सेहत और उपवास का अटूट रिश्ता
16 अक्टूबर 2024, भोपाल: सेहत और उपवास का अटूट रिश्ता – प्राकृतिक चिकित्सा में उपवास को स्वास्थ्य लाभ के लिये अचूक औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है.प्राचीन काल में शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिये उपवास का सभी धर्मों में अति महत्वपूर्ण स्थान रहा है. लेकिन बड़ी विडंबना है कि उपवास के नाम पर नाना प्रकार के दूध से बने व्यंजनों, साबूदाने की खिचड़ी जैसे अन्य कई पदार्थों का उपयोग कर हम अपने आपको व्रत के नाम पर धोखा दे रहे हैं.
यह स्वास्थ्य की दृष्टि से और ना ही धार्मिक दृष्टि से हितकर है. इसे हम उपवास ना कहकर बकवास कहे तो ज्यादा उपयुक्त होगा. उपवास, जल, फल अथवा फलों के रस या नींबू पानी पर रह कर अपनी आवश्यकता और उद्देश्य को ध्यान में रखकर करने की सलाह दी जाती है. उपवास काल में हमारे पाचन संस्थान को विश्राम मिलता है. जो ऊर्जा भोजन को पचाने में लगती है वह बच जाती है। यही ऊर्जा उस समय शरीर के बाहर निकालने में मदद करती है. जिससे शरीर निरोगी हो जाता है।
कई लोग एक समय का भोजन नहीं छोड़ सकते और डरते हैं कि कहीं शरीर की शक्ति कम ना हो जाए. देखा जाए तो आजकल के कई आधुनिक रोग (मोटापा, मधुमेह,हृदय रोग आदि) भोजन की अधिकता के ही परणाम है. इसीलिये तो कहते हैं कि व्यक्ति अपनी दांतों से ही अपनी कब्र खोदता है. जीवन बीमा के आंकड़ों के आधार पर देखा गया कि जितना कम वजन होगा आयु उतनी अधिक होगी।
रोग व उपवास – क्या आपने कभी किसी जानवर के व्यवहार का निरीक्षण किया है? जब वे बीमार होते हैं तो किसी कोने में चुपचाप पड़ जाते हैं और भोजन का सर्वथा त्याग कर देते हैं. मनुष्य की प्रकृति भी उसे इसी प्रकार की चेतावनी देती है परंतु वह उस चेतावनी को कोई महत्व नहीं देता और भोजन के प्रति स्वाभाविक रूचि ना होते हुए भी खा लेता है. इस प्रकार नाना प्रकार के रोगों के चंगुल में खुद फंसता है. लोगों का ऐसा विचार है कि भोजन से ही शक्ति मिलती है और भोजन ना करने से शक्ति का हृास होता है. इसलिए रोगी को खाने के लिये मजबूर किया जाता है। रोग की सर्वप्रथम पहचान है भोजन के प्रति अरूचि. यह स्वाभाविक अवस्था है जो रोग से मुक्त होने के लिए प्रकृति ने बना रखी है. इसको ध्यान में रखना स्वास्थ्य की दृष्टि से अति आवश्यक है। उपवास से विषाक्त पदार्थों के निष्कासन में सहयोग मिलता है और जीवाणुओं का वहिष्कार शीघ्र हो जाता है. चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दवाओं द्वारा रोग के लक्षणों को रोक दिया जाता है। यह बात प्राकृतिक नियमों के विरूद्घ है. रोग के लक्षण दब जाने से रोग समाप्त नहीं होता बल्कि धीरे-धीरे जीर्ण रोग व बाद में जाकर असाध्य रोग में परिणित हो जाता हैं।
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