राज्य कृषि समाचार (State News)

जनेकृविवि द्वारा विकसित उड़द की दो एवं मसूर की नई किस्म प्रदेश के किसानों के लिये नई सौगात

26 अप्रैल 2025, जबलपुर: जनेकृविवि द्वारा विकसित उड़द की दो एवं मसूर की नई किस्म प्रदेश के किसानों के लिये नई सौगात – जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय,जबलपुर के कुलपति डॉ. प्रमोद कुमार मिश्रा की प्रेरणा से दलहनी फसलों के क्षेत्र में विश्वविद्यालय ने एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने उड़द की दो नवीन उन्नत किस्मों  TJU  339 एवं  TJU 130 साथ ही मसूर की   JLS  6.2 का सफलतापूर्वक विकास किया है। ये सभी किस्में कम अवधि में पकने वाली, बहुरोगरोधी तथा उच्च उत्पादकतायुक्त किस्में है। उड़द की  TJU  339 किस्म की पकने की अवधि मात्र 62-65 दिन है, जबकि   TJU 130  किस्म 60-62 दिन में तैयार हो जाती है। ये विशेष रूप से किसानों को अल्प समय में फसल तैयार करने का अवसर प्रदान करती है, जिससे वे एक ही खेत  से अधिक फसलें उगा सकते हैं। उड़द की  TJU  339 किस्म से 16 से 18 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त हो सकती है, जबकि  TJU     130 किस्म 15 से 17 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती है।

उड़द की खेती में पीला मोजेक रोग बहुत बड़ी समस्या मानी जाती है। जनेकृविवि द्वारा विकसित उड़द की दोनों किस्में पीला मोजेक रोक के प्रति सहनशील है इससे किसानों को जहां एक ओर पीला मोजेक रोग को रोकने के लिये रासायनिक दवाओं पर निर्भरता कम होगी, वहीं दूसरी ओर उड़द की खेती की उत्पादन लागत भी कम की जा सकेगी, जिससे फसल की गुणवत्ता  और उपज में आशा के अनुकूल सुधार होगें। वर्तमान में उड़द की खेती का क्षेत्र खरीफ मौसम से हटकर जायद मौसम की ओर तेजी से स्थानांतरित हो रहा है। इसका एक प्रमुख कारण है कि खरीफ में अच्छे किस्मों के बीज की कमी महसूस की जा रही थी। ज.ने.कृ.वि.वि. द्वारा विकसित ये सभी किस्में इस कमी को दूर करेंगी एवं उड़द की खेती को खरीफ मौसम में एक नई दिशा प्रदान करेंगी।
किसानों के बीच में मसूर के बड़े दाने की मांग को देखते हुये जनेकृविवि द्वारा  JLS     6.2 किस्म का विकास किया गया है, जो उकठा रोग के लिये सहनशील है एवं 20-25 क्विंटल उत्पादकता प्रदान करती है। यह किस्म प्रदेश के खरीफ की धान की फसल के बाद परती क्षेत्रों के लिये अति उपयुक्त है जो कि अक्सर सिंचाई या रबी की उपयुक्त किस्मों के अभाव में परती छूट जाती है। रबी के लिये वर्षा आधारित कृषि, समय या देरी से बुवाई करने के लिये भी यह किस्म अति उपयुक्त है। देर से बोनी करने पर भी इसकी औसत उपज लगभग 16 से 18 क्विंटल/हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती है। मसूर की खेती में उगरा रोग बहुत बड़ी समस्या मानी जाती है,जनेकृविवि की  JLS     6.2 उगरा रोग के प्रति सहनशील किस्म है। साथ ही इसमें बहुरोगरोधी क्षमता है और यह मसूर के प्रमुख रोगों जैसे गेरूवा और एस्कोकाइटा ब्लाइट के लिये प्रतिरोधी है।  इस पर मांहू का प्रभाव भी कम होता है। आशा है कि मसूर की यह नवीन प्रजाति कृृषकों के बीच में अपनी अलग पहंचान बनायेगी।

ज.ने.कृ.वि.वि. के कुलपति आशान्वित है कि ये किस्में किसानों के लिये लाभकारी सिद्ध होंगी और मध्यप्रदेश सहित देश के अन्य उड़द एवं मसूर उत्पादन करने वाले क्षेत्रों में इसका व्यापक उपयोग होगा। विश्वविद्यालय का यह प्रयास न केवल किसानों की आय बढ़ाने में सहायक होगा, अपितु देश की खाद्य सुरक्षा एवं दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।

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