सोयाबीन विरुद्ध मानसून
हालांकि देश एवं प्रदेश में तिलहनी फसलों की बोनी गत वर्ष से अधिक रकबे में हुई है। देश में तिलहनी फसलों की बुवाई 182 लाख हेक्टेयर में की गई है इसमें सोयाबीन की बोनी 115 लाख हेक्टेयर में होने का अनुमान है और उत्पादन लगभग 118 लाख टन की संभावना जताई गई है। परन्तु जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है। पोची फली, बारीक दानें, अफलन के चलते उपज कहीं-कहीं एक क्विंटल प्रति एकड़ तक सिमट कर रह गई है।
प्रदेश के कई जिलों में सोयाबीन की कटाई हो रही है तथा कुछ मंडियों में आवक भी होने लगी है। हरदा जिले से कृषक जगत प्रतिनिधि ने बताया कि पानी से कटी फसल गीली हो गई है तथा मिट्टी गीली होने के कारण हार्वेस्टर भी खेत में फंस गया है। सितंबर में भी बारिश कम होने के अनुमान से चिंताए बढ़ी हैं। इससे मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में सोयाबीन उत्पादन कमजोर रहने की आशंका बढ़ गई है। महाराष्ट्र और कर्नाटक के सोयाबीन उत्पादन क्षेत्रों में मराठवाडा की तरह ही सूखे जैसी स्थिति बनी हुई है।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) इन्दौर के चेयरमैन श्री दविश जैन कहते हैं, मध्य प्रदेश के सोयाबीन उत्पादक क्षेत्रों में खेतों में नमी कम रहने से फसल पीली हो रही है। आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में भी यही स्थिति है।
हाल की एक समीक्षा में सोपा ने कहा कि करीब 12 प्रतिशत क्षेत्र में फसल की गुणवत्ता काफी खराब है, जबकि बाकी 17 प्रतिशत रकबे में फसल कमजोर हुई है। 60 प्रतिशत क्षेत्र में फसल की हालत सामान्य है और 12 प्रतिशत रकबा अच्छा है। 6 प्रतिशत क्षेत्र में फसल बहुत अच्छी हालत में बताई गई है। श्री जैन ने कहा, फसल की बुआई के बाद बारिश कम रही जिससे खरपतावार नाशकों का छिड़काव नहीं हो सका। इससे कुछ क्षेत्रों में खरपतावार में सामान्य से अधिक बढ़ोतरी हुई और इससे फसलों पर कीटों का आक्रमण बढ़ गया। मध्य प्रदेश में इस वर्ष 65.86 लाख हेक्टेयर में तिलहनी फसलों की बोनी हुई है इसमें सोयाबीन 59 लाख हेक्टेयर में बोई गई है। गत वर्ष 57 लाख हे. में बोई गई थी। इस वर्ष विषम परिस्थितियों के कारण सोयाबीन उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ। अंतिम आंकड़े आना अभी शेष हैं।