राज्य कृषि समाचार (State News)

जूट के रेशों से बुनेगा किसानों का भविष्य

07 नवंबर 2025, रायपुर: जूट के रेशों से बुनेगा किसानों का भविष्य – छत्तीसगढ़ के किसान अब जूट के रेशों से अपनी तरक्की के धागे बुनने जा रहे हैं। राज्य में जूट की खेती की संभावनाओं को तलाशने और इसके रकबे के विस्तार के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर में संचालित अखिल भारतीय जूट अनुसंधान परियोजना के तहत विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।

यह परियोजना आईआईटी भिलाई के तकनीकी सहयोग और आई.बी.आई.टी.एफ. के वित्त पोषण से चलाई जा रही है। विश्वविद्यालय ने कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) धमतरी के सहयोग से जिले में 4 एकड़ क्षेत्र में जूट की फसल लगाई थी, जो अब कटाई के लिए पूरी तरह तैयार है। इससे किसानों को प्रति एकड़ लगभग ₹50,000 की आय होने की उम्मीद है।

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जूट की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए जून और सितंबर में केवीके धमतरी, रायपुर और दंतेवाड़ा के माध्यम से किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए गए थे। प्रशिक्षण से प्रेरित होकर कई किसान अब इसे गर्मी की फसल के रूप में उगाने की तैयारी कर रहे हैं।

वैज्ञानिकों की पहल से मिला उत्साह

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक (विस्तार सेवाएं) डॉ. एस.एस. टुटेजा के मार्गदर्शन में केवीके धमतरी के प्रमुख डॉ. ईश्वर सिंह, वैज्ञानिक डॉ. दीपिका चंद्रवंशी और डॉ. प्रेम लाल साहू की टीम ने किसानों को जूट की खेती के लिए प्रेरित किया। हाल ही में विश्वविद्यालय की वैज्ञानिक डॉ. प्रज्ञा पांडे और डॉ. प्रेम लाल साहू ने किसानों के खेतों का निरीक्षण किया और तैयार फसल का मूल्यांकन किया।

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किसानों का कहना है कि जूट की फसल लगभग 100 दिनों में तैयार हो जाती है। कटाई फूल आने से पहले की जाती है और उसके बाद पौधों को 15-20 दिनों तक पानी में डुबोकर रखा जाता है, जिससे तनों से रेशे अलग हो जाते हैं। जूट के हरे डंठलों से 6 से 8 प्रतिशत रेशे प्राप्त होते हैं।

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जूट की गुणवत्ता और कीमतें

वित्त वर्ष 2025-26 के लिए कच्चे जूट का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ₹5,650 प्रति क्विंटल तय किया गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में ₹315 अधिक है।
जूट रेशों को गुणवत्ता के आधार पर टोसा जूट ग्रेड TD1 से TD5 में वर्गीकृत किया जाता है —
TD1 (सर्वोत्तम), TD2 (अच्छा), TD3 (औसत), TD4 (साधारण) और TD5 (निम्न)।

औसतन एक एकड़ में जूट की खेती से 18–20 टन हरे पौधे और 0.8–1.0 टन कच्चा रेशा प्राप्त होता है, जिससे किसानों को लगभग ₹50,000 तक की आमदनी हो सकती है।

किसानों के लिए नया अवसर

धमतरी सहित राज्य के अन्य जिलों के किसान अब जूट की खेती को एक लाभकारी और टिकाऊ विकल्प के रूप में देख रहे हैं। यह न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को सशक्त बनाएगा बल्कि प्रदेश में हरित औद्योगिक कच्चे माल की उपलब्धता भी बढ़ाएगा।

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