राज्य कृषि समाचार (State News)

जी-२०; भारत मे नीलीक्रांति के विकास मे प्रासंगिता

लेखक: सत्यवीर 1* परविन्द कुमार 2 शुभम कश्यप 2 नितेश यादव 2  अरुन राजभर 3, 1 मत्स्यकी महाविद्यालय, कर्नाटक वेटरनरी एनिमल एंड फिशरीज साइंसेज यूनिवर्सिटी, मंगलूरु, कर्नाटक, 2 केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय इम्फाल, मणिपुर, 3 कृषि विज्ञान केन्द्र, बहराईच, उत्तर प्रदेश

02 मई 2025, भोपाल: जी-२०; भारत मे नीलीक्रांति के विकास मे प्रासंगिता –

परिचय

भारत की बढ़ती जनसंख्या और घटती खेती की जमीनें खाद्यान्न संकट की ओर इशारा कर रही हैं। ऐसे में मछलीपालन न केवल रोजगार का अच्छा साधन साबित हो सकता है, बल्कि खाद्यान्न समस्या के पूरक के तौर पर भी अच्छा साबित हो सकता है। देश में दिनोंदिन मछली खाने वालों की तादाद में इजाफा हो रहा है, इसलिए मछली की मांग में तेजी से उछाल आया है। ऐसे में अगर बेरोजगार नौजवान और किसान मछलीपालन का काम वैज्ञानिक तरीके से करें तो कम लागत में अधिक मुनाफा हो सकता है। मछली पालन उद्योग मछुआरों तक ही सीमित था कभी, किन्तु आज यह सफल और प्रतिष्ठित लघु उद्योग के रूप में स्थापित हो रहा है। नई-नई टेक्नोलॉजी ने इस क्षेत्र में क्रांति ला दी है। मत्स्य पालन रोजगार के अवसर तो पैदा करता ही है, खाद्य पूर्ति में वृद्धि के साथ-साथ विदेशी मुद्रा अर्जित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। आज भारत मत्स्य उत्पादक देश के रूप में उभर रहा है। एक समय था, जब मछलियों को तालाब, नदी या सागर के भरोसे रखा जाता था, परंतु बदलते वैज्ञानिक परिवेश में इसके लिए कृत्रिम जलाशय बनाए जा रहे हैं, जहां वे सारी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं, जो प्राकृतिक रूप में नदी, तालाब और सागर में होती हैं। छोटे शहरों और गांवों के वे युवा, जो कम शिक्षित हैं, वे भी मछली पालन उद्योग लगा कर अच्छी आजीविका अर्जित कर सकते।

खाद्य एवं कृषि संगठन 2022 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार संसार मे लगभग 600 मिलिन लोग और भारत की बात की जाय तो लगभग 28 मिलियन लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मछली पर निर्भर है। वैश्विक स्तर पर 2020 मे 0.2 प्रतिशत की वृद्धि के साथ कुल मछली उत्पादन 178 मिलियन टन, 2018 में 3.3 प्रतिशत की वृद्धि के साथ कुल मछली उत्पादन 179 मिलियन टन था अगर हम 2018 की तुलना मे, 2019 में मछली के कुल उत्पादन देखें तो इसमे 1 प्रतिशत तक की गिरावट आई थी। खाद्य एवं कृषि संगठन 2022 की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर कुल मछली उत्पादन मे कैप्चर मत्स्य पालन ने 90.3 मिलियन टन (51 प्रतिशत)  का योगदान दिया है तथा जलीय कृषि (एक्वाकल्चर) ने 88 मिलियन टन (49 प्रतिशत) का योगदान दिया है।

खाद्य एवं कृषि संगठन 2022 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, जलीय खाद्य पदार्थों की वैश्विक स्पष्ट खपत 1961 से 2019 तक 3.0 प्रतिशत की औसत वार्षिक दर से बढ़ी, जो इसी अवधि के लिए वार्षिक विश्व जनसंख्या वृद्धि (1.6 प्रतिशत) की लगभग दोगुनी दर है। जलीय पशु खाद्य पदार्थों की प्रति व्यक्ति खपत प्रति वर्ष लगभग 1.4 प्रतिशत बढ़ी, जो 1961 में 9.0 किलोग्राम (जीवित वजन के बराबर) से 2019 में 20.5 किलोग्राम हो गई। 2020 के लिए प्रारंभिक डेटा मामूली गिरावट के साथ 20.2 किलोग्राम की ओर इशारा करता है। उसी वर्ष, मानव उपभोग के लिए उपलब्ध जलीय पशु खाद्य उत्पादन की मात्रा में जलीय कृषि का हिस्सा 56 प्रतिशत था। हाल के दशकों के दौरान, जलीय खाद्य पदार्थों की प्रति व्यक्ति खपत बढ़ी हुई आपूर्ति, बदलती उपभोक्ता प्राथमिकताओं, प्रौद्योगिकी में प्रगति और आय वृद्धि से सबसे अधिक प्रभावित हुई है।

नीलीक्रांति

भारत में नीली क्रांति का जनक अरुण कृष्णन को माना जाता है| भारत में मत्स्य उत्पादन में बृद्धि के लिए चलाई गई एक विशेष योजना को ‘नीली क्रांति’ का नाम दिया गया है| भारत में नीली क्रांति के दौरान एक्वाकल्चर का विकास हुआ जिसके कारण मछली पालन, मछली प्रजनन, मछली विपणन और मछली निर्यात में बहुत अधिक सुधार हुआ है। नीली क्रांति के कारण भारत में झींगा मछली के उत्पादन में बहुत बृद्धि हुई है। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में झींगा का उत्पादन बहुत ही व्यापक स्तर पर होता है इसी कारण आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले को भारत की ‘झींगा मछली की राजधानी कहा जाता है। नील क्रांति मिशन का उद्देश्य’ देश तथा मछुआरों एवं मछली किसानों की आर्थिक समृद्धि प्राप्त करना तथा जैव सुरक्षा एवं पर्यावरणीय स्रोतों  को ध्यान में रखते हुए संपोषणीय ढंग से मछली पालन विकास के लिए जल संसाधनों की पूर्णक्षमता के उपयोग के माध्य‍म से खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में योगदान देना है । इसमें मछली पालन क्षेत्र के बदलाव, अधिक निवेश, बेहतर प्रशिक्षण और अवसंरचना के विकास की परिकल्पना है नीली क्रांति मछली पकड़ने के लिए नए बंदरगाहों के निर्माण, मछली पकड़ने की नौकाओं के आधुनिकीकरण, मछुआरों को प्रशिक्षण देने तथा स्वं-रोजगार की गतिविधियों  के रूप में मछली पकड़ने को बढ़ावा देना है। महिलाओं और उनके समूहों को प्रशिक्षण तथा क्षमता-निर्माण और परियोजनाओं के आबंटन में प्राथमिकता दी जाएगी।

जी 20 क्या है?

जी-20 समूह बनने से पहले इस समूह को जी-7 कहा जाता था। इस ग्रुप में अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, इटली, फ्रांस, जापान और ब्रिटेन देश शामिल थे। 1998 में इस समूह का विस्तार कर रूस को भी सदस्य बना लिया गया। इसके बाद इस समूह को जी-8 के नाम से जाना जाने लगा। इसके बाद 26 सितंबर 1999 में हुई जी-8 की बैठक में इस समूह को बढ़ाकर जी-20 बनाने का फैसला लिया गया। इसी साल बर्लिन में हुई बैठक का आयोजन हुआ जिसमें जी-20 को आधिकारिक रूप से बना दिया गया। जी 20 की स्थापना साल 2008 में कई गई थी और पहली इसकी बैठक अमेरिका में हुई थी। साल 2007 में आए वैश्विक आर्थिक और वित्तीय संकट के बाद जी-20 संगठन को राष्ट्रप्रमुखों के स्तर का बना दिया गया। जी20 ग्रुप में 19 देश- अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ़्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्किए, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका एवं 2 संघ- यूरोपपियन संघ और अफ़्रीकन संघ भी शामिल हैं। इसके साथ ही इस ग्रुप का 20वां सदस्य है यूरोपियन यूनियन, यानी यूरोप के देशों का मज़बूत समूह। जी-20 में हुए इस बदलाव के बाद समूह की पहली बैठक अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में आयोजित हुई। इसके बाद इस समूह की वैश्विक अहमियत समझते हुए हर साल इसकी बैठक की जाने लगी। जी-20 की बैठक की अध्यक्षता हर साल अलग-अलग देश करते हैं। जी-20 सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों पर वैश्विक वास्तुकला और शासन को आकार देने और मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत के पास 1 दिसंबर 2022 से 30 नवंबर 2023 तक जी-20 की अध्यक्षता है। जी-20 देशों के पास दुनिया के लगभग 45% समुद्र तट और 21% से अधिक विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZs) हैं। जी-20 समूह का गठन हुए करीब 24 साल बीत चुके हैं। इस दौरान कुल 17 जी-20 बैठकों का आयोजन हो चुका है। नई दिल्ली में यह 18वां जी-20 शिखर सम्मेलन भारत को सौंपी गई। पिछले साल जी-20 की अध्यक्षता इंडोनेशिया के पास थी। उसके बाद जी-20 की अध्यक्षता भारत को सौंपी गई। अगले साल ब्राजील जी-20 की अध्यक्षता करेगा। भारत में जी 20 देशों की बैठक राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में 8 से 10 सितंबर के बीच हुई थी। भारत में इस तरह का इतना बड़ा पहला अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है, जिसकी सालभर से तैयारी चल रही थी। जी-20 का मूल एजेंडा आर्थिक सहयोग और वित्तीय स्थिरता का है। लेकिन समय के साथ व्यापार, जलवायु परिवर्तन, सस्टेनेबल डेवलपमेंट, स्वास्थ्य और कृषि संबंधी मुद्दे को भी शामिल किया गया है। जी-20 में दो स्तर पर समांतर तरीके से चर्चा होती है। पहले स्तर को फाइनेंसिनेंयल ट्रैक कहते हैं, जिसमें बातचीत का काम वित्त मंत्री संभालते हैं और साथ ही इस बैठक में केंद्रीय बैंक के गवर्नर भी शिरकत करते हैं। वहीं दूसरे स्तर को शेरपा ट्रैक कहते हैं। शेरपा ट्रैक में अलग-अलग देशों की सरकार अपना शेरपा नियुक्त करती हैं। भारत सरकार ने अमिताभ कांत को अपना शेरपा नियुक्त किया है। जी-20 देश संसार की लगभग 85 फीसदी विश्व सकल उत्पाद, 75 फीसदी व्यापार, 66 फीसदी जनसंख्या और 60 फीसदी क्षेत्रफल का प्रतिनिधि करता है। और इसके अलावा -20 देश संसार की लगभग 45 फीसदी समुद्री तट का प्रतिनिधि करता है। जिसमे अरबों लोग अपनी जीवन आजीविका को चलाते है।

भारतीय मास्यिकी का क्षेत्र

भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र संसार के कुल मत्स्य उत्पादन का 8 फीसदी है। भारत की समुद्र तटीय लम्बाई लगभग 8129 किलोमीटर है। और 2.02 मिलि किलोमीटर विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) है। हम ताजे जल के स्त्रोत या संसाधन की बात करेंगे तो लगभग 45000 किलोमीटर नांदिया और 3.15  मिलिए हेक्टेयर डैम या जल संचयन है। आद्रभूमि का भी उपयोग करके हम मत्स्य उत्पादन मे बढोतरी कर सकते है।

नीली अर्थव्यवस्था

माख्यिकी के विकास के लिए विश्व जलवायु परिवर्तन के कार्य करने वाले समूह ने चेन्नई में नीली अर्थव्यवस्था पर चर्चा की थी जिसमे मत्स्य क्षेत्र को बढ़ाबा देने पर और इसके सतत विकास के लिए उच्च स्तरीय वार्तालाप हुआ। यह जी-20 का ही मुख्य अंश था।

नीली अर्थव्यवस्था को संरक्षित करने प्रमुख अंश जो मत्स्य विकास में सहायक है

  • अवैध प्रकार की महली पकड़ने पर रोकथाम
  • सरकार द्वारा समय- समय पर मत्स्य संसाधनो का अच्छा आकलन, देखभाल और प्रबंधन
  • तेजी से मौसम की घटनाओं मे बृद्धि होना पर कदम उठाना
  • समुद्र के जल स्तर वृब्दि पर चर्चा
  • समुद्री क्षेत्र में अच्छी और सस्ती ऊर्जा परिदान करना
  • संसाधनों का अत्यधिक दोहन और अनियोजित शहरीकरण।
  • मत्स्य और समुद्र के जीवो का अधिक दोहन पर रोक
  • प्राकृतिक संसाधनो का अच्छे से उपयोग जो सतत विकास में सहायक हो
  • प्लास्टिक, कचरा और प्रदूषण को समुद्र से कम करने के लिए उपाय
  • खाद्य सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन एवं आर्थिक पर जोर
  • समुद्र तटीय समुदायो को रोजगार, आजीविका और आर्थिक संबनन बनाना
  • बन्दर‌गाहों का नवीनीकरण करना जो आयात और निर्यात में सहायक हो
  • मत्स्य संसाधनो का सही से प्रयोग और उपयोग करना

मुख्य अंश जो जी-20 सम्मेलन से मात्स्यिकी विकास में सहायक हो सकते है।

  • खाद्य एवं कृषि संगटन (FAO) के अनुसार मात्यिकी क्षेत्र से 424 बिलियन अमेरिकी डॉलर का राजस्व प्राप्त हुआ जो की यह मंचदेश को नये विकास मे सहायक हो सकता है।
  • आज भारत 129 देशो को समुद्री भोजन निर्यात रहा है जिसमे संयुक्त राज्य अमेरिका सर्वोपरि आयातक है। जी-20 के मंच से भारत अपना व्यापार को और भी बढ़ा सकता है।
  • विश्व बैंक, अतर्राष्ट्रीय संकट कोष आदि से ऋण लेकर भारत और अधिक मात्स्यिकी क्षेत्र में विकास सकता है।
  • हाल ही में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने इंडिया यूरोपियन कॉरीडोर के लिए समझौता किया है जिससे भारत समुद्री भोजन और जलीय भोजन उत्पाद आसानी से एक देश से दूसरे देश पहुंचा सकता है।
  • सतत विकास लक्ष्य 2030 (SDG-30) में भी मात्स्यिकी क्षेत्र की प्रमुख भूमिका है। जैसे कि गरीबी खतम करना, भुखमरी को मिठाना, जलवायु परिवर्तन आदि मस्त्य पालन क्षेत्र को और अधिक विस्तृत करके, अधिक से अधिक लोगो को जोड़‌कर इस क्षेत्र से रोजगार दिया जा सकता है जो कि आजीविका का महत्वपूर्ण स्त्रोत है।
  • जी-20 देश आपस मे मिलकर अवैध मछली पकड़ने पर रोक लगा सकते है। सकते है। जिससे कि हमारा पारिस्थितिकी तंत्र स्वस्थ्य रहेगा।
  • जी – २० देश आपस से एक दूसरे को सहयोग करके महली पकड़ने के दौरान होने वाली जन धन की हानि को भी कम किया जा सकता है।
  • एक देश दूसरे देश से मात्स्यिकी विकास के क्षेत्र मे नयी नयी तकनीकी, शिक्षा और सुरक्षा आदि का आदान प्रदान कर सकते है।
  • मात्स्यिकी के विभिन्न संसाधनो का बिना किसी नुकसान के पारिस्थिकी तंत्र को पाहितिकी तंत्र को स्वस्थ रखने में, प्रदूषण से मुक्त करने मे, जलवायु परिवर्तन से लड़ने में, मात्यिकी के विभिन्न संसाधनो को दोबारा स्थापना करके मे, एक दूसरे देश के नियम कानून संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न संस्थाओं की मदद से हम देश को नीली क्रांति की ओर अग्रसर कर सकते हैं।

नीली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए क्या पहल की गईं?

सागरमाला पहल – 

    बंदरगाह आधारित विकास को बढ़ावा देने और देश के समुद्री क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए 2015 में एक कार्यक्रम शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य बंदरगाहों का आधुनिकीकरण करना, कनेक्टिविटी और लॉजिस्टिक्स में सुधार करना और तटीय सामुदायिक विकास को बढ़ावा देना है।

    सागरमाला परियोजना को वर्ष 2015 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था जिसका उद्देश्य आधुनिकीकरण, मशीनीकरण और कंप्यूटरीकरण के माध्यम से 7,516 किलोमीटर लंबी समुद्री तट रेखा के आस-पास बंदरगाहों के इर्द-गिर्द प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विकास को बढ़ावा देना है। भारतीय बंदरगाह बुनियादी ढाँचा संरचना के विकास तथा माल ढुलाई आवाजाही आदि के मामले में काफी पीछे है। सकल घरेलू उत्पाद में जहाँ रेलवे की हिस्सेदारी लगभग 9% और सड़क परिवहन की 6 % है, वहीं बंदरगाहों का हिस्सा लगभग 1% के आस-पास है। वर्तमान समय में भारतीय बंदरगाह मात्रा की दृष्टि से देश के निर्यात व्यापार का 90% से अधिक हिस्सा संभालते हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए बंदरगाहों के बुनियादी ढाँचें को विकसित करने के लिये वर्ष 2017 में भारत सरकार द्वारा सागरमाला परियोजना की शुरुआत की गई। सागरमाला परियोजना का दृष्टिकोण आयात-निर्यात (EXIM) और घरेलू व्यापार हेतु न्यूनतम बुनियादी ढांचा निवेश के साथ रसद लागत को कम करना है। सागरमाला परियोजना वर्ष 2025 तक भारत के व्यापार निर्यात को 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ा सकती है, साथ ही लगभग 10 मिलियन नई नौकरियां (प्रत्यक्ष रोज़गार में चार मिलियन) पैदा कर सकती है। मंत्रालय ने संभावित एयरलाइन ऑपरेटरों के साथ सागरमाला सीप्लेन सर्विसेज़ की महत्त्वाकांक्षी परियोजना शुरू की है।

    सागरमाला कार्यक्रम के घटक:

    • बंदरगाह आधुनिकीकरण और नए बंदरगाह विकास: मौजूदा बंदरगाहों का अवरोध और क्षमता विस्तार तथा नए ग्रीनफील्ड बंदरगाहों का विकास।
    • पोर्ट कनेक्टिविटी बढ़ाना: घरेलू जलमार्गों (अंतर्देशीय जल परिवहन और तटीय शिपिंग) सहित मल्टी-मोडल लॉजिस्टिक्स समाधानों के माध्यम से बंदरगाहों की आंतरिक भूमि से कनेक्टिविटी को बढ़ाना, कार्गो आवाजाही की लागत और समय का अनुकूलन करना।
    • बंदरगाह संबद्ध औद्योगीकरण: EXIM और घरेलू कार्गो की लॉजिस्टिक लागत तथा समय को कम करने के लिये बंदरगाह-समीपस्थ औद्योगिक क्लस्टर और तटीय आर्थिक क्षेत्र विकसित करना।
    • तटीय सामुदायिक विकास: कौशल विकास और आजीविका निर्माण गतिविधियों, मत्स्य विकास, तटीय पर्यटन आदि के माध्यम से तटीय समुदायों के सतत् विकास को बढ़ावा देना।
    • तटीय नौवहन और अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन: सतत् और पर्यावरण के अनुकूल तटीय तथा अंतर्देशीय जलमार्ग के माध्यम से कार्गो को स्थानांतरित करने के लिये प्रोत्साहन।
    • प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना –

    भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए 2020 में एक योजना शुरू की गई। इसका उद्देश्य मछली उत्पादन बढ़ाना, मछली पकड़ने के बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण करना और क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा करना है।

    प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY) भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही एक ऐसी योजना है, जिसके माध्यम से मछली पालन व्यवसाय से जुड़े हुए लोगों की आय में वृद्धि करनें के साथ ही उनके जीवन स्तर में सुधार करना है | दरअसल सरकार इस स्कीम के अंतर्गत जलीय कृषि को बढ़ावा देना चाहती है, जिससे जलीय क्षेत्रों में व्यवसाय को एक बड़े पैमानें तक बढ़ाया जा सके। पीएमएमएसवाई योजना (PMMSY Scheme) के अंतर्गत सरकार द्वारा मछली पालन के क्षेत्र में कार्य करनें वाले लोगो को 3 लाख रुपये का ऋण प्रदान किया जा रहा है |  प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के लिए बजट में 20,050 करोड़ रुपये का फंड बनाया गया है | इस धनराशि का उपयोग इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के लिए किया जायेगा, जिससे इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे| पीएमएमएसवाई योजना इसका उद्देश्य भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र के सतत् और ज़िम्मेदार विकास के माध्यम से नीली क्रांति लाना है। PMMSY को 20,050 करोड़ रुपये के निवेश के साथ ‘आत्मनिर्भर भारत’ के हिस्से के रूप में पेश किया गया था। जो इस क्षेत्र में अब तक का सबसे अधिक निवेश है। यह योजना वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2024-25 तक 5 वर्षों की अवधि के लिये सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू की जा रही है। संस्थागत ऋण तक पहुँच को सुविधाजनक बनाने हेतु मछुआरों को बीमा कवरेज, वित्तीय सहायता और किसान क्रेडिट कार्ड (के सी सी) की सुविधा भी प्रदान की जाती है।

    पीएमएमएसवाई योजना का उद्देश्य: 

    • मत्स्य पालन क्षेत्र की क्षमता का टिकाऊ, उत्तरदायी, समावेशी और न्यायसंगत तरीके से उपयोग करना।
    • भूमि और जल के विस्तार, सघनीकरण, विविधीकरण और उत्पादक उपयोग के माध्यम से मत्स्य उत्पादन तथा उत्पादकता बढ़ाना।
    • फसल कटाई के बाद प्रबंधन और गुणवत्ता में सुधार सहित मूल्य शृंखला को आधुनिक एवं मज़बूत बनाना।
    • मछुआरों और मत्स्य किसानों की आय दोगुनी करना तथा सार्थक रोज़गार के अवसर उत्पन्न करना।
    • कृषि सकल मूल्य वर्द्धित (Gross Value Added- GVA) और निर्यात में मत्स्य पालन क्षेत्र का योगदान बढ़ाना।
    • मछुआरों और मत्स्य किसानों हेतु सामाजिक, भौतिक एवं आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना।
    • मज़बूत मत्स्य पालन प्रबंधन और नियामक ढाँचा स्थापित करना।

    पीएमएमएसवाई योजना का महत्त्व:  

    • भारतीय अर्थव्यवस्था में मत्स्य पालन क्षेत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह राष्ट्रीय आय, निर्यात, खाद्य और पोषण सुरक्षा के साथ-साथ रोज़गार सृजन में योगदान देता है।
    • यह क्षेत्र प्राथमिक स्तर पर 2.8 करोड़ से अधिक मछुआरों और इस क्षेत्र से जुड़े कई अन्य लोगों को आजीविका प्रदान करता है। 
    • यह देश की आर्थिक रूप से वंचित आबादी के एक बड़े हिस्से के लिये आय का एक प्रमुख स्रोत है।
    • मछली उत्पादन में सुधार के लिये एकीकृत मछली पालन और मछली उत्पादन में विविधता लाना आवश्यक है।
    • इसके अतिरिक्त विदेशी मुद्रा आय में मत्स्य पालन क्षेत्र का प्रमुख योगदान रहा है, भारत विश्व के अग्रणी समुद्री खाद्य पदार्थ (Seafood) निर्यातकों में से एक है।
    • वित्त वर्ष 2020 में देश के कुल मत्स्य निर्यात में जलीय कृषि उत्पादों का हिस्सा 70-75% था।

    डीप ओशन मिशन

    गहरे समुद्र का पता लगाने और राष्ट्रीय लाभ के लिए इसके संसाधनों का दोहन करने के लिए 2021 में एक कार्यक्रम शुरू किया गया। इसका उद्देश्य गहरे समुद्र का पता लगाना, उसके संसाधनों का मानचित्रण करना, गहरे समुद्र में खनन के लिए तकनीक विकसित करना और महासागर संरक्षण को बढ़ावा देना है।

    भारत सरकार ने हमारे देश में अभी तक अज्ञात ‘समुद्री विविधता’ (Marine diversity) का पता लगाने के उद्देश्य से डीप ओशन मिशन (D.O.M) शुरू करने का निर्णय लिया है । इस परियोजना का प्रबंधन पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES), भारत सरकार द्वारा किया जाएगा । इस मिशन के तहत समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई तक पहुँचने के लिये वैज्ञानिक सेंसर और उपकरणों के साथ एक मानवयुक्त पनडुब्बी विकसित की जाएगी । इसके लिए राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT), जो कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान है, और इसरो (ISRO) संयुक्त रूप से प्रयास कर रहे हैं । डीप ओशन मिशन को ठीक उसी तरह से देखा जा सकता है जैसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अंतरिक्ष अनुसंधान करता है । हालांकि, भारत का डीप ओशन मिशन पूरी तरह से अनदेखे खनिजों, पत्थरों, जीवित या निर्जीव संस्थाओं के लिए हमारे देश में गहरे पानी के निकायों का अध्ययन और अन्वेषण करने पर ध्यान केंद्रित करेगा । मिशन के लिए कार्यबल और ‘रोबोटिक’ मशीनों दोनों का इस्तेमाल किया जाएगा । गहरे समुद्र में खनन, ऊर्जा की खोज, मिली वस्तुओं का सर्वेक्षण और अपतटीय अलवणीकरण जैसे कार्य सख्ती से किए जाएंगे। डीप ओशन मिशन के लिए किए गए तकनीकी विकास को सरकारी योजना “महासागर सेवाएं, प्रौद्योगिकी, अवलोकन, संसाधन मॉडलिंग और विज्ञान (ओ- स्मार्ट)” द्वारा वित्त पोषित किया जाएगा । इस मिशन के माध्यम से महासागर और जलवायु परिवर्तन पर अध्ययन और अनुसंधान किया जाएगा। यह परियोजना आमतौर पर 1000 से 5500 मीटर की गहराई में पाए जाने वाले पॉलीमेटेलिक मैंगनीज नोड्यूल्स, गैस हाइड्रेट्स, हाइड्रोथर्मल सल्फाइड और कोबाल्ट क्रस्ट जैसे संसाधनों की खोज पर केंद्रित है। डीप ओशन मिशन की कुल अनुमानित लागत पांच साल (2021 से 2026) की अवधि के लिए 4077 करोड़ रुपये है। 2021-22 और 2022-23 के दौरान 150 करोड़ रुपये और 650 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के डीप ओशन मिशन के भागीदारों में से एक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) है।

    डीप ओशन मिशन के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं:

    • गहरे समुद्र में खनन, पानी के नीचे की पनडुब्बियों और पानी के नीचे के ‘रोबोटिक्स’ के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास;
    • महासागर जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं का विकास;
    • गहन समुद्री जैव विविधता की खोज और संरक्षण के लिए तकनीकी विकास;
    • गहरे समुद्र का सर्वेक्षण और अन्वेषण;
    • समुद्र से ऊर्जा उत्पादन की अवधारणा पर अध्ययन का प्रमाण; तथा
    • महासागर जीव विज्ञान के लिए उन्नत समुद्री स्टेशन की स्थापना इत्यादि

    प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम (2022)

    प्लास्टिक अपशिष्ट का सुरक्षित निपटान एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है। एक गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्री होने के कारण , यह समय के साथ क्षय नहीं होती है और भले ही इसे लैंडफिल में फेंक दिया जाता है, फिर भी हवा और पानी के क्षरण के माध्यम से पर्यावरण में वापस आ जाता है। प्लास्टिक भूजल को दूषित कर सकता है, जल निकासी चैनलों को बंद कर सकता है, और प्लास्टिक खाने से जानवरों को गंभीर बीमारियाँ हो सकती है एवं जिससे उनकी मृत्यु भी हो सकती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी पी सी वी) की वर्ष 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018-19 के दौरान देश भर में अनुमानित प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन लगभग 33,60,043 टन/वर्ष था। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि अधिकांश प्लास्टिक को एक बार उपयोग करने के बाद कचरे के रूप में फेंक दिया जाता है। यह कार्बन फुटप्रिंट में भी वृद्धि करता है क्योंकि प्लास्टिक उत्पादों के एकल उपयोग से नव प्लास्टिक उत्पादों की मांग बढ़ जाती है। प्लास्टिक अपशिष्ट विभिन्‍न प्रकार  के कचरों में से एक है जिसके नष्ट हम  होने में बहुत लम्बा समय लगता है। आम तौर पर, प्लास्टिक की वस्तुओं को लैंडफिल में नष्ट होने में 1000 साल तक का समय लगता है। हमारे द्वारा रोजमर्रा जिन्दगी में इस्तेमाल की जाने वाली प्लास्टिक की थैलियों को नष्ट होने में 500 वर्ष लगते हैं। एक पानी की बॉटल को नष्ट होने में 1000 वर्ष तक लग सकते हैं। विश्व के 600 से अधिक समुद्री जीव प्लास्टिक से प्रभावित होते हैं। लगभग 45,000 समुद्री जीव प्लास्टिक निगल लेते हैं और 80 प्रतिशत इससे घायल हुए हैं या मारे गये हैं। प्लास्टिक जानवरों के शरीर के अन्दर छेद कर सकता हैं, या भुख, उलझाव, शरीर के अंगों में नुकसान और घुटन का कारण बन सकता है।

    हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022 की घोषणा की, जिसने प्लास्टिक पैकेजिंग के लिये विस्तारित उत्पादक ज़िम्मेदारी (EPR) पर निर्देशों को अधिसूचित किया। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016में एकल-उपयोग प्लास्टिक (SUP) के उन्मूलन और विकल्पों को बढ़ावा देने के लिये संशोधन किया गया है। विस्तारित उत्पादक ज़िम्मेदारी शब्द का अर्थ उत्पाद के जीवन के अंत तक पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन के लिये एक निर्माता की ज़िम्मेदारी से है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की वर्ष 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति वर्ष लगभग 34.69 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। मार्च 2019 में नैरोबी , केन्या में अयोनजत चौथी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (यूएनईए) में सिंगल यूस प्लास्टिक (एसयूपी) उत्पादों के कारण प्रदूषण की समस्या के निराकरण के लिए भारत द्वारा एक प्रस्ताव पेश किया गया था। माननीय प्रधान मंत्री श्री नरद्रें मोदी ने 2019 में  स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान भारत को सिंगल यूस प्लास्टिक से मुक्त बनाने का अह्वान किया था। पर्यावरण, वन और जलवायु परिबर्तन मंत्रालय ने 12 अगस्त 2021 को प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबधंन (संशोधन) नियम 2021 अधिसूचित किया, जिसमे 1 जुलाई, 2022 से सिंगल यूस प्लास्टिक बस्तुओं के विनिर्माण, अयात, भंडारण, बितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया है।

    प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016

    • यह प्लास्टिक कचरे के उत्पादन को कम करने, प्लास्टिक कचरे को फैलने से रोकने और अन्य उपायों के बीच स्रोत पर कचरे का अलग भंडारण सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाने पर ज़ोर देता है।
    • नियम प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन हेतु स्थानीय निकायों, ग्राम पंचायतों, अपशिष्ट उत्पादक, खुदरा विक्रेताओं और पुटपाथ विक्रेताओं के लिये भी ज़िम्मेदारियों को अनिवार्य करते हैं।

    सागर मंथन डैशबोर्ड

    सागरमाला पहल की प्रगति को ट्रैक करने के लिए 2018 में एक ऑनलाइन डैशबोर्ड लॉन्च किया गया। यह परियोजना कार्यान्वयन, फंड उपयोग और अन्य संबंधित मेट्रिक्स पर वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करता है।

    जहाज निर्माण वित्तीय सहायता नीति

    जहाजों के निर्माण के लिए भारतीय शिपयार्डों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए 2016 में एक नीति शुरू की गई। इसका उद्देश्य घरेलू जहाज निर्माण को बढ़ावा देना और भारतीय शिपयार्डों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है।

    तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना

    तटीय क्षेत्रों को वर्गीकृत और बेहतर ढंग से प्रबंधित करना और पारिस्थितिक तंत्र सहित पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील तटीय और समुद्री क्षेत्रों का संरक्षण करना

    भारत के समुद्र तट पर विकास गतिविधियों के प्रबंधन के लिए 2019 में एक विनियमन पेश किया गया। इसका उद्देश्य तटीय पारिस्थितिक तंत्र और तटीय समुदायों की आजीविका के संरक्षण के साथ तटीय क्षेत्रों के आर्थिक विकास को संतुलित करना है।

    नीली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में भारत की G20 अध्यक्षता की क्या भूमिका है?

    महासागर हमारे ग्रह की समृद्धि के लिए व्यापक अवसर प्रदान करते हैं, दुनिया की 45% तटरेखाएँ और 21% से अधिक विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र जी20 देशों में स्थित हैं। वे वैश्विक जैव विविधता के भंडार हैं, वैश्विक मौसम और जलवायु के महत्वपूर्ण नियामक हैं, और तटीय क्षेत्रों में अरबों लोगों की आर्थिक भलाई का समर्थन करते हैं।

    इसका उद्देश्य उच्च-स्तरीय सिद्धांतों को अपनाने को बढ़ावा देना है जो महासागर और उसके संसाधनों के माध्यम से सतत और न्यायसंगत आर्थिक विकास का मार्गदर्शन करते हैं। यह दृष्टिकोण पर्यावरण के लिए जीवन शैली को वैश्विक रूप से अपनाने के श्री मोदी के आह्वान के अनुरूप है, जो बिना सोचे-समझे उपभोग के तरीकों के बजाय सचेत उपयोग को बढ़ावा देता है। भारत की G20 अध्यक्षता एक स्थायी नीली अर्थव्यवस्था की ओर परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक कार्यों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। नीली अर्थव्यवस्था को पर्यावरण और जलवायु स्थिरता कार्य समूह के तहत एक प्रमुख प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में व्यक्त किया गया है

    प्रमुख प्राथमिकता: भारत की जी20 अध्यक्षता ने पर्यावरण और जलवायु स्थिरता कार्य समूह के तहत एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में नीली अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता दी है।

    सतत और न्यायसंगत विकास को बढ़ावा देना: इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करते हुए महासागर और उसके संसाधनों के माध्यम से सतत और न्यायसंगत आर्थिक विकास के लिए उच्च-स्तरीय सिद्धांतों को अपनाने को बढ़ावा देना है।

    भविष्य के G20 अध्यक्षों के लिए एक मार्गदर्शिका: अपनी अध्यक्षता के तहत महासागरों और नीली अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता देने की भारत की प्रतिबद्धता इस महत्वपूर्ण विषय पर निरंतर चर्चा सुनिश्चित करेगी और भविष्य के G20 अध्यक्षों के लिए मार्ग प्रशस्त करेगी।

    संचार और सहयोग: प्रभावी और कुशल महासागर और नीली अर्थव्यवस्था प्रशासन एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करता है, और भारत की जी20 अध्यक्षता सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति के लिए सहयोग को बढ़ावा देने, सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने और सभी हितधारकों के साथ एक प्रभावी संचार का निर्माण कर सकती है। नए नीले वित्त तंत्र बनाएं।

    नीली अर्थव्यवस्था की दिशा में G20 द्वारा क्या पहल की गई?

    • ओसाका ब्लू ओशन विजन – व्यापक जीवन-चक्र दृष्टिकोण के माध्यम से 2050 तक समुद्री प्लास्टिक कूड़े से अतिरिक्त प्रदूषण को शून्य तक कम करने का लक्ष्य है।
    • कोरल रिसर्च एंड डेवलपमेंट एक्सेलेरेटर प्लेटफ़ॉर्म (CORDAP ) – CORDAP को 2020 में लॉन्च किया गया था यह अंतरराष्ट्रीय मूंगा संरक्षण प्रयासों का समर्थन करने वाली नई प्रौद्योगिकियों के विकास में तेजी लाने के लिए दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ दिमागों को एक साथ लाएगा
    • महासागर 20(ओ-20) –ओ-20 देशों के राजनीतिक नेताओं, स्थानीय और स्वदेशी समुदायों, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र को समुद्री समाधानों के लिए कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए एक मंच प्रदान करेगा। ओ-20का नेतृत्व इंडोनेशिया द्वारा विश्व आर्थिक मंच के समर्थन से 2022 में जी-20 की अध्यक्षता के माध्यम से किया गया है।

    निष्कर्ष

    भारत की G20 अध्यक्षता एक स्थायी नीली अर्थव्यवस्था की दिशा में व्यक्तिगत और सामूहिक कार्यों को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करती है। महासागरों का प्रबंधन एक निवेश है जो भविष्य की पीढ़ियों को बनाए रखेगा, और वैश्विक समुदाय को हमारे समुद्री क्षेत्रों की भलाई के लिए एकजुट होना चाहिए। नीली अर्थव्यवस्था के सतत विकास के लिए महासागरों की क्षमता बहुत अधिक है और इसे प्राप्त करने की दिशा में भारत सरकार द्वारा की गई पहल अपने समुद्री संसाधनों और वैश्विक समुदाय के लिए एक स्थायी भविष्य के निर्माण के लिए भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है। भारत की G20 अध्यक्षता परिवर्तन के लिए सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करती है।

    संदर्भ

    रितेश कुमार पांडे,२०२०. भारत में नीली क्रांति, मछली पालन तथा एकीकृत मछली पालन। उपलब्‍ध: भारत में नीली क्रांति, मछली पालन तथा एकीकृत मछली पालन | Pashudhan praharee

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