प्राकृतिक खेती स्थायी और पर्यावरण अनुकूल
28 जून 2025, जबलपुर: प्राकृतिक खेती स्थायी और पर्यावरण अनुकूल – प्राकृतिक खेती एक ऐसी कृषि पद्धति है, जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और अन्य कृत्रिम पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है। इसमें प्राकृतिक संसाधनों और जैविक तरीकों का उपयोग करके फसलों का उत्पादन किया जाता है। आज देश के किसान प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ा रहे हैं और इस दिशा में कई सकारात्मक कार्य कर बेहतर परिणाम सामने ला रहे हैं। प्राकृतिक खेती से मिट्टी की उर्वरता बढ़ जाती है, जिससे मिट्टी की सेहत में सुधार होता है, उत्पादित खाद्य पदार्थों में रासायनिक अवशेष नहीं होते हैं, जिससे मानव स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। जल और वायु प्रदूषण कम होता है, जैव विविधता में वृद्धि होती है और खेती में कम लागत आती है। साथ ही प्राकृतिक खेती ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करती है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाती है। प्राकृतिक खेती में जल संचयन और जल प्रबंधन के तरीकों का उपयोग किया जाता है, जिससे जल संसाधनों का संरक्षण होता है। प्राकृतिक खेती एक स्थायी और पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धति है जो न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, बल्कि पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए भी फायदेमंद है।
प्राकृतिक खेती और जैविक खेती दोनों ही कृषि पद्धतियाँ हैं जो रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम या समाप्त करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं। हालांकि, दोनों के बीच कुछ अंतर हैं। प्राकृतिक खेती में जहां खेती की जाती है वहां के स्थानीय जैविक पदार्थों, जैसे कि गोबर, हरी खाद, और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है। प्राकृतिक खेती में मिट्टी की सेहत को बनाए रखने पर विशेष ध्यान दिया जाता है। साथ ही इसमें किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और अन्य कृत्रिम पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है। जबकि जैविक खेती में उत्पादों को जैविक प्रमाणीकरण प्राप्त करने के लिए कुछ मानकों का पालन करना होता है। जैविक खेती में कुछ प्राकृतिक रासायनिक पदार्थों का उपयोग किया जा सकता है जो कि स्थानीय नहीं हो सकते है। जैविक खेती में उत्पादन और प्रमाणीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। दोनों कृषि पद्धतियाँ स्थायी और पर्यावरण अनुकूल हैं, लेकिन प्राकृतिक खेती अधिक लाभदायक और पूर्णतः प्राकृतिक होने पर ध्यान केंद्रित करती है।
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