सोयाबीन में रोग प्रतिरोधिता में वृद्धि हेतु इंदौर में अंतर्राष्ट्रीय मंथन सत्र आयोजित
16 नवंबर 2024, इंदौर: सोयाबीन में रोग प्रतिरोधिता में वृद्धि हेतु इंदौर में अंतर्राष्ट्रीय मंथन सत्र आयोजित – आईसीएआर-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान , इंदौर ने रोगों से सोयाबीन की उपज में कमी की समस्याओं का प्रबंधन करने के लिए सोसाइटी फॉर सोयाबीन रिसर्च एंड डेवलपमेंट के साथ संयुक्त रूप से ‘सोयाबीन में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की रणनीतियाँ ‘ पर अंतर्राष्ट्रीय विचार-मंथन सत्र आयोजित किया गया । मुख्य अतिथि शिक्षा एवं फसल विभाग के भूतपूर्व उपमहानिदेशक डॉ सत्य प्रकाश तिवारी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता भाकृअप के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ तिलक राज शर्मा ने की। इस आयोजन में सहायक महानिदेशक (तिलहन एवं दलहन) एवं मंथन सत्र के सह अध्यक्ष डॉ संजीव गुप्ता,संस्थान के निदेशक एवं विकास सोसायटी के अध्यक्ष डॉ कुंवर हरेन्द्र सिंह ,सचिव डॉ महावीर प्रसाद शर्मा एवं डॉ मिलिंद रत्नापरखे आदि उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों ने भाग लेकर जानकारी साझा की।
डॉ. के.एच. सिंह ने ऑनलाइन माध्यम से सत्र में भाग लेने वालों का स्वागत करते हुए विभिन्न रोगों के संक्रमण द्वारा सोयाबीन की उपज में ठहराव और उससे (25-30%) तक हानि होने पर अपनी चिंता व्यक्त की। डॉ सिंह ने अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत आयोजित बहु-स्थानीय परीक्षणों में प्राप्त 2.5 टन/हेक्टेयर तक की उपज के स्तर के बारे में जानकारी दी। उनके अनुसार, राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाइट, एन्थ्रेक्नोज, चारकोल रॉट जैसे फंगल रोगों के संक्रमण के अलावा पीला मोजेक रोग सोयाबीन की परिपक्वता अवधि के दौरान बढ़ जाता है, जिससे वास्तविक उपज में कमी आती है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह विचार-मंथन सत्र प्रबंधन विकल्पों के लिए अंतर्दृष्टि विकसित करने और इन मुद्दों को सुलझाने हेतु किये जा रहे अनुसंधान कार्यक्रम को गति देने में सहायता करेगा।
अमेरिका की इंडियाना स्टेट यूनिवर्सिटी, के जीव विज्ञान विभाग के प्रतिष्ठित प्रोफेसर रोजर इन्स ने “डिकॉय इंजीनियरिंग” नामक तंत्र का उपयोग करके भारतीय सोयाबीन की प्रमुख बीमारियों के लिए प्रतिरोध प्रदान करने के बारे में बात की। उनके अनुसार, इस तरह की नई ट्रांसजेनिक तकनीक सोयाबीन में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद कर सकती है। डॉ. ऐनी ई. डोरेंस, प्रोफेसर एमेरिटस, प्लांट पैथोलॉजी विभाग, ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी, यूएसए ने बेहतर सोयाबीन के निर्माण पर व्याख्यान दिया. उनके अनुसार सोयाबीन की बीमारियों जैसे फाइटोफ्थोरा सोजे, सोयाबीन रस्ट, स्क्लेरोटिनिया स्टेम रॉट, डायपोर्थ स्टेम कैंकर और सोयाबीन सीडिंग डैम्पिंग ऑफ पर चर्चा की एवं फाइटोफ्थोरा रोग के लिए पैथोटाइप लक्षण वर्णन और प्रतिरोधी प्रजनन कार्यक्रम पर चल रहे शोध कार्यक्रमों पर अधिक जोर देना चाहिए।
प्रोफेसर के. मरेडिया, निदेशक (अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम-कृषि एवं प्राकृतिक संसाधन), मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी, यूएसए ने भारत के साथ कृषि एवं प्राकृतिक संसाधन अनुसंधान में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर चर्चा की तथा मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी में भारतीय सोयाबीन वैज्ञानिकों के भविष्य में अनुसंधान सहयोग और क्षमता विकास निर्माण के लिए इच्छा दिखाई। डॉ. सारा थॉमस-शर्मा, सहायक प्रोफेसर, प्लांट पैथोलॉजी एवं क्रॉप फिजियोलॉजी विभाग, लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी, यूएसए ने सोयाबीन रोगों के एकीकृत प्रबंधन में सुधार के लिए महामारी विज्ञान संबंधी ज्ञान अंतराल को संबोधित किया। जापान की जिरकास संस्था के विशेषज्ञ तथा जैविक संसाधन और कटाई उपरांत प्रभाग के डॉ. नाओकी यामानाका के अनुसार, एशियाई सोयाबीन रस्ट की समस्या को हल करने के लिए रस्ट प्रतिरोध के लिए प्रजाति-विशिष्ट प्रजनन प्रभावी और किफायती हो सकता है।
डॉ. वी.के. बरनवाल, राष्ट्रीय प्रोफेसर, प्लांट पैथोलॉजी प्रभाग, भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, नई दिल्ली ने भारत के विभिन्न सोयाबीन वायरल रोगों का पता लगाने और उनके निदान तथा उनके रोग प्रबंधन रणनीतियों के बारे में बात की। डॉ. गुप्ता ने कहा कि देश को प्रोटीन निर्माण का केंद्र बनाने की दिशा में प्रगति होगी, जिसके लिए सोयाबीन सबसे अच्छा विकल्प है तथा इसकी उत्पादकता में वृद्धि नीति निर्माताओं के सपनों को साकार करेगी। डॉ. तिवारी ने सोयाबीन वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि वे सोयाबीन कृषक समुदाय के समग्र लाभ के लिए बुनियादी तथा मौलिक अनुसंधान कार्यक्रमों के अतिरिक्त मैदानी समस्याओं को सुलझाने वाले अनुसंधान पर भी ध्यान केन्द्रित करें। डॉ शर्मा ने वैज्ञानिकों से सोयाबीन में जैविक तनाव के प्रबंधन पर एक बड़ी परियोजना शुरू करने पर जोर दिया। उन्होंने सोयाबीन वैज्ञानिकों से जीडब्ल्यूएएस, क्यूटीएल मैपिंग, हैप्लोटाइप आधारित प्रजनन और मेजबान रोगजनक अंतःक्रिया अध्ययन जैसे नवीन अनुसंधान दृष्टिकोणों का उपयोग करने का आह्वान किया। इस मौके पर डॉ शर्मा ने नवनिर्मित मंडप परिसर का उद्घाटन किया तथा एग्री बिजनेस इन्क्यूबेशन केंद्र को देश की जनता के लिए समर्पित किया। धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ. एमपी शर्मा, प्रधान वैज्ञानिक ने किया।
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