संयुक्त कृषक एवं कार्यकर्ता प्रशिक्षण संपन्न
17 जून 2021, इंदौर । संयुक्त कृषक एवं कार्यकर्ता प्रशिक्षण संपन्न – भा.कृ.अनु.प.-भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान, इन्दौर एवं आई.टी.सी. लिमिटेड कंपनी द्वारा संयुक्त रूप से “सोयाबीन की उन्नत उत्पादन तकनीकी एवं प्रमुख सस्य क्रियाएं ” विषय पर ऑनलाइन ज़ूम प्लेटफार्म पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसमें आई.टी.सी. ए-चौपाल कार्यक्रम से जुड़े मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान एवं गुजरात के लगभग 550 कृषकों तथा फील्ड स्टाफ ने भाग लिया ।
प्रारंभ में संस्थान इन्दौर की कार्यवाह निदेशक, डॉ. नीता खांडेकर ने सोयाबीन फसल की उत्पादकता बढ़ाने के प्रयासों का जिक्र कर कहा कि कृषकों, विस्तार कर्मियों, छात्रों अनुसंधानकर्ताओ के साथ-साथ सोयाबीन फसल से जुड़े सभी भागीदारों के लिए विगत माह से वेबिनारों के साथ-साथ ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जा रहा है। आपने कहा कि वर्तमान में सोयाबीन कृषकों द्वारा कम समयावधि की किस्मों को दी जा रही प्राथमिकता के कारण देश की औसत उत्पादकता (लगभग 11-12 क्विंटल/हे) को अन्य देशों की औसत उत्पादकता (2.5 टन/हे) के साथ तुलना करना सही नहीं होगा, क्योंकि वहाँ की फसल की औसत अवधि लगभग 150 दिन की होती है. किसानों की पसंद-नापसंद तथा स्थानीय जलवायु स्थिति के अनुरूप सोयाबीन की अधिक उत्पादन क्षमता तथा कीट/रोग प्रतिरोधी किस्मों के विकास को देखते हुए आश्वस्त किया कि आनेवाले समय में हम सोयाबीन की औसत उत्पादकता को 15 क्विंटल/हे तक बढ़ाने में सफल होंगे।
आई.टी.सी. के कृषि सेवा विभाग के अध्यक्ष श्री सी. शशिधर ने आई.टी.सी. ई चौपाल के माध्यम से सीड बैंक बनाने के लिए कंपनी की विस्तार सेवा से जुड़े लाभार्थी कृषकों को सोयाबीन की नवीनतम जारी किस्मों , उत्पादन के विभिन्न तरीकों एवं पद्धतियों से सोयाबीन की बोवनी से किसानों का ज्ञानार्जन करने के लिए भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान के वैज्ञानिको की प्रशंसा की। आई.टी.सी. फसल सलाह विभाग की प्रभारी डॉ. अनीता शर्मा एवं श्री अनिल कोल्ला ने भी अपने विचार प्रस्तुत करते हुए सोयाबीन कृषकों केउत्थान एवं खेती की उत्पादकता वृद्धि के लिए संयुक्त प्रयासों को अधिक सुदृढ़ करने पर ज़ोर दिया।
इस अवसर पर कृषकोपयोगी 5 तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया जिसमे भारतीय सोयाबीनअनुसन्धान संस्थान के वैज्ञानिकों ने मार्गदर्शन एवं उपयुक्त जानकारी देकर चर्चा की. संस्थान के डॉमृणाल कुचलान ने जलवायु सहिष्णु सोयाबीन की विभिन्न किस्में जैसे जे.एस. 20-69, जे.एस. 20-98,जे.एस. 20-34 तथा उनकी गुणवत्ता जांच के साथ-साथ कृषक अपने खेत पर बीज उत्पादन कैसे करें इस बाबत जानकारी दी. जबकि संस्थान के डॉ आर.के. वर्मा ने सोयाबीन की फसल में खरपतवार प्रबंधन के लिए अनुशंसित विभिन्न तरीकों एवं रासायनिक खरपतवारनाशकों से सम्बंधित जानकारी दी । संस्थान के फसल विभाग प्रमुख, डॉ. एस.डी.बिल्लोरे द्वारा “सोयाबीन फसल के उत्पादन हेतुअनुशंसित सस्य क्रियाएं एवं नवीनतम पद्धतियाँ’ विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सूखे की अवस्था में जिन किसानों के पास सिंचाई की व्यवस्था हैं, जमीन में दरारें पड़ने से पहले ही सिंचाई कर देनी चाहिए और जिनके पास पानी की उपलब्धता नहीं हैं ,उन्हें पोटैशियम नाइट्रेट का छिडकाव करना चाहिए ।
सोयाबीन में कीट नियंत्रण हेतु सोयाबीन के प्रमुख हानिकारक कीट एवं उनकी, पहचान’ विषय पर डॉ. लोकेश मीणा ने कहा कि कीटों को यदि प्रारंभिक अवस्था में ही पहचान करउनकी संख्या बढ़ने से पूर्व समुचित उपाय कर नियंत्रित करने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए। इस कड़ी में संस्थान के सेवानिवृत्त कीट वैज्ञानिक डॉ. ए. एन. शर्मा ने “जलवायु सहिष्णु कीट प्रबंधन” पर व्याख्यान दिया , जबकि डॉ. लक्ष्मण सिंह राजपूत ने सोयाबीन का बीज उपचार, लक्षण और प्रमुख बीमारियों के प्रबंधन हेतु फफूंदनाशक, कीटनाशक व जीवाणु कल्चर से बीजोपचार हेतु अनुशंसित तकनिकी बाबत जानकारी दी। तकनीकी सत्र के बाद कृषक-वैज्ञानिक परिचर्चा सत्र का भी आयोजन हुआ जिसमें प्रतिभागी कृषकों ने अपनी शंकाओं का निराकरण कर उपयुक्त जानकारी प्राप्त की. इस सम्पूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन एवं संयोजन डॉ. बी.यू. दुपारे, प्रधान वैज्ञानिक (कृषि विस्तार) द्वारा किया गया। अंत में डॉ. सविता कोल्हे द्वारा सभी संबंधितों को धन्यवाद ज्ञापित किया गया।