उद्यानिकी फसलों से आया ज़िंदगी में बदलाव
19 अक्टूबर 2024, (दिलीप दसौंधी, मंडलेश्वर): उद्यानिकी फसलों से आया ज़िंदगी में बदलाव – नई सोच के साथ जो कार्य किए जाते हैं, उनमें न केवल सफलता मिलती है, बल्कि वह जीवन की दशा भी बदल देते हैं। ऐसा ही कार्य ग्राम झापड़ी तहसील महेश्वर के उन्नत किसान श्री चंद्रशेखर पाटीदार ने किया। उन्होंने नई सोच के साथ जब परम्परागत खेती को छोड़कर उद्यानिकी फसलों की ओर रुख किया तो उसने इनकी दशा ही बदल दी।

श्री पाटीदार ने कृषक जगत को बताया कि 10 वीं तक पढ़ाई करने के बाद खेती पर ही ध्यान देना शुरू कर दिया था। पिछले 16 साल से बड़े भाई श्री ओमप्रकाश पाटीदार के साथ खेती करते हैं। खुद की 25 एकड़ ज़मीन है। इसके अलावा 5 एकड़ ज़मीन लीज पर भी ली है। जहाँ सिर्फ उद्यानिकी फसलों की ही खेती की जाती है। जिनमें रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। 15 एकड़ में खीरा , टमाटर, लौकी, गिलकी, करेला उगाया जाता है। हमारा क्षेत्र सब्जी की फसलों के लिए अनुकूल है। श्री पाटीदार का मानना है कि परम्परागत खेती से वार्षिक खर्च ,बच्चों की पढ़ाई और उनके विवाह आदि की ही व्यवस्था की जा सकती है ,जबकि उद्यानिकी फसलें किसानों की आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव लाती है। परम्परागत खेती को लेकर किसानों को अब अपनी सोच बदलना चाहिए । उद्यानिकी फसलों के संबंध में श्री रूपचंद डोडियार वरिष्ठ उद्यान विकास अधिकारी महेश्वर एवं शिव नर्सरी, सुंद्रेल के श्री धर्मेंद्र पाटीदार से मार्गदर्शन मिलता रहता है।
श्री पाटीदार ने तीन एकड़ में तीन साल पहले मौसम्बी लगाई थी। जिसमें फल आना भी शुरू हो गए , लेकिन पेड़ों की मजबूती और दीर्घकालीन लाभ को देखते हुए फ्रूटिंग नहीं की गई। केले की खेती 4 साल से कर रहे हैं। काली मिट्टी होने से पहले 20 टन / एकड़ का उत्पादन मिला। यदि मिट्टी पीली/पथरीली होती तो उत्पादन 25 -30 टन /एकड़ तक पहुंचता। इन्होंने इस वर्ष अप्रैल में 8 एकड़ में केले की जी -9 किस्म को लगाने में पहली बार मल्चिंग का प्रयोग किया है। 5 माह बाद केले का उत्पादन शुरू हो जाएगा। यह पहले पपीता में भी मल्चिंग का प्रयोग कर चुके हैं। जिसमें लागत में कमी आई थी। गत वर्ष इन्होंने टमाटर की किस्म 1057 और ऋषिका लगाई थी , जिसका औसत 75 – 80 टन / एकड़ उत्पादन मिला था। अधिकांश टमाटर दिल्ली और पंजाब की मंडियों में भेजा जाता है। बिचौलिए भी सीधा खेत से माल उठा लेते हैं। गत वर्ष खीरा का औसत उत्पादन 15 टन /एकड़, लौकी का 20 टन /एकड़ तथा खरीफ करेला का 12 -15 टन / एकड़ और रबी करेला का 15 -25 टन /एकड़ उत्पादन मिला था , क्योंकि इन दिनों तापमान स्थिर रहने से वायरस नहीं लगता। उद्यानिकी फसल के कारण स्थानीय 25 -30 लोगों को रोज़गार उपलब्ध हो रहा है।
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