नाइट्रस ऑक्साइड से भी बचाइए, दुनिया को
लेखक: राकेश दुबे, मो.: 9425022703
01 अक्टूबर 2024, भोपाल: नाइट्रस ऑक्साइड से भी बचाइए, दुनिया को – एक अध्ययन में यह तथ्य उजागर हुआ है कि नाइट्रिक ऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के अलावा खेतों से उत्सर्जित अमोनिया भी इकोसिस्टम में पहुंच, दूसरी रासायनिक क्रियाओं के मेल से अम्लीय वर्षा तक के लिए जिम्मेदार है। एयरकंडीशनर और फ्रिज में भरी जाने वाली गैस हाइड्रोफ्लोरोकार्बन्स यानी एचएफसी गैसें भी नाइट्रोजन ट्राइफ्लोराइड यानी ‘एफ श्रेणी की बेहद खतरनाक गैसोंÓ में हैं जो पर्यावरण के लिए कितनी खतरनाक हैं।
जलवायु परिवर्तन के लिए जितने भी ज्ञात और चर्चित कारण हैं, उनमें अब नाइट्रोजन भी एक नया नाम बन गया है। ऐसा लगता है कि लंबे समय तक इस पर वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने ध्यान नहीं दिया। सिंथेटिक उर्वरकों के उपयोग, अपशिष्ट जल के निर्वहन और जीवाश्म ईंधन के दहन से बढ़ता नाइट्रोजन का प्रभाव एक बड़ा खतरा है। यह भूमि, जल और वायु को प्रदूषित कर जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देता है और ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचाता है।
ईको सिस्टम के लिए खतरनाक
इस सच्चाई तक पहुंचने में साक्ष्य, प्रमाण और वास्तविकताओं से तालमेल बिठाने में लंबा समय लगा। अब खेती-किसानी से लेकर पशुपालन में इसके भरपूर उपयोग को जलवायु परिवर्तन का उतना ही दोषी माना जा रहा है, जितना मानव जनित कॉर्बन डाइऑक्साइड और मीथेन को। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी यूएनईपी प्रतिक्रियाशील नाइट्रोजन के बारे में हालिया प्रकाशित फ्रंटियर्स रिपोर्ट बेहद चौंकाती है। साल 2018-19 में तमाम अध्ययनों के बाद जारी चेतावनी में नाइट्रोजन प्रदूषक को खतरनाक बताया गया, लेकिन वैज्ञानिक अब भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। यह ऐसा मिश्रण बनकर सामने आया जो स्वास्थ्य, जलवायु तथा पारिस्थितिक तंत्र यानी ईको सिस्टम के लिए खतरनाक साबित हुआ। इससे जल-वायु दोनों की गुणवत्ता के साथ ग्रीन हाउस गैस संतुलन भी बेहद प्रभावित हुआ। इसने पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया। नाइट्रिक ऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के अलावा खेतों से उत्सर्जित अमोनिया भी इकोसिस्टम में पहुंच, दूसरी रासायनिक क्रियाओं के मेल से अम्लीय वर्षा तक के लिए जिम्मेदार दिखा। एयरकंडीशनर और फ्रिज में भरी जाने वाली गैस हाइड्रोफ्लोरोकार्बन्स यानी एचएफसी गैसें भी नाइट्रोजन ट्राइफ्लोराइड यानी ‘एफ श्रेणी की बेहद खतरनाक गैसोंÓ में हैं जो पर्यावरण के लिए कितनी खतरनाक हैं, सर्वविदित है।
वायुमण्डल को जबरदस्त नुकसान
वैज्ञानिकों ने पर्यावरणीय आंकड़ों के विश्लेषण के बाद जारी हालिया शोध पत्र में कहा कि नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में हुई भारी वृद्धि खेती-किसानी और पशुपालन गतिविधियों के चलते हुई। यह उतना ही सच भी है कि अज्ञानतावश ही इसे रोकने या कम करने कोशिशें नहीं हुईं। जिस तेजी से सिंथेटिक उर्वरकों और पशुपालन में नाइट्रस ऑक्साइड का उपयोग बढ़ा, दबे पांव उतना ही इसने वायुमण्डल को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया।
वातावरण को लगभग 300 गुना अधिक गर्म करती है
स्टैनफोर्ड के वैज्ञानिक शोधों से सामने आया कि नाइट्रस ऑक्साइड इतना शक्तिशाली है कि एक पाउंड गैस 114 साल तक एक पाउंड कार्बन की तुलना में वातावरण को लगभग 300 गुना अधिक गर्म करती है। कहीं बेकाबू से बढ़ते तापमान के पीछे यही तो नहीं? वायुमंडल में इतने लंबे समय तक उपस्थिति और इसकी घातकता को समझ पाने में देरी तो हुई। नाइट्रस ऑक्साइड निश्चित रूप से समताप मंडल की ओजोन परत को नष्ट करने के साथ पृथ्वी को अधिक सौर विकिरण के संपर्क में लाकर नुकसान पहुंचाता है। जिससे फसल, मानव व अन्य जीव-जन्तुओं के स्वास्थ्य को गंभीर चुनौती पहुंचती है। इसके उत्सर्जन का लगभग 60 प्रतिशत प्राकृतिक तो 40 प्रतिशत मानवीय गतिविधियों से होता है।
वैज्ञानिक अध्ययनों से इतना तो साफ हो गया है कि सन् 2020 के पहले के चार दशकों में ही इस गैस का उत्सर्जन 40 फीसदी बढ़ चुका था और दुनिया बेखबर थी! अब स्थिति यह हो गई कि दो साल पहले यानी 2022 तक वातावरण में नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा उस स्थिति पर पहुंच गई,जो कथित औद्योगिक क्रांति के पहले के स्तर से 25 प्रतिशत ज्यादा है। अत्यधिक चिंता यह कि दुनिया में ऐसी तकनीक भी नहीं जिससे वातावरण से इसे हटाया या समाप्त किया जा सके। साल 1980 से 2020 के बीच नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में 67 प्रतिशत की रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज हुई। इसका कारण नाइट्रोजन आधारित खाद और जानवरों से निकलने वाले अपशिष्ट रहे। इसका खुलासा 58 अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट ‘ग्लोबल नाइट्रस ऑक्साइड बजटÓ में भी है।
20 फीसदी की गिरावट करनी होगी
अब जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान की चर्चाओं में नाइट्रोजन प्रदूषक भी अहम है। वायुमण्डल में इसकी मात्रा कहां, क्यों और कैसे बढ़ रही है यह विश्वव्यापी चिंता है। लेकिन जब चर्चा होगी तभी समाधान निकलेगा । एक वैश्विक रिपोर्ट बताती है कि साल 2011 से 2020 के दस साल में मानवीय गतिविधियों से निकली नाइट्रस ऑक्साइड कुल उत्सर्जन का तीन चौथाई थी। वहीं इसके बाद जीवाश्म ईंधन, कूड़ा, गंदा पानी और बायोमास जलाने जैसे स्रोत भी अथाह वृद्धि के कारण हैं। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का अंतर-सरकारी पैनल यानी आईपीसीसी का अनुमान है कि कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 6.4 फीसदी नाइट्रस ऑक्साइड है जो आने वाले सालों में और बढ़ेगा। यदि इस शताब्दी के अंत तक पृथ्वी के तापमान को औसतन 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढऩे से रोकना है तो 2050 तक इस गैस के उत्सर्जन में 20 फीसदी की गिरावट करनी ही होगी।
विडंबना देखिए नाइट्रस ऑक्साइड को सामान्यत: हंसी की गैस के रूप में जानते हैं। यह उत्साह की भावना पैदा करने वाली गैस कहलाती है। किसने सोचा था कि यह इतनी घातक भी होगी? बहरहाल, देर आयद दुरुस्त आयद की तर्ज पर तुरंत ही सक्रिय होना होगा।
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