Uncategorized

परंपरागत खूँटियों से किया कीट नियंत्रण

कामयाब किसान की कहानी

सीहोर जिले के आष्टा विकासखण्ड मुख्यालय के नजदीक ग्राम किलेरामा में साढ़े चार हेक्टेयर कृषि भूमि के कृषक ओमप्रकाश अपने खेत में खरीफ एवं रबी की फसलों का परंपरागत रूप से उत्पादन ले रहे थे साथ ही फूल, मौसमी सब्जियों से भी अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे थे।

आत्मा योजनांतर्गत गत वर्ष कृषक सलाहकार समिति द्वारा ओमप्रकाश का चयन किसान मित्र के रूप में होने पर उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारियों की सलाह अनुसार डिब्लिंग विधि से काबुली चने की बोनी की। ओमप्रकाश बताते हैं कि इस विधि से बीज की मात्रा केवल दस किलोग्राम प्रति एकड़ लगी। उन्होंने बीजोपचार हेतु 2.5 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से कार्बेन्डाजिम फफूंद नाशक दवा का उपयोग किया उसके पश्चात राइजोबियम एवं पी.एस.बी की 5-5 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज उपचारित किया। खेत में लाइन से लाइन की दूरी 16 इंच तथा बीज से बीज की दूरी 5-5 इंच रखी तथा इसे रिज एन्ड फेरो विधि से बोया। इस मशीन से केवल दो बीज चना के तथा उसके साइड में एन पी के खाद भी डाला गया। शुरूआत मे प्रति एकड़ पौधों की संख्या बहुत कम दिखती थी किन्तु 20-25 दिन बाद जब पौधों का विकास चारों ओर हुआ तथा एन पी के 19:19:19 का छिड़काव 15 दिवस के अंतराल पर दो बार किया तो चना प्रदर्शन प्लाट को देखकर अन्य कृषक आश्चर्यचकित रह गये। ओमप्रकाश कहते हैं इस विधि से मैने बीज और डीजल की बचत की, मशीन से बहुत आसानी से बोनी की, निंदाई-गुड़ाई में सुविधा रही दवा का प्रयोग न्यूनतम रहा। एकीकृत कीट नियंत्रण में प्रति एकड़ पचास टी आकार की खूंटियाँ लगाई जिससे इल्लियों का प्रकोप बिना किसी खर्च के न्यूनतम रहा। ओमप्रकाश ने 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की। वे कहते हैं कि इस विधि से पाले की स्थिति में भी 17-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है। ओमप्रकाश अन्य कृषकों को भी डिब्लिंग पद्धति अपनाने की सलाह देते हैं।

Advertisement
Advertisement
Advertisements
Advertisement5
Advertisement