटे ग्रीन घास कक्ष की सिंचाई के लिए साधारण स्प्रे या पम्पिंग स्प्रे का उपयोग किया जाता है परंतु अगर बड़ी इकाई है तो आटोमेटिक स्प्रे भी उपयोग में लाए जा सकते हैं।
हम अगर जल सिंचाई में खर्च होने वाले जल की मात्रा की बात करें तो यह जानने में बहुत ही रोचक होगा कि सामान्य खेती में उपयोग होने वाले जल की तुलना में इसमें 3 से 5 प्रतिशत ही जल की आवश्यकता होती है। एक किलोग्राम मक्का की घास पैदा करने के लिये 1.50 लीटर (अगर पुन:) उपयोग में ले लिया जाये) के लेकर 3.0 लीटर जल की आवश्यकता होती है।
जल कृषि में उपयोग में आने वाले पोषक घोल
प्राथमिक मैक्रोन्युट्रिएंट्स : नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम
द्वितीयक मैक्रोन्युट्रिएंट्स : कैल्शियम , सल्फर, मैग्नीशियम
माइक्रोन्यूट्रिएंट्स : बोरोन, क्लोरीन, मैंगनीज, आयरन, जिंक, कॉपर, मालिब्डेनम, निकल
N=210 पी.पी.एम, K=235 पी.पी.एम, Ca-200, पी.पी.एम., P=31 पी.पी.एम., S=64 पी.पी.एम, M=48 पी.पी.एम, B=05 पी.पी.एम, Fe=1 से 5 पी.पी.एम., Mo=0.5 पी.पी.एम.र्, Zn=0.05 पी.पी.एम, C=0.02 पी.पी.एम., Mo-0.01 पी.पी.एम।

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भारत में पशुधन की संख्या विश्व में सबसे ज्यादा है। यहां 299.9 मिलियन बोवाइन, 65.06 मिलियन भेड़ें, 135.17 मिलियन बकरियां, 0.62, मिलियन घोड़े, 0.40 मिलियन ऊंट एवं 729.2 मिलियन पोल्ट्री पाई जाती है, जो कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था एवं लोगों के जीवन यापन का एक मुख्य भाग बनाते हैं। आज के समय में हमारा देश 61.1 प्रतिशत हरा चारा, 21.9 प्रतिशत सूखी फसल के अवशेष एवं 64 प्रतिशत फीड की कमी से जूझ रहा है। कृषि से मिलने वाले फसल अवशेष जैसे की भूसा, कड़बी आदि कम घनत्व वाले रेशे होते हैं, इनमें प्रोटीन, घुलनशील कार्बोहाइड्रेट, खनिज एवं विटामिन कम मात्रा में पाए जाते हैं गुणवत्ता एवं मात्रा दोनों मापदंडों के हिसाब से देश में फीड की कमी है जो कि पशुधन विकास में एक मुख्य बाधा है।

दिन के अनुसार चारे की वृद्धि का चक्र
चक्र का पहला दिन – पहले दिन पानी में भिगोये हुए दानों को तस्तरियों में जो कि शेल्फ में रखी होती हैं, में सामान रूप से फैला दिया जाता है।
दूसरा दिन – दूसरे दिन बीज अंकुरित होने शुरू हो जाते हैं।
तीसरा और चौथा दिन – जड़ों का एक कालीन नुमा गुथा हुआ जाल दिखाई देने लगता है।
पांचवा एवं छठा दिन – जड़ों एवं तने की पूर्ण वृद्धि दिखा देने लगती है।
सांतवा दिन – इसे फीडिंग डे कहा जाता है, इस समय 8-10 इंच वृद्धि हो जाती है एवं इस समये हरे चारे को तस्तरियों से निकालकर पशुओं को खिलाया जा सकता है।
कम लागत वाले ग्रीन हाउस में 1 किलोग्राम मक्का से 7 से 10 दिनों में 8 से 10 किलोग्राम मक्का का चारा उगाया जा सकता है।

 

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जल कृषि से उगाये गए चारे की विशेषताएं

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  • इस चारे में विटामिन, खनिज एवं उत्प्रेरक भरपूर होते हैं।
  • इसे रुमान्थि पशु आसानी से पचा सकते हैं।
  • इसमें अच्छी गुणवत्ता का प्रोटीन पाया जाता है।
  • यह ऊर्जा से भरपूर होता है।
  • इसमें नमी की मात्रा अधिक होने से जानवरों में पेट दर्द की समस्या पैदा नहीं होती है।
  • पशुओं को दिए जाने वाले राशन में अगर यह चारा मिलाया जाये तो वह 7.5 प्रतिशत अधिक पाचन योग्य प्रोटीन एवं 4.9 प्रतिशत अधिक कुल पाचक पदार्थ प्रदान करेंगे।
  • विभिन्न प्रयोगों से देखा गया है कि इसे खिलाने से दूध उत्पादन में 7.8 से 13.7 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।
  • अंकुरित चारा विभिन्न पोषक तत्वों जैसे की बीटा कैरोटीन, विटामिन सी एवं ई, खनिज जैसे सेलेनियम एवं जिंक आदि का बहुत अच्छा स्त्रोत हैं।

 

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