राज्य कृषि समाचार (State News)

वैज्ञानिक तरीके से सिंचाई एवं खाद प्रबंधन से फसल उत्पादन में वृद्धि संभव- डॉ. रानाडे

22 नवंबर 2024, बड़वानी: वैज्ञानिक तरीके से सिंचाई एवं खाद प्रबंधन से फसल उत्पादन में वृद्धि संभव- डॉ. रानाडे – कृषि विज्ञान केन्द्र बड़वानी द्वारा कृषि आदान विक्रेताओं के एकवर्षीय डिप्लोमा कार्यक्रम (देसी) अन्तर्गत प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. एस. के. बड़ोदिया के मार्ग दर्शन में केन्द्र के सभागार में आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम के  मुख्य अतिथि एवं प्रमुख वक्ता अधिष्ठाता-बी.एम. कृषि महाविद्यालय खंडवा डॉ. डी.एच. रानाडे  थे ।

डॉ रानाडे ने कहा कि छोटी-छोटी सी  सावधानियां  एवं प्रबंधन कार्य कर फसल के उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है जैसे अपने खेत की मृदा अनुसार फसल का चयन, उपयुक्त प्रजाति का चुनाव, सिंचाई एवं उर्वरक का समुचित प्रबंधन कर 30-40 प्रतिशत तक उत्पादन में वृद्धि लाई जा सकती है । अगर फसल में ड्रिप  सिंचाई   पद्धति  से सिंचाई की जावे व उचित उर्वरक प्रबंधन किया जावे तो फसल में अच्छा उत्पादन देखा गया है ।  

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 डॉ रानाडे ने  बताया  कि हमें जल प्रबंधन की शुरुआत कृषि क्षेत्र से करनी चाहिए क्योंकि सर्वाधिक मात्रा में कृषि कार्यों में ही जल का उपयोग किया जाता है तथा सिंचाई में जल का दुरुपयोग एक गंभीर समस्या है, जनमानस में धारणा है अधिक पानी, अधिक उपज, जो कि गलत है, क्योंकि फसलों के उत्पादन में सिंचाई का योगदान 15-16 प्रतिशत होता है। फसल के लिए भरपूर पानी का मतलब मात्र मिट्टी में पर्याप्त नमी ही होती है परंतु वर्तमान कृषि पद्धति में सिंचाई का अंधा-धुंध इस्तेमाल किया जा रहा है। धरती के गर्भ से पानी की आखिरी बूँद भी खींचने की कवायद की जा रही है। देश में हरित क्रांति के बाद से कृषि के जरिये जल संकट का मार्ग प्रशस्त हुआ है। बूँद-बूँद सिंचाई बौछार (फव्वारा तकनीकी) तथा खेतों के समतलीकरण से सिंचाई में जल का दुरुपयोग रोका जा सकता है। फसलों के जीवन रक्षक या पूरक सिंचाई देकर उपज को दुगुना किया जा सकता है।

जल उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए पौधों को संतुलित पोषक तत्वों को प्रबंध करने की आवश्यकता है, जल की सतत् आपूर्ति के लिए आवश्यक है कि भूमिगत जल का पुनर्भरण किया जाए, खेतों के किनारे फलदार वृक्ष लगाने चाहिए, छोटे-बड़े सभी कृषि क्षेत्रों पर क्षेत्रफल के हिसाब से तालाब बनाने जरुरी हैं। रासायनिक खेती की बजाये जैविक खेती पद्धति अपना कर कृषि में जल का अपव्यय रोका जा सकता है। ऊँचे स्थानों, बाँधों इत्यादि के पास गहरे गड्ढ़े खोदे जाने चाहिए, जिससे उनमें वर्षा जल एकत्रित हो जाये और बहकर जाने वाली मिट्टी को अन्यत्र जाने से रोका जा सके, कृषि भूमि में मृदा की नमी को बनाये रखने के लिए हरित खाद तथा उचित फसल चक्र अपनाया जाना चाहिए। कार्बनिक अवशिष्टों को प्रयोग कर इस नमी को बचाया जा सकता है, वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए शहरी मकानों में आवश्यक रूप से वाटर टैंक लगाए जाने चाहिए। इस जल का उपयोग अन्य घरेलू जरुरतों में किया जाना चाहिए। जल का संरक्षण करना वर्तमान समय की  आवश्यकता  है । इस अवसर पर डॉ रानाडे द्वारा केन्द्र की  प्रदर्शन  इकाइयों  बकरी पालन, मुर्गी पालन, केंचुआ खाद इकाई, एजोला इकाई, डेयरी आदि का अवलोकन कर प्रशंसा व्यक्त की ।

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