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आम बजट 2018-19 – किसान-किसानी की जिंदगी का

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जलेबी-बजट

(सुनील गंगराड़े)

बजट का सभी को इंतजार रहता है। पर जब भी आता है जलेबी की शक्ल में आता है। राहतों का सिरा कहां है, करों की पूंछ किधर है? पकड़ कोई नहीं पाता। इस बजट की प्रस्तुति में आने वाले चुनावों की आस टिकी है या गुजरात के गुजरे चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी के दर के आधार को निराशा। देश के किसानों, गरीब वर्ग के लोगों की अर्थव्यवस्था की उच्च विकास दर का लाभ पहुंचाने, कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए सरकार ने योजनाएं बनाई और दावे भी किए। इज ऑफ डूइंग से आगे बढ़कर इज ऑफ लिविंग पर जोर दिया जाएगा। अब ये आपको देखना है कि जिंदगी कितनी आसान हो पाई इन जुमलों से।

मोदी सरकार ने किसानों को उनकी फसल की लागत का डेढ़ गुना दाम देने का मायावी गणित दिया है। लेकिन अपनी पीठ भी लगे हाथ थपथपाई कि रबी की अधिकांश फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत से कम से कम डेढ़ गुना तय किया जा चुका है। अब आप गेहूं का लागत मूल्य निकालिए और इस रबी में घोषित समर्थन मूल्य से मिलान करिएगा। आपके ज्ञान चक्षु खुल जाएंगे। जुमलों की ये जलेबी हमारे ‘अन्नदाता’ किसान भाई की समझ से परे है। ये राजनीति में कथनी और करनी में फर्क की जिंदा मिसाल है।

वित्त मंत्री ने समर्थन मूल्य पर खरीदी न होने पर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि यदि बाजार में दाम एमएसपी से कम हो सरकार या तो एमएसपी पर खरीदी करे या किसी अन्य व्यवस्था के अंतर्गत किसान को पूरी एमएसपी मिले। इस दिशा में केन्द्र सरकार नीति आयोग एवं राज्य सरकारों के साथ चर्चा कर पुख्ता व्यवस्था करेगा, जिससे किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिल सके।

जैविक कृषिअब ये भविष्य के गर्भ में है कि इन मंत्रणाओं से मंथन से क्या हल निकलता है। मूल्य अंतर भुगतान जैसी योजनाओं के त्रुटि रहित संचालन से ही किसानों की गांठ में रकम आएगी अन्यथा ये सिस्टम व्यापारियों, बिचौलियों की तिजोरियां ही भरेगा।

परन्तु एमएसपी पर खरीदी जिंसे राज्य सरकारों दुबारा व्यापारियों को बेच दी जाएंगी, जिस प्रकार प्याज का हश्र हुआ या एफसीआई के गेहूं- चावल का होता है तो किसान और उपभोक्ता तो ठगे ही रह जाएंगे। वर्ष 2022 तक जब देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा होगा, किसानों की आय दुगुनी करने के लिए कमर कसे बैठी है सरकार। परन्तु दूसरी ओर राष्ट्रपति, राज्यपाल, सांसदों का वेतन तत्काल प्रभाव से बढ़ा दिया जाता है। यहां अन्नदाता सब्र करो।
आज देश में कृषि उत्पादन रिकार्ड स्तर पर है। वर्ष 2016-17 में लगभग 27 करोड़ 50 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन हुआ वहीं 30 करोड़ टन फल-सब्जी का ऐतिहासिक उत्पादन हुआ।

कृषि उत्पादों को चिन्हित कर क्लस्टर आधारित जिलों का विकास करने की बात इस बजट में की गई है ताकि उत्पादन से लेकर मार्केटिंग तक की संपूर्ण श्रृंखला का लाभ किसानों को मिले। इस प्रकार की योजना पूर्व से ही अन्य नामों से राज्यों में एग्री एक्सोर्ट जोन के रूप में शुरू की गई पर निरंतरता और सोच के अभाव में दम तोड़ गई।

बजट में कृषि उत्पादक संगठनों (स्नक्कह्रज्ह्य) एवं ग्रामीण उत्पादक संगठनों (ङ्कक्कह्रज्ह्य) के माध्यम से जैविक कृषि को बढ़ावा देने की बात कही गई है। प्रत्येक समूह या संगठन के 1000 हेक्टेयर के क्लस्टर होंगे। अच्छी पहल है, परन्तु इस क्षेत्र में निष्कर्षतात्मक शोध एवं विकास की गहन आवश्यकता है।

खाद्य प्रसंस्करण

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र प्रति वर्ष 8 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के लिये बजट वर्ष 2017-18 के 715 करोड़ रुपए के मुकाबले वर्ष 2018-19 के बजट में दुगना कर 1400 करोड़ रुपए किया जा रहा है। टमाटर, आलू, प्याज के उत्पादकों के लिए आपरेशन ग्रीन्स शुरू किया जाएगा जिसमें भंडारण, प्रसंस्करण, विपणन की सुविधाएं किसानों को उपलब्ध होंगी। यदि ये आपरेशन सही दिशा में दिल्ली से निकलकर दलौदा तक हकीकत में उतर जाता है तो इन फसलों के किसानों को निश्चित लाभ होगा। गत वर्ष आलू, प्याज, टमाटर के किसानों को भरपूर उत्पादन के बाद कीमतों ने निराश किया और उचित भंडारण के अभाव में उपज नष्ट भी हुई।

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