सोयाबीन में सूखा प्रतिरोधी किस्मों के विकास विषय पर वेबिनार आयोजित
11 जून 2021, इंदौर । सोयाबीन में सूखा प्रतिरोधी किस्मों के विकास विषय पर वेबिनार आयोजित – भा.कृ अनु.प.-भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान, इंदौर द्वारा जारी वेबिनारों कीश्रृंखला में, गत दिनों ‘सोयाबीन में सूखा प्रतिरोधी किस्मों के विकास हेतु जननद्रव्योंके मूल्यांकन के लिए फिनोटाइपिंग रणनीतियाँ’ विषय पर वेबिनार आयोजित किया गया, जिसमे अखिल भारतीय समन्वित सोयाबीन अनुसन्धान परियोजना के महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्णाटक,तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड एवं राजस्थान के केन्द्रों में कार्यरत 40 वैज्ञानिकों ने भाग लिया|
भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान इंदौर के डॉ जी. के सातपुते, वरिष्ठवैज्ञानिक ने कहा कि वर्तमान में बदलते जलवायु परिदृश्य में लगातार आ रही अप्रत्याशित सूखे की समस्या से सोयाबीन की उत्पादकता एवं बीज की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। इसी कारण नई सोयाबीन की किस्मों की उत्पादकता भी लगातार आ रही सूखे की स्थिति में अपनी उत्पादन क्षमता का प्रदर्शन नहीं कर पाती है। चूँकि सूखे के लिए प्रतिरोधिता वाले गुणों का सोयाबीन की फसल में समावेश एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है, अतः किस्मों के विकास के लिए अपनाई जाने वाली अनुसंधान पद्धतियों में फिनोटाइपिंग आधारित प्रजनन रणनीतियों के उपयोग से यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। इस दिशा में भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर ने सूखा प्रतिरोधी किस्मों के विकास के साथ-साथ नए जननद्रव्य की पहचान के लिए काम शुरू किया है। इसी का परिणाम है कि आईसीएआर-आईआईएसआर, सूखे की स्थिति में भी अच्छी उत्पादकता प्राप्त करने वाली कुछ चुनिन्दा किस्मों के विकास में सफल रहा है।
हाल ही में, संस्थान ने देश के पूर्वी हिस्से(पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़) के लिए सोयाबीन की एक नई किस्म एनआरसी136 विकसित की है, जिसका औसत उत्पादन 17 क्विंटल/हे. और अधिकतम उत्पादन क्षमता 30 क्विंटल/हे. तक है। पूर्वी क्षेत्र की लोकप्रिय किस्म जेएस 97-52 की तुलना में एन.आर.सी. 136 ने संस्थान द्वारा इस विशिष्ट प्रकार के अनुसन्धान कार्यक्रमों के लिए स्थापित सुविधा “रेनआउट शेल्टर” में 30% अधिक उत्पादन प्राप्त किया है।
साथ ही यह किस्म पूर्वी क्षेत्र के प्रमुख रोग इंडियन बड ब्लाइट व पर्णभक्षी कीटों के लिए भी प्रतिरोधी है। फिनोटाइपिंग आधारित प्रजनन रणनीतियों का उपयोग करते हुए, आईसीएआर-आईआईएसआर द्वारा अब यह प्रयास किये जा रहे हैं कि देश के लगभग 80 प्रतिशत क्षेत्रफल एवं उत्पादन में योगदान देने वाले मध्य क्षेत्र के लिए भी इस प्रकार की शीघ्र पकनेवाली सूखा प्रतिरोधी किस्मों का विकास किया जाये, जिससे तिलहन उत्पादन एवं खाद्य तेल की अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता प्राप्त की जा सके। .वेबिनार की अध्यक्षता संस्थान की निदेशक डॉ नीता खांडेकर ने की जबकि समन्वयक डॉ गिरिराज कुमावत ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा।