राज्य कृषि समाचार (State News)किसानों की सफलता की कहानी (Farmer Success Story)

खेती में नहीं मिल रहा मुनाफा? हमीरपुर के किसान अब शहद से कमा रहे लाखों

21 अप्रैल 2025, नई दिल्ली: खेती में नहीं मिल रहा मुनाफा? हमीरपुर के किसान अब शहद से कमा रहे लाखों – लंबे समय से सूखे और सीमित संसाधनों से जूझते बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में अब मधुमक्खी पालन ने ग्रामीण युवाओं और किसानों के लिए आजीविका का एक नया रास्ता खोल दिया है। जहां पहले आय का एकमात्र जरिया वर्षा-आधारित खेती थी, वहीं अब शहद और मधुमक्खी पराग जैसी चीज़ें ग्रामीणों की आय बढ़ाने में सहायक बन रही हैं।

हमीरपुर की जलवायु चरम ग्रीष्म और ठंडी के बीच झूलती है – गर्मियों में पारा 43 डिग्री तक पहुंचता है तो सर्दियों में यह 20 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। फिर भी, इस जलवायु को मधुमक्खी पालन के लिए मुफ़ीद पाया गया।

Advertisement
Advertisement

ग्रामीण युवाओं को मिला व्यावसायिक विकल्प

कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) हमीरपुर और बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की एक टीम ने स्थानीय सर्वेक्षण के बाद पाया कि इस क्षेत्र की विविध फसलों — जैसे तिल, बाजरा, सरसों, नींबू, आंवला, और पपीता —-में प्राकृतिक परागण के लिए मधुमक्खियाँ बेहद उपयोगी साबित हो सकती हैं। इसके साथ ही शहद उत्पादन और बिक्री से आय में इजाफा संभव है।

इसी आधार पर गांवों में सात किसान हित समूह (FIG) बनाए गए, जिनमें मुख्य रूप से बेरोजगार युवा और स्कूल छोड़ चुके ग्रामीण शामिल थे। उन्हें वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग दी गई, छत्ते और जरूरी उपकरण प्रदान किए गए, और बायो-सिक्योर स्थानों पर कालोनियों की स्थापना की गई।

Advertisement8
Advertisement

उत्पादन और कमाई के आँकड़े

इन इकाइयों से कुल 146 किलोग्राम शहद और 63 किलोग्राम मधुमक्खी पराग प्राप्त किया गया। मधुमक्खी कालोनियों की आबादी भी बढ़कर अधिकतम 180 फ्रेम तक पहुंच गई। इस दौरान एक यूनिट की औसत परिचालन लागत ₹25,000 के आसपास रही, जबकि कुल रिटर्न ₹83,000 से अधिक दर्ज किया गया।

Advertisement8
Advertisement

औसतन 50 कालोनियों पर आधारित प्रत्येक यूनिट की लागत लगभग ₹25,000 रही, जबकि एक यूनिट से प्राप्त संयुक्त रिटर्न ₹83,000 से अधिक रहा। शुद्ध लाभ ₹51,780 से लेकर ₹72,137 तक रहा और लाभ:लागत अनुपात 2.0 से 2.5 के बीच रहा।

कृषि से अलग परंपरा, लेकिन कृषि में ही सहायक

मधुमक्खी पालन ने न केवल किसानों को अतिरिक्त कमाई दी, बल्कि आसपास की फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में भी योगदान दिया। परागण के कारण बागवानी और मसालों की फसलों की गुणवत्ता में सुधार देखा गया।

इस प्रयोग से जुड़े विशेषज्ञों और किसानों का मानना है कि यदि ग्रामीण स्तर पर मधुमक्खी पालन की सही तकनीक और बाजार से जुड़ाव सुनिश्चित किया जाए, तो यह बुंदेलखंड जैसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में टिकाऊ आजीविका मॉडल बन सकता है।

फिलहाल इस प्रयोग का विस्तार संभावित है, लेकिन यह स्थानीय जरूरतों, प्रशिक्षण, और बाजार पहुंच पर निर्भर करेगा। मधुमक्खी पालन, परंपरागत खेती से बाहर एक व्यावसायिक सोच को जन्म देने वाला कदम साबित हो सकता है।

(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़,  टेलीग्रामव्हाट्सएप्प)

(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)

कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Advertisement8
Advertisement

www.krishakjagat.org/kj_epaper/

कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

www.en.krishakjagat.org

Advertisements
Advertisement5
Advertisement