“अन्नदाता” से “ऊर्जादाता” बनेंगे किसान!
20 मार्च 2025, भोपाल: “अन्नदाता” से “ऊर्जादाता” बनेंगे किसान! – मध्यप्रदेश में पिछले सप्ताह विधानसभा में वर्ष 2025-26 का बजट पेश करते हुए राज्य के उप मुख्यमंत्री एवं वित्त मंत्री श्री जगदीश देवड़ा ने प्रधानमंत्री कृषक मित्र सूर्य योजना की घोषणा करते हुए बताया कि इस योजना के तहत किसानों को सिंचाई के लिये सौर ऊर्जा पम्प उपलब्ध कराए जाएंगे। उन्होंने बताया कि सौर ऊर्जा संयंत्र को ग्रिड से जोड़ा जाएगा जिससे उपयोग के बाद उत्पादित बिजली ग्रिड में जाएगी जिससे किसानों को आर्थिक रूप से लाभ हो सकेगा। वित्त मंत्री ने इस योजना के कार्यांवयन के लिए वर्ष 2025-26 के दौरान 447 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया है कि इस योजना से किसान अन्नदाता के साथ ही ऊर्जादाता भी बनेंगे। सौर ऊर्जा के मामले भारत में अनुकूल स्थितियां हैं। इसका मुख्य कारण यह भी है कि भारत के अधिकांश हिस्सों में साल में कम से कम नौ महीने सूर्य की पर्याप्त रोशनी मिलती है। इससे अच्छी मात्रा में बिजली का उत्पादन होता है। किसानों के खेतों में सिंचाई के लिए लगाए जा रहे सौर ऊर्जा संयंत्रों से बिजली का उत्पादन होगा जिससे उनकी बिजली की खपत पूरी हो सकेगी। साथ ही अतिरिक्त बिजली ग्रिड में जाने से अतिरिक्त आय भी होगी ।
केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम कुसुम) के तहत भी किसानों को सिंचाई के लिये सौर ऊर्जा पम्प मुहैया कराया जाता है। इस योजना का भी मुख्य उद्देश्य किसानों को सौर ऊर्जा पंप स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना है ताकि सौर ऊर्जा से उत्पादित बिजली का किसान सिंचाई के लिये उपयोग कर सके। इस योजना के तहत, सरकार किसानों को सौर ऊर्जा पंपों की स्थापना के लिए 90 प्रतिशत तक सब्सिडी प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, किसानों को अपनी अनुपयोगी पड़त भूमि पर सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के अवसर भी दिये जा रहे हैं जिससे वे अतिरिक्त ऊर्जा उत्पादन कर इसे राष्ट्रीय ग्रिड में जोड़ सकते हैं। इससे न केवल किसानों की ऊर्जा लागत कम होती है, बल्कि वे अतिरिक्त आय भी अर्जित कर सकते हैं।
भारत में किसानों को ‘अन्नदाता’ के रूप में देखा जाता रहा है क्योंकि वे खाद्यान्न की पूर्ति करने में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। कृषि का क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहा है, लेकिन समय के साथ किसान अपनी पारंपरिक भूमिकाओं से बाहर निकलकर नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। कभी प्राकृतिक आपदा तो कभी कृषि उपज की लागत से कम आय मिलने से किसानों को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। भारत में अधिकांश किसान छोटे या मझोले स्तर के हैं, जिनके पास पर्याप्त भूमि और संसाधन नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री कृषक मित्र सूर्य योजना और प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा और उत्थान महाभियान से सिंचाई के लिये बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित होने के साथ ही अतिरिक्त आय प्राप्त करने का साधन हो सकता है।
अब समय की आवश्यकता के साथ, किसानों को ‘ऊर्जादाता’ बनाने की दिशा में इन योजनाओं को किसान हितैषी के रूप में देखा जाना चाहिए। अन्नदाता के साथ ‘ऊर्जादाता’ बनने के प्रयासों का मूल उद्देश्य न केवल किसानों की आय में वृद्धि करना है बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी सतत विकास को बढ़ावा देना है। सौर ऊर्जा के साथ किसानों को कृषि के विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों जैसे- पुआल, छिलके, गन्ने के रेजे, और अन्य कृषि अवशेषों से भी ऊर्जा का उत्पादन के बारे में प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। किसान अपने खेतों से निकलने वाले बायोमास का इस्तेमाल ऊर्जा उत्पादन के लिए कर सकते हैं। इससे कृषि अवशेषों का निस्तारण तो होगा ही, ऊर्जा उत्पादन होने से बिजली पर होने वाले खर्च से बचत भी हो सकेगी। किसानों के लिए यह एक और तरीका है, जिसके माध्यम से वे अपनी आय बढ़ा सकते हैं और ऊर्जा के उत्पादन में भी योगदान दे सकते हैं। अब समय आ गया है कि किसान अन्नदाता के साथ अपनी भूमिका में बदलाव लाकर ‘ऊर्जादाता’ भी बनें। सरकार की पहल और योजनाओं के माध्यम से किसान ऊर्जा के उत्पादन में भी सक्रिय रूप से अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इससे न केवल उनकी आय में वृद्धि होगी, बल्कि वे पर्यावरण की रक्षा में भी महत्वपूर्ण भागीदारी निभा सकते हैं। इसलिए, यह कहना गलत नहीं होगा कि किसान अब ‘अन्नदाता’ के साथ-साथ ‘ऊर्जादाता’ भी बन सकेंगे। अब केंद्र और राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे इन योजनाओं के लिये पर्याप्त राशि मुहैया कराएं और इन योजनाओं से अधिकाधिक किसानों को लाभांवित करें ताकि न केवल कृषि के लिये बिजली की आवश्यकता की पूर्ति कृषि सौर ऊर्जा संयंत्रों से होगी बल्कि अतिरिक्त बिजली का उपयोग उद्योगों और घरेलु कार्यों में कर सकेंगे। इससे किसानों को अतिरिक्त आय का स्थायी साधन भी उपलब्ध हो सकेगा।
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