खरगोन के किसानों ने कपास में सघन पद्धति और मैकेनाइज्ड फार्मिंग से पाया अधिक उत्पादन
नाबार्ड द्वारा बनाए किसानों के एफपीओ ने किया नए युग में प्रवेश
17 जनवरी 2023, खरगोन: खरगोन के किसानों ने कपास में सघन पद्धति और मैकेनाइज्ड फार्मिंग से पाया अधिक उत्पादन – खरगोन की भूमि सिर्फ सफेद सोने की उर्वरा भूमि नहीं हैं। इस माटी से उपजे किसान हमेशा नवाचारों की नई जमीन तराश कर देते रहे हैं। इसी दिशा में खरगोन जिला मुख्यालय से मात्र 20 किमी. दूर बैजापुरा के किसानों ने ऐसे दो अनुपम और नायाब प्रयोग किये जो किसानों की माली हालत को बदलने में क्रांतिकारी प्रयोग हो सकते हैं। पहला एक ऐसी विधि जो अब तक गेंहू, सोयाबीन, सरसों आदि में बुवाई उपयोगी मानी जाती थी। लेकिन अब सघन बुवाई (एचडीपीएस उच्च घनत्व रोपण प्रणाली) का कपास बुवाई में उपयोग कर दोगुना उत्पादन लिया है। दूसरा-कपास के उत्पादन में 100 प्रतिशत मैकेनाइज्ड फार्म पद्धति का प्रयोग किया। ये दोनों हो प्रयोग अपने आप में नए भी है और सफल भी है। एक प्रयोग से किसानों को दोगुना उत्पादन प्राप्त हो सकता है। तो दूसरे से कपास की उपज बिना मजदूरों की भीड़ के भी लेना संभव कर दिखाया है। एफपीओ के डायरेक्टर श्री मोहन सिंह सिसौदिया की 2 वर्षों की मेहनत के बाद किसानों को एकजुट कर नाबार्ड के सहयोग से किसान उत्पादक समूह बनाया। 351 किसानों के फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी को दो वर्षों में ही सफलता दिलाई। समूह ने गेहूँ की विभिन्न किस्मों के बीजों से अच्छा मुनाफा लेने के बाद कपास की उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रयोग किये हैं।
सघन बुवाई से प्रति एकड़ में पाया 12 क्विंटल उत्पादन
एफपीओ के डायरेक्टर श्री सिसोदिया ने बताया कि विश्व के 40 कपास उत्पादक देशों में भारत में कपास का रकबा सबसे अधिक है लेकिन उत्पादन के मामले में हम सबसे पीछे हैं। जबकि जलवायु और भूमि के लिहाज से हम बेहतर है। इसके लिए विभिन्न स्तरों पर अध्ययन किया गया। फिर 27 किसानों के साथ 248 एकड़ रकबे में सघन बुवाई से कपास लगाया गया। यह विधि बीज बोने की है जबकि सामान्य विधि में हम कपास के बीज एक निश्चित दूरी पर चोपते (भूमि में निश्चित गहराई में लगाना) है। इसमें भले ही बीज अधिक लगता लेकिन उत्पादन लगभग दो गुना होता है। सघन पद्धति से हमें अधिकतम उत्पादन 12 क्विंटल प्रति एकड़ मिला। जबकि सामान्य विधि में अधिकतम उत्पादन 5 क्विंटल मिलता है। एफपीओ से जुड़े 27 किसानों ने इसी विधि से इस वर्ष की कपास की फसल ली है जिनका औसत उत्पादन 9 क्विंटन प्रति एकड़ है। गुजरात और महाराष्ट्र में सघन बुवाई से 35 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन लिया जा रहा है। इस विधि का प्रदेश में पहला प्रयास किया गया।
कपास उत्पादन में शत प्रतिशत मशीनों का किया उपयोग
नाबार्ड के डीडीएम श्री विजय पाटिल ने बताया कि प्रदेश में पहली कृषि में नवाचार करते हुए एफपीओ के किसानों के साथ मिलकर 100 प्रतिशत मैकेनाइज्ड फार्म से कपास लेने की योजना बनाई गई। इसमें कपास की बुवाई सघन बुवाई उच्च घनत्व रोपण प्रणाली से की गई। इसकी बुवाई सीडर से कर कीटनाशक छिड़काव भी स्प्रेयर के द्वारा किया गया। इसके बाद कपास चुनाई में कॉटन पिकर मशीन से की गई। इसके अलावा कल्टीवेशन भी मशीनों से किया गया। इसका प्रयोग 24 दिसम्बर 2022 को कसरावद में ब्रम्हणगांव के किसान महेंद्र चैनसिंह सिसौदिया के खेत पर डिमोन्सट्रेशन केवीके के वैज्ञानिकों, पूर्व कृषि राज्य मंत्री श्री बालकृष्ण पाटीदार और उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों की मौजूदगी में किया गया।
नाबार्ड की पहल से बना किसानों का एफपीओ
नाबार्ड के डीडीएम श्री विजेंद्र पाटिल ने बताया कि गोगांवा फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी के लिए वर्ष 2020 से 23 के लिए 11.16 लाख रुपये ग्रांट स्वीकृत हुए थे। सामान्य तौर पर किसी भी एफपीओ गठन के लिए 5 बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स, 5 प्रोमोटर्स और किसानों को जोंडने के लिए मोबिलाईजेशन राशि प्रदान की जाती हैं। इसके बाद कंपनीज़ एक्ट के तहत एफ़पीओ रजिस्ट्रेशन के लिए, विभिन्न लाइसेन्स जैसे बीज, उर्वरक, जीएसटी इत्यादि के लिए राशि दी जाती हैं। एफ़पीओ के लिए एक सीईओ नियुक्त किया जाता हैं।एफ़पीओ के एक सदस्य को नाबार्ड के लखनऊ स्थित बर्ड( बैंकर्स इंस्टिट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट) में एग्री एक्सपोर्ट के लिए प्रशिक्षण दिया गया। इस एफपीओ को एपीडा का इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट कोड और फार्म कनैक्ट पोर्टल से भी जोड़ा गया ताकि आगे चल कर एफ़पीओ स्वयं कृषि उत्पाद निर्यात कर सके। साथ ही, कंपनी का ऑडिट, लीगल कम्प्लायंस एवं बिजनेस प्लान के लिए भी राशि दी जाती हैं। जैसे जैसे एफ़पीओ की गतिविधि आगे बढ़ती हैं, वैसे नाबार्ड द्वारा स्वीकृत की गयी ग्रांट का भुगतान किश्तों में जाएगा।
महत्वपूर्ण खबर: कपास मंडी रेट (13 जनवरी 2023 के अनुसार)
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