प्रकृति प्रेरणा
लेखक- तरुण पिथौड़े, मध्य प्रदेश के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी
02 जुलाई 2024, भोपाल: प्रकृति प्रेरणा – आर श्रीनिवास ने IIT से केमिकल इंजीनियरिंग में BTech किया है और उन्हें ऑयल और गैस के क्षेत्र में 35 वर्षों का लंबा अनुभव है। वे दुनिया की सबसे बड़ी नई रिफाइनरी के बिजऩेस स्ट्रेटेजी के निदेशक रहे हैं। वे Mckinsey में सीनियर एडवाइजऱ के पद पर भी रहे हैं। एक दिन उन्हें लगा कि जीवन में कुछ बदलने की आवश्यकता है और उन्होंने अपना जीवन प्रकृति के संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया। इसका एक घटक गाँव में ही रहकर ग्रामीण जन को कृषि की स्थाई तकनीक से वाकिफ़़ कराना है। वे समग्र रूप से पर्यावरण संरक्षण का कार्य कर रहे हैं। जिसका जीवंत उदाहरण उनके द्वारा निर्मित रेजिडेंशियल ट्रेनिंग सेंटर है। इस कार्य को अंजाम देने के लिए उन्होंने प्रकृति प्रेरणा नाम से एक संस्था बनाई है। यह संस्था ही ग्रामीण लोगों को क्लासरूम एवं हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग देती है।
हाल ही में मैंने जब उनके बारे में सुना तो उनसे मिलने गया। उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों और उस ट्रेनिंग सेंटर को देख मैं अचंभित रह गया। मैंने सोचा क्या ऐसा भी हो सकता है? उनके द्वारा निर्मित ट्रेनिंग सेंटर में भवन पूरी तरह प्रकृति अनुकूल हैं। वहाँ वे स्वयं खेती करते हैं जिसमें किसी खाद या पेस्टीसाइड का उपयोग नहीं होता। भवन का पूरा मल-मूत्र बिना किसी बिजली की आवश्यकता के प्राकृतिक रूप से रीसाइकल किया जाता है जिसका उपयोग पेड़ों में खाद के रूप में होता है। वहाँ इतने कीट-पतंगे हैं कि पेस्टीसाइड की आवश्यकता ही नहीं पड़ती और वे फसल को कोई नुक़सान भी नहीं पहुँचाते।
वहाँ जितने भी भवन हैं उनमें पूरे दिन प्राकृतिक प्रकाश का उपयोग होता है और भवन में दिशाओं एवं खिड़कियों का ध्यान ऐसे रखा गया है कि दिन भर हवा का प्रवाह बना रहता है और भवन ठंडे बने रहते हैं। बहुत आवश्यक होने से कूलर चलाया जाता है, जिसके चलते ही ठंड सी लगने लगती है। भवन के निर्माण में मिट्टी और बाँस का प्रमुखता से उपयोग किया गया है एवं शेष सामग्री भी पर्यावरण अनुकूल है जो स्थानीय समकालीन वास्तुकला का अनूठा उदाहरण प्रदर्शित करता है। वहाँ कुछ भी ऐसा नहीं जो प्राकृतिक ना हो। प्लास्टिक का कहीं उपयोग नहीं।
फिर मैंने देखा कि गर्मी की भीषण धूप में चारों तरफ़ हैरयाली है, पक्षी चह-चहा रहे हैं, जानवर यूँ ही घूम रहे हैं। सभी के लिए जल उपलब्ध है। कई बार वहाँ से बाघ निकलता है लेकिन किसी को कोई नुक़सान नहीं पहुँचाता। वे बंदरों और पक्षियों के लिए खेती करते हैं। जैसे मक्का तो वे मात्र बंदरों और पक्षियों के लिए लगाते हैं। उसके बाद भी उनके लिए बहुत कुछ बच जाता है और किसी भी जानवर को ना तो भगाना पड़ता है ना डराना पड़ता है।
श्रीनिवास बच्चों को पढ़ाकर भविष्य के लिए तैयार कर रहे हैं। वहाँ बच्चों के लिए खेलने का स्थान भी है, ओपन जिम है इत्यादि। वे किसानों को खेती का उत्पादन बढ़ाने में भी सहायता कर रहे हैं। उन्होंने वहाँ रहते हुए एक बड़े क्षेत्र को लँटाना-कमारा के प्रकोप से मुक्त करा दिया है। मुक्त हुई धरती की प्रसन्नता हरियाली के रूप में स्पष्ट दिखाई देती है। पुरानी बंजर भूमि बायोडायवर्सिटी पार्क में बदल गई है।
वह सब देखकर मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। मेरे सारे भ्रम टूट रहे थे। लेकिन चूँकि मन सीखने को तैयार था, मैं देखते गया, उन्हें सुनता गया और उनका रहस्य जानता गया। बस एक कसक रह गई कि उनके द्वारा निर्मित सुंदर से ट्री-हाउस में रात नहीं गुज़ार पाया। यह स्थान दीर्घकालीन जीवनयापन को समझने-जानने का एक पड़ाव है। आपको भी इस स्थान को एक बार अवश्य देखना चाहिए।
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