जीवन-दायिनी है, जहरमुक्त खेती
लेखक: पवन नागर
10 सितम्बर 2024, भोपाल: जीवन-दायिनी है, जहरमुक्त खेती – मौजूदा कृषि कितनी जहरीली है और उसकी पैदावार के कितने खतरनाक प्रभाव हो रहे हैं, इसे जानने के लिए किसी रॉकेट साइंस की जरूरत नहीं है। सवाल है, क्या हम अपने आसपास से लगाकर वैश्विक स्तर के अनुभवों से सीखकर खेती की पद्धतियों में कोई बदलाव करना चाहेंगे? क्या होगा, यदि हम नहीं सुधरे तो ?
आजकल आए दिन अचानक किसी-न-किसी के मरने की सूचनाओं में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है और इन मरने वालों में बच्चों व युवाओं की संख्या अधिक होना काफी चिंताजनक है। खासकर हार्टअटैक और कैंसर से मौतों में अधिक बढ़ौतरी हुई है। एक अध्ययन के अनुसार देशभर में समग्र स्वास्थ्य में गिरावट की बहुत ही चिंताजनक तस्वीर सामने आई है. जो देश में कैसर और अन्य गैर-संचारी रोगों के बढ़ते मामलों की ओर इशारा करती है। अध्ययन में बताया गया है कि हर तीन में से एक भारतीय प्री- डायबिटिक है. हर तीन में से दो प्री-हापरटेंसिव है और हर दस में से एक अवसाद से लड़ रहा है।
इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि कैंसर, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग एवं मानसिक स्वास्थ्य विकार जैसी विकट बीमारियों अब इतनी प्रचलित है कि वे ‘गंभीर स्तर तक पहुँच गई है। अनुमान है कि कैंसर के वार्षिक मामलों की संख्या 2025 तक 15,70000 हो जाएगी। आए दिन व्यक्ति किसी-न-किसी बीमारी से ग्रस्त हो रहा है और अब विभिन्न प्रकार की बीमारियों के साथ जीना उसकी मजबूरी हो गई है। हमारी आँखों के सामने कम उम्र के युवा व बच्चे असमय मृत्यु के शिकंजे में जकड़ते जा रहे है। आखिर क्यों हो रहा है, ऐसा?
छह माह पूर्व 40 एकड़ के एक किसान की माता जी की, जो कि बिल्कुल स्वस्थ थी. अचानक हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। यह किसान साल में तीन फसल लेता है- गेहूँ, धान और मूँग। फसलों के अधिकाधिक उत्पादन के लिए अधिकाधिक रासायनिक खादों और कीटनाशकों के प्रयोग से वह बिल्कुल नहीं हिचकता। इसी तरह 10 एकड़ के एक किसान के युवा बेटे की, जिसकी इसी साल शादी होना थी, मृत्यु भी अवानक हृदयाघात से हो गई। ध्यान देने वाली बात यह है कि इनके पिताजी सरकारी नौकरी में हैं। यह किसन भी साल में दो फसले लेता है- गेहूँ और चान। पहले किसान से, जिनके पास 40 एकड़ जमीन है, जब हमने पूछा कि आप अपने परिवार के लिए अनाज, सुचरे दाल, चावल, सब्जी इत्यादि भोजन की व्यवस्था कैसे से पद्धतियों करते हैं, तो उनका जवाब था कि हम तो सब बजार से लाते हैं। दूसरा प्रश्न था कि आप जो तीन फसलें लेते हैं गेहूँ चान, और मूंग इनमें से कौन-कौन सी फसलें अपने खाने के लिए उपयोग करते हैं? इनका जवाब सुनकर कोई भी आश्चर्यचकित हो जाए। जवाब था कि हम हमारे खेत के गेहूँ, चावल, और मूंग खाते ही नहीं हैं। सोचिए, एक सम्पत्र किसान अपने खेत की फसल का उपयोग अपने परिवार के लिए करता ही नहीं है, तो आप इस खेती को क्या नाम देंगे? आज किसान के पास सभी आधुनिक साधन उपलब्ध हैं, यदि कुछ नहीं है तो वह है शुद्ध और रसायन-मुक्त सब्जियों, गेहूँ, दाल, फल इत्यादि, जो उसके ही खेत में उत्पादित हो सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन के बढ़ते संकट के समाधान के तौर पर भी जहरमुक्त खेती उपयुक्त है। यदि किसान जहरमुक्त खेती करेंगे तो न सिर्फ वे अपने लिए शुद्ध भोजन की व्यवस्था करेंगे, बल्कि अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और अन्य नागरिकों के लिए भी शुद्ध और पौष्टिक भोजन की व्यवस्था करने में सहभागी बनेंगे। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम का सटीक अनुमान लगाना मौसम विशेषज्ञों के लिए कठिन हो गया है।
देशभर में रासायनिक खेती करने वालों की लगभग यही स्थिति है। कहने को तो हर साल उत्पादन के रिकॉर्ड बन रहे हैं. परंतु किसानों के पास ही पौष्टिक और शुद्ध भोजन का टोटा पड़ा हुआ है। अब स्थिति यह है कि लगभग हर किसान के घर बौनारी पहुँच चुकी है और इन बीमारियों पर जो खर्च हो रहा है वह रासायनिक खेती के उत्पादन से ज्यादा भारी पड़ने लगा है। यह तो सिर्फ किसान परिवारों की व्यथा है, उन नागरिकों का क्या हाल होगा जो पहले से ही बाजार के हवाले हैं?
जलवायु परिवर्तन के बढ़ते संकट के समाधान के तौर पर भी जहरमुक्त खेती उपयुक्त है। यदि किसान जहरमुक्त खेती करेंगे तो न सिर्फ वे अपने लिए शुद्ध भोजन की व्यवस्था करेंगे, बल्कि अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और अन्य नागरिकों के लिए भी शुद्ध और पौष्टिक भोजन की व्यवस्था करने में सहभागी बनेंगे। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम का सटीक अनुमान लगाना मौसम विशेषज्ञों के लिए कठिन हो गया है। मौसम के इस परिवर्तन के कारण एकल फसल में सबसे बड़ी कठिनाई यही है कि यदि बेमौसम बारिश, कम या अधिक वर्षा की वजह से हमारी एकल फसल प्रभावित होगी तो हमारे भोजन की व्यवस्था कौन करेगा?
किसानों को उनके खेत में नाना-नाना प्रकार की कसले लगाने में क्या दिक्कत आ रही है? क्यों ये किसान अपने लिए विविध फसलें लगाने से कतरा रहे हैं? यदि वाकई में हम सबको बीमारियों, जलवायु परिवर्तन, कयु प्रदूषण, जल-संकट, सूखा और अकाल जैसी विकट समस्याओं से बचना है या इनका इंटकर सामना करना है तो हमारे पास एक ही विकल्प है कि हम प्रकृति के अनुकूल जीवनशैली अपनाएँ और ऐसा कोई कार्य न करें जिससे प्रकृति को इस सृष्टि का संतुलन बनाने के लिए कठोर कदम उठाना पड़े।
प्रकृति के प्रकोप से बचना है तो किसानों को ज़हरमुक्त खेती करना चाहिए, जिससे न केवल उन्हें शुद्ध भोजन मिलेगा, बल्कि वे जल एवं वायु प्रदूषण को रोकने में भी श्री योगदान देंगे। काम कोई ज्यादा कठिन नहीं है, बस हर किसान और हर व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी के तौर पर यह निश्चय करना है कि अपने परिवार के लिए शुद्ध व पौष्टिक बाली की व्यवस्था करें, भले ही इसमें सुविधा थोड़ी कम मिले। यदि आप चाहते हैं कि पहला सुख निरोगी कावा मिले तो आपको ज़हरमुक खेती करना ही पड़ेगी। यही समाधान है, मानव जाति के लिए प्रकृति के प्रकोप से बचने का।
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