धार्मिक स्थानों का पानी सबसे अधिक प्रदूषित, उज्जैन का भी नाम रिपोर्ट में शामिल
26 दिसंबर 2024, उज्जैन: धार्मिक स्थानों का पानी सबसे अधिक प्रदूषित, उज्जैन का भी नाम रिपोर्ट में शामिल – शिप्रा के पानी को कितना ही शुद्ध और पीने योग्य बनाने के दावे किए जाते हो लेकिन बावजूद इसके गऊघाट से लेकर रामघाट और सिद्धवट से लेकर महिदपुर तक बहने वाली शिप्रा नदी का पानी न केवल काला बल्कि डी कैटेगरी का है। यह खुलासा हुआ है मप्र प्रदूषण नियंत्रण की रिपोर्ट में हुआ है। दरअसल बोर्ड की रिपोर्ट में प्रदेश में दो दर्जन से अधिक नदियों के पानी को प्रदूषित बताया गया है और इनमें उज्जैन का भी नाम शामिल है।
भोपाल से प्राप्त जानकारी के अनुसार दो दर्जन से ज्यादा ऐसी नदियां हैं जो प्रदूषित हो चुकी हैं। इनमें से क्षिप्रा, बेतवा, नर्मदा नदियां तो ऐसी हैं कि इनका पानी पीना तो दूर आचमन करने लायक भी नहीं बचा है। खासकर इन नदियों के किनारे स्थित धार्मिक स्थलों का पानी सबसे अधिक प्रदूषित हैं।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार मप्र की 89 नदियां ऐसी हैं, जिनमें साल भर पानी रहता है। एमपीपीसीबी ने इन नदियों के रूट पर 293 स्थानों पर पानी की जांच की। रिपोर्ट में सामने आया कि 197 जगहों का पानी ए-कैटेगरी का है। जबकि 96 स्थानों पर पानी की गुणवत्ता खराब पाई गई। इनमें से 60 से अधिक स्थान धार्मिक स्थलों के पास हैं। यहां का पानी आचमन या स्नान तो छोड़िए हाथ धोने के लायक भी नहीं पाया गया है। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पेश की गई एमपीपीसीबी की 2023-24 के वार्षिक प्रतिवेदन में नदियों के पानी की गुणवत्ता की वार्षिक औसत स्थिति के बारे में बताया गया है। रिपोर्ट में इंदौर की कान्ह नदी को सबसे प्रदूषित बताया गया है। उज्जैन की क्षिप्रा नदी की स्थिति भी खराब है। देवास की छोटी कालीसिंध नदी सूखने से उसकी जांच नहीं हो सकी। एमपीपीसीबी ने 5 कैटेगरी में गुणवत्ता जांची है। ए-कैटेगरी का पानी रोगाणु मुक्त होता है। इसे बिना किसी परंपरागत उपचार के सीधे पीने के है। बी-कैटेगरी में रोगाणु (जैसे बैक्टीरिया, वायरस और अन्य सूक्ष्मजीव) पाए जाते हैं। यह धुलाई या सफाई के लिए उपयुक्त है। सी-कैटेगरी के पानी में अतिरिक्त हैवी मेटल और अन्य प्रदूषक तत्व होते हैं। डी-कैटेगरी के पानी का रंग पूरी तरह काला हो जाता है। ई-कैटेगरी के पानी उद्योगों से निकले अपशिष्ट या अत्यधिक घातक प्रदूषण से प्रभावित होता है। मप्र के छोटे और कस्बाई शहरों के पास से गुजरने वाली 32 छोटी नदियों को पुनर्जीवित करने की योजना फाइलों में अटकी हुई है। विधानसभा में छोटी नदियों की साफ सफाई को लेकर पूछे गए एक सवाल में सामने आई है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत 253 नगरीय निकायों को यूज्ड और ग्रे वाटर को ट्रीटमेंट के बाद या रीसाइकिल कर नदियों में गंदा पानी जाने से रोकना था। इसका उद्देश्य इन नदियों को निर्मल और अविरल बनाना है। तीन साल पहले इन प्रोजेक्ट्स के लिए राशि मंजूर की गई थी, लेकिन 110 नगरीय निकायों के प्रोजेक्ट अब तक फाइलों से बाहर नहीं आ सके हैं। रिपोर्ट के अनुसार कान्ह सबसे ज्यादा प्रदूषित नहीं है। वहीं चंबल का पानी भी डी-कैटेगरी का है। बेतवा नदी में मंडीदीप के अपस्ट्रीम और नयापुरा डाउनस्ट्रीम पर पानी सी- कैटेगरी का है। यह पानी नहाने के योग्य भी नहीं है। भोजपुर मंदिर ब्रिज और विदिशा के चरण तीर्थ घाट पर भी पानी बी-कैटेगरी का है। चंबल नदी में उज्जैन के जूना नागदा, इटलावदा, गीदघर में पानी डी-कैटेगरी का है। राजगढ़, ताल रोड ब्रिज के पास पानी सी-कैटेगरी का है। क्षिप्रा नदी में देवास के एबी रोड जल प्रदाय केंद्र पर पानी ए-कैटेगरी का है। हवनखेड़ी नागदमन से पानी डी-कैटेगरी में आ जाता है। उज्जैन के गऊघाट रामघाट, सिद्धवट घाट से महिदपुर तक पानी काला और डी-कैटेगरी का है।
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