शीतलहर- पाले से फसल सुरक्षा के उपाय
04 जनवरी 2025, राजगढ़: शीतलहर- पाले से फसल सुरक्षा के उपाय – शीतकाल के दिसंबर के अंत में तथा जनवरी एवं फरवरी माह में बहुत अधिक ठंड पड़ती है। उन्ही दिनों में कड़ाके की ठंड के कारण पौधों के अंदर का पानी जम जाता है। इस कारण फसल झुलसी हुई प्रतीत होती है, उसको फसल में पाला लगना कहते हैं। शीत लहर और ठंड, कोशिकाओं को भौतिक नुकसान पहुंचाती हैं जिससे कीट का आक्रमण तथा रोग होने से फसल बर्बाद हो सकती है। फसल के अंकुरण तथा प्रजनन के दौरान शीतलहर से काफी भौतिक विघटन होता है इसके बढ़ने से फसलों के अंकुरण, वृद्धि, पुष्पन तथा पैदावार पर असर पड़ता है ।
पाला पड़ने की स्थितियाँ – जिस दिन शीतकाल में अन्य दिनों की अपेक्षा बहुत अधिक कड़ाके की ठंड महसूस की जा रही हो। आसमान बिल्कुल साफ हो, बादल नही हो। शाम के समय हवा अचानक रुक जाये एवं हवा में नमी की अत्यधिक कमी हो। मौसम का तापमान 5 डिग्री सेंटीग्रेड से लगातार कम होता जा रहा हो। हिमांक पर पहुँचने पर पाला पड़ता है।
पाले से प्रभावित फसलें – सामान्यतः रबी मौसम की सभी फसलें पाले से प्रभावित होती है। जैसे आलू, धनिया एवं राजगिरा फसल पाले के प्रति अधिक संवेदनशील है।
पाले से फसल का बचाव – कृषक, उपरोक्त परिस्थितियां निर्मित होने पर, अपनी फसल निम्न उपाय अपनाकर पाले से बचा सकते है । जैसे- बोर्डिऑक्स मिश्रण या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव कर शीत- घात के कारण, रोग संक्रमण से बचाव करें। शीत लहर के बाद फास्फोरस (P) और पोटेशियम (K) उर्वरकों का उपयोग जड़ वृद्धि को सक्रिय करेगा और फसल को ठंड की घात से तेजी से उबरने में मदद करेगा। शीत लहर के दौरान प्रकाश और लगातार सतह सिंचाई प्रदान करें। पानी की सिंचाई से उत्पन्न विशिष्ट गर्मी पौधों को शीत – घात से बचाता है। फसलों में हल्की सिंचाई करें, खेत में ज्यादा पानी ना भरा रहें। स्प्रिंकलर सिंचाई से पौधों में शीत-घात को कम करने में भी मदद मिलेगी क्योंकि पानी की बूंदों का संघनन,आसपास में गर्मी छोड़ता है। पौधों के मुख्य तने के पास मिट्टी को काली या चमकीली प्लास्टिक शीट के साथ ढंकें । यह विकिरण अवशोषित कर मिट्टी को ठंडी में भी गर्म बनाए रखता है। प्लास्टिक उपलब्ध न होने की दशा में घास-फूस, सरकंडे की घास या जैविक वस्तुओं से मिट्टी को ढँककर फसलों को शीत- घात से बचाया जा सकता है। जिन किसानों के पास सिंचाई की व्यवस्था नहीं है । वहाँ अपने खेत के चारों ओर मेड़ पर घास, गीला चारा, लकड़ी आदि जला कर धुआँ करे । पाले के समय रस्सी का उपयोग करना काफी प्रभावी रहता है इसके लिए 2 व्यक्ति सुबह के समय (भोर) में एक रस्सी को उसके दोनों सिरों से पकड़कर खेत के एक कोने से दूसरे कोने तक फसल को हिलाते है जिससे फसल पर पड़ी हुई ओस नीचे गिर जाती है और फसल सुरक्षित हो जाती है । जिस दिन पाले की संभावना हो उस दिन किसान तनु गंधक का अम्ल 1 एम.एल. प्रति लीटर पानी के मान से 1000 लीटर घोल का छिड़काव करने से फसल को एक से दो सप्ताह तक पाले से बचा सकते हैं। फसल पर सायकोसिल 400 मि.ली. प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हैं। फसल पर डाई मिथाइल सल्फो व आक्साइड का 0.2 प्रतिशत छिड़काव कर सकते हैं। थायोयूरिया का 1 प्रतिशत छिड़काव लाभप्रद होता है। थायोयूरिया 500 ग्राम 500 लीटर पानी में घोल बनाकर फूल आने के समय एवं दूसरा छिड़काव फलियां बनने के समय प्रयोग करें अथवा फसल पर 2 प्रतिशत यूरिया का छिड़काव किया जाए। किसान , रसायनों के इस्तेमाल से पूर्व अपने क्षेत्र के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी से जानकारी प्राप्त कर ही इनका छिड़काव करें ।
(नवीनतम कृषि समाचार और अपडेट के लिए आप अपने मनपसंद प्लेटफॉर्म पे कृषक जगत से जुड़े – गूगल न्यूज़, टेलीग्राम, व्हाट्सएप्प)
(कृषक जगत अखबार की सदस्यता लेने के लिए यहां क्लिक करें – घर बैठे विस्तृत कृषि पद्धतियों और नई तकनीक के बारे में पढ़ें)
कृषक जगत ई-पेपर पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:
www.krishakjagat.org/kj_epaper/
कृषक जगत की अंग्रेजी वेबसाइट पर जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें: