राज्य कृषि समाचार (State News)

वृक्ष महिमावली

29 जुलाई 2024, भोपाल: वृक्ष महिमावली –
वृक्ष प्रकृति का मूल है, इस जीवन का सार।
सबका जीवन घूमता, इसके चक्कर मार॥ 1॥
वृक्षों से ही, जीव हैं, वृक्षों से संसार।

श्री अवधेश कुमार

वृक्ष बिना इस प्रकृति का, संभव नहीं विचार॥ 2॥
वृक्ष प्रकृति की शान है, और जगत आधार ।
वृक्ष लगा अब कीजिये, धरती का श्रृंगार ॥ 3॥
वृक्ष हरें सब कष्ट को, वृक्ष शांति के दूत।
वृक्ष हमारे पुत्र सम, वृक्ष कमाई पूत ॥ 4॥
वृक्षों से ही मेघ हैं, और मेघ से जल।
जल से उपजत अन्न हैं,जो जीवन का बल ॥ 5॥
ये अनमोले वृक्ष हैं, सभी गुणों की खान।
फिर भी इनको काटता, ये मूरख इंसान॥ 6॥
वृक्ष बढ़े ,खुशियां बढ़ें, शीतल इनकी छांव।
इनकी छाया में रखें, अपने-अपने गांव ॥ 7॥
मत काटो इनको वृथा, देंगे ये अभिशाप।
जीवन सुखी न होयगा, लाख करो फिर जाप ॥ 8॥
वृक्ष मनुज के भेद पर, करिये तनिक विचार।
अंतर केवल एक ये, चलने से लाचार॥ 9॥
वृक्ष संत के रूप हैं ,सदा करें उपकार।
देते हैं आशीष फल, मांगे थोड़ा प्यार॥ 10॥
उपकारी ये वृक्ष हैं, सहते वर्षा धूप।
छाया दे शीतल करें, फल से काटें भूख ॥ 11॥
अमृत वर्षा ये करें, करें वायु को शुद्ध ।
हो गये हैं, सिद्धार्थ भी,वृक्ष तले ही बुद्ध ॥ 12॥
स्वच्छ वायु देकर हमें, जीवन अवधि बढ़ांय ।
वृक्ष करें उपकार यूं, क्यों न संत कहांय ॥ 13॥
पर भोजन के कारने, करें स्वयं को राख ।
ऐसे ऊंचे संत की, कहां मिलेगी साख ॥ 14॥
अनुपम रचना ईश की, वृक्षों का संसार ।
संत रूप ये वृक्ष हैं, पृथ्वी का श्रृंगार ॥ 15॥
पंथी के आश्रय यही, पंछी के घर-बार।
ये ही अनुपम वृक्ष हैं, औषधि के भंडार ॥ 16॥
जीवन का पहिया चले, वृक्ष धुरी के साथ ।
इन बिन जीवन होयगा, जैसे एक अनाथ रत॥ 17॥
वृक्ष प्रदूषण कम करें, जीवन हो आसान।
वृक्ष लगा पहनाइयें, धरती को परिधान ॥ 18॥
वृक्ष बिना संभव नहीं, जीवन का कोई काम ।
रोटी, कपड़ा, देय ये, ये ही देंय मकान ॥ 19॥
क्या बचपन का पालना, क्या शादी की डोल।
क्या बूढ़ों की लाठियां, वृक्ष बिना हैं बोल॥ 20॥
क्या संभव है कर्म कोई, वृक्षन बिना विचार ।
अंत समय भी अर्थियां, यही लगायें पार॥ 21॥
बन सकते हैं वृक्ष ये, बंजर का श्रृंगार।
फिर क्यों सुजन न कर रहे, इसके लिये विचार ॥ 22॥
वृक्षों की महिमा अमित, क्या-क्या करें बखान।
जग में, केवल वृक्ष ही, हैं असीम गुण खान॥ 23॥
वृक्ष लगा कर कीजिये, पुण्यों को साकार।
इन्हें वृथा मत काटिये, कहें अवधेश कुमार॥ 24॥

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