क्या सरकार जीएम फसलों को गुपचुप दे रही है अनुमति? किसान संघ चिंतित
18 नवंबर 2024, नई दिल्ली: क्या सरकार जीएम फसलों को गुपचुप दे रही है अनुमति? किसान संघ चिंतित – भारतीय किसान संघ ने जीएम (जेनेटिकली मॉडिफाइड) फसलों पर राष्ट्रीय नीति बनाने में किसानों की राय शामिल करने की मांग को लेकर देशव्यापी अभियान शुरू किया है। संघ का कहना है कि जीएम फसलों से जैव विविधता, पर्यावरण और किसान हितों को गंभीर खतरा है। संघ ने आरोप लगाया कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद सरकार या संबंधित समिति ने अब तक किसानों और किसान संगठनों से सलाह नहीं ली है।
सर्वोच्च न्यायालय का आदेश और राष्ट्रीय जीएम नीति की जरूरत
23 जुलाई 2024 को सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह जीएम फसलों पर राष्ट्रीय नीति बनाए। इस नीति में सभी हितधारकों जैसे किसान, कृषि वैज्ञानिक, राज्य सरकारें, उपभोक्ता संगठन और पर्यावरणविदों की राय शामिल करने की बात कही गई थी। नीति में जीएम फसलों के पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव का आकलन, आयात-निर्यात के नियम, लेबलिंग और सार्वजनिक जागरूकता जैसे विषयों पर चर्चा के निर्देश दिए गए थे।
भारतीय किसान संघ का कहना है कि यह नीति चार माह में तैयार होनी चाहिए थी, लेकिन तीन माह बीतने के बावजूद सरकार द्वारा गठित समिति ने किसी भी हितधारक से कोई राय नहीं ली है। संघ ने आशंका जताई कि सरकार बिना समुचित चर्चा और अध्ययन के पीछे के दरवाजे से जीएम फसलों को अनुमति देने की तैयारी कर रही है।
किसान संघ का विरोध: जीएम फसलों से नुकसान के उदाहरण
भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र ने कहा कि जीएम फसलें पर्यावरण, जैव विविधता और किसानों के लिए हानिकारक हैं। बीटी कपास का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि इसकी विफलता से किसानों को भारी नुकसान हुआ और आत्महत्याओं के मामले बढ़े। उन्होंने कहा, “भारत को रोजगार सृजन क्षमता वाली पारंपरिक खेती चाहिए, न कि जीएम फसलों जैसी तकनीक।”
संघ का दावा है कि जीएम फसलें ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाती हैं और जैव विविधता को नष्ट करती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कई देशों में इन पर प्रतिबंध है, जिससे साफ है कि जीएम तकनीक को लेकर वैश्विक स्तर पर भी गंभीर चिंताएं हैं।
ज्ञापन अभियान और सांसदों से चर्चा की अपील
भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख राघवेन्द्र सिंह पटेल ने बताया कि संगठन की 600 से अधिक जिला इकाइयां देशभर में लोकसभा और राज्यसभा सांसदों को ज्ञापन सौंप रही हैं। इसमें उनसे अनुरोध किया गया है कि वे आगामी शीतकालीन सत्र में जीएम फसलों और राष्ट्रीय जीएम नीति को लेकर चर्चा करें।
ज्ञापन में मांग की गई है कि जीएम तकनीक के फायदे-नुकसान पर व्यापक चर्चा हो और नीति निर्माण में किसानों और अन्य हितधारकों की राय को प्राथमिकता दी जाए।
भारतीय किसान संघ ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह जीएम फसलों को लेकर जल्दबाजी में कोई निर्णय न ले। उन्होंने कहा कि किसानों की राय को नजरअंदाज करना नीति निर्माण प्रक्रिया को अधूरा और पक्षपाती बना देगा।
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