सेक्स सॉर्टेड सीमेन’ तकनीक: कृत्रिम गर्भाधान से होगा पशु नस्ल सुधार
24 सितम्बर 2025, कटनी: सेक्स सॉर्टेड सीमेन’ तकनीक: कृत्रिम गर्भाधान से होगा पशु नस्ल सुधार – पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा आधुनिक एवं नवीन तकनीक “सेक्स सॉर्टेड सीमेन” से कृत्रिम गर्भाधान किया जा रहा है। इस तकनीक से गाय या भैंस से लगभग 90 प्रतिशत केवल बछिया या मादा पड़िया ही पैदा होते हैं। ये मादा बच्चे बड़े होकर उन्नत नस्ल के एवं 10-15 लीटर प्रतिदिन दूध देने वाले दुधारू गाय या भैंस बनते हैं। जिससे किसानों की आय में लगभग तीन वर्ष बाद आमदनी में 4-5 गुना तक वृद्धि होती है। आय में वृद्धि से किसानों के आर्थिक एवं सामाजिक स्तर पर अभूतपूर्व सुधार आयेगा। जिले में पशुपालकों का रुझान एवं रुचि इस योजना के प्रति कमजोर है। जबकि पशुओं में नस्ल सुधार, ब्रीड डेवलपमेंट एवं तात्कालिक दूध उत्पादन में वृद्धि हेतु सेक्स सॉर्टेड सीमेन द्वारा कृत्रिम गर्भाधान सबसे आधुनिक और बेहतर तकनीक साबित हो रही है।
शासन द्वारा इस तकनीक से कृत्रिम गर्भाधान करने हेतु सीमेन डोज का शुल्क प्रति डोज मात्र 100 रुपये रखा गया है। स्वयंसेवी गौ-सेवक एवं मैत्री कार्यकर्ता आदि 100 रुपये के साथ अपना समुचित पारिश्रमिक भी पशुपालक से ले सकते हैं। इस योजना के लाभ के लिए पशुपालक को अपनी गाय या भैंस के गर्मी में आने की स्थिति में, अपने निवास स्थान के निकटतम पशु चिकित्सालय, पशु औषधालय, पशु उपकेंद्र, पशु चिकित्सक, क्षेत्राधिकारी या संस्था प्रभारी से संपर्क करना होगा। यह सुविधा मोबाइल वेटरनरी यूनिट पशुधन संजीवनी 1962 कॉल सेंटर में कॉल लगाने पर एवं ग्राम पंचायत के प्रशिक्षित गौ सेवक, मैत्री कार्यकर्ता एवं कृत्रिम गर्भाधान प्राइवेट प्रैक्टिशनर द्वारा भी घर पहुंच उपलब्ध कराई जा रही है। पशुओं के गर्मी में आने की स्थिति में पशुपालक सूचना देने के पूर्व से ही पशु को अपने घर पर बांधकर रखें। साथ ही यदि पशु गर्मी में सुबह आता है तो उसे शाम को कृत्रिम गर्भाधान होगा। जबकि यदि रात्रि में आता है तो आगामी दिवस सुबह से लेकर दोपहर के बीच में कृत्रिम गर्भाधान होना चाहिए।
यह सुविधा जिन ग्रामों में पशु चिकित्सालय एवं औषधालय है वहां पर चिकित्सालय पर एवं जहां पर संस्थाएं नहीं है ,वहां पर विभागीय स्टाफ घर पहुंच सेवाएं भी प्रदान कर रहे हैं। पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा पशु नस्ल सुधार एवं पशु संवर्धन हेतु सामान्य सीमेन द्वारा कृत्रिम गर्भाधान की योजना विगत कई वर्षो से संचालित है, किन्तु इस प्रकार के कृत्रिम गर्भाधान से गाय एवं भैंस में नस्ल सुधार कार्यक्रम में नर एवं मादा बच्चे पैदा होने की संभावना 50-50 प्रतिशत रहती है। कृषि में मशीनीकरण के कारण बैलों एवं पाड़ों का उपयोग बहुत कम हो गया है। जिसके कारण वह पशुपालकों के लिए अनुपयोगी होकर आवारा घूम रहे हैं। अतः यह तकनीक पशुपालकों के लिए आर्थिक बोझ बढ़ाने वाली एवं समय जाया करने वाली है।
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