चारा की कमी से पशुओं के खान-पान पर असर
भारत में 85 प्रतिशत से ज्यादा दुधारू पशु छोटे या कम आय वाले किसानों के पास ही हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, जिस कारण से वे पशुओं को दाना व गुणवत्ता वाले चारे को नहीं खिला सकते। इस खराब खानपान के कारण ही पशुओं की अनुवांशिक क्षमता भी खत्म होती जाती है तथा पशुओं में कई पोषक तत्वों के साथ-साथ सूक्ष्म खनिजों की भी कमी होती जाती है, जिसके कारण प्रजनन संबंधी एवं अन्य बीमारियां भी जन्म लेने लगती हैं।
वातावरणीय उतार-चढ़ाव के कारण खराब या कम गुणवत्ता वाले चारे अप्रैल-जून माह में उपलब्ध होते हैं। इनके अलावा कई प्राकृतिक आपदाएं जैसे- चक्रवात, भूकंप एवं सूखा जैसी समस्याओं के कारण भी चारे की उपलब्धता कम हो जाती है। इसलिए सरकार एनजीओ तथा किसानों के साथ-साथ पशुपालन विभाग को यह विचार करना चाहिए कि पशुओं के लिए आहार किस प्रकार उपलब्ध कराया जाये तथा चारे को किस प्रकार से संचित करके रखा जा सके।
भारत का दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान इस कारण से नहीं कि प्रत्येक पशु का दुग्ध उत्पादन ज्यादा है बल्कि इसलिए है कि यहां जानवरों की संख्या ज्यादा है। 1999 में भारत में प्रति गाय से 3.76 लीटर एवं प्रति भैंस से दुग्ध उत्पादन 29 लीटर था। हमारे देश में कम दूध उत्पादन के प्रमुख कारण खराब खानपान से संबंधित प्रबंधन, प्रतिकूल वातावरण व असामान्य स्वास्थ्य है। वातावरण पर तो कोई भी नियंत्रण नहीं रख सकता लेकिन कई वर्षों के अनुवांशिक सुधार में प्रयास से बेहतर परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं। |
हरे चारे का संरक्षण
मानसून के समय तथा उसके बाद उपर्युक्त मात्रा में हरा चारा उपलब्ध रहता है। अत: इस समय पशुओं को हरा चारा थोड़ा कम मात्रा में खिलाना चाहिए ताकि चारे को हे या माइलेज के रूप में संरक्षित किया जा सके।
नये-नये भोज्य पदार्थों को पशुओं के आहार में शामिल करना
भारत में लगभग 2000 से ज्यादा भोज्य पदार्थ उपलब्ध है जिन्हें पशुओं को सावधानीपूर्वक तथा उपचारित करके खिलाया जा सकता है। कई किसानों को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। कई फसलों के अवशेष जिन्हें पशुओं को खिलाया जा सकता है, वे जानकारी के अभाव में व्यर्थ हो रहे हैं तथा जानवर भूखे मर रहे हैं। कई वन उत्पाद, फसलों के अवशेष तथा हॉर्टीकल्चर से प्राप्त खाद्य पदार्थों को पशुओं को खिलाया जा सकता है, जैसे कि :-
- ताजा केले के पेड़ का तना पशुओं को खिलाया जा सकता है एवं इसके अच्छे परिणाम हैं। केले तने में उपर्युक्त मात्रा में पानी पाया जाता है अत: तना खिलाने के बाद पशुओं को अलग से पानी पिलाने की भी जरूरत नहीं होती है तथा इसे गर्मी में तनाव भी कम होता है।
- मूंगफली का भूसा चावल के भूसे की तुलना में ज्यादा अच्छा होता है क्योंकि सिमें प्रोटीन की मात्रा चावल के भूसे से ज्यादा होती है जो कि बरसीम के भूसे के बराबर (लगभग) होती है।
- गन्ने के भूसे में चावल तथा गेहूं की तुलना में कम पोषक तत्व होते हैं पर इसे खाद्य पदार्थों के अभाव की स्थिति में पशुओं को खिलाया जा सकता है।
- आम गुठलियों (बीज) गर्मियों में हर जगह उपलब्ध रहते हैं। इसमें प्रोटीन तथा ऊर्जा की मात्रा, चावल की दलिया के लगभग बराबर ही होती है। परन्तु टैनिन की मात्रा आम की गुठली में ज्यादा पायी जाती है, अत: इसे राशन में 10 प्रतिशत ही खिला सकते हैं।
- फलों का गूदा, औद्योगिक क्षेत्रों में उपलब्ध रहते हंै जैसे कि फलों के रस, जैम, जैली या अन्य फलों से बनने वाले उत्पाद बनाने वाली फैक्ट्रियों से निकलने फलों के अवशेष पशुओं को खिलाया जा सकता है। परन्तु इन सभी उत्पादों को पशुओं को खिलाने में समस्या यह है कि ये बेस्वाद होते हैं, अत: पशु इनको खाना पसंद नहीं करते हैं। अत: इन्हें गुड़ के साथ मिलाकर खिलाया जा सकता है।
चारा अभाव के समय पशुओं का आहार
- डॉ. हिमांशु प्रताप सिंह
- डॉ. दिव्या तिवारी
- डॉ. आर.के. जैन
- डॉ. रणजीत आइच