राज्य कृषि समाचार (State News)

संभागायुक्त संजीव सिंह ने रायसेन में किसानों से भावांतर योजना पर की चर्चा, पंजीयन और पराली प्रबंधन पर जोर दिया

17 अक्टूबर 2025, भोपाल: संभागायुक्त संजीव सिंह ने रायसेन में किसानों से भावांतर योजना पर की चर्चा, पंजीयन और पराली प्रबंधन पर जोर दिया – संभागायुक्त संजीव सिंह ने गुरूवार को रायसेन जिले के गैरतगंज स्थित कृषि उपज मण्डी में किसानों के साथ भावांतर योजना के संबंध में चर्चा की गई। उन्होंने किसानों से संवाद करते हुए कहा कि किसानों को उनकी सोयाबीन फसल का न्यूतनम समर्थन मूल्य देने के लिए भावांतर योजना प्राथमिकता के साथ लागू की गई है। शासन की सर्वोच्च प्राथमिकता है कि कोई भी पात्र किसान इससे वंचित न रहे। इसके लिए पंजीयन कराना जरूरी है। इस दौरान कलेक्टर श्री अरूण कुमार विश्वकर्मा ने अवगत कराया कि जिले में अभी तक भावांतर योजना के तहत 7200 से अधिक किसानों द्वारा पंजीयन कराया गया है तथा रकबा 20202 हैक्टेयर है। संभागायुक्त की उपस्थिति में किसानों द्वारा ट्रॉलियों के पीछे रेडियम की पट्टी भी लगाई गई। उन्होंने सभी किसानों से आव्हान किया कि वह अपने ट्रेक्टर- ट्रॉलियों के पीछे रेडियम की पट्टी जरूर लगाएं, जिससे की रात्रि में दुर्घटना की संभावना न रहे।

कृषि अधिकारी तथा कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों से कहा कि जिन सोयाबीन उत्पादक किसानों ने अभी तक भावांतर योजना में पंजीयन नहीं कराया है वह 17 अक्टूबर तक अनिवार्य रूप से पंजीयन करा लें। भावांतर योजना के तहत किसान 24 अक्टूबर 2025 से 15 जनवरी 2026 तक मंडी में फसल बेच सकेंगे। किसानों को 15 दिवस में भावांतर की राशि उनके आधार लिंक बैंक खातों में सीधे अंतरित की जाएगी। कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सरसों की खेती को भी अपनाने के लिए प्रेरित किया। कृषि वैज्ञानिकों ने फसल के अवशेषों, पराली के उचित प्रबंधन के बारे में किसानों को जानकारी देते हुए कहा कि पराली जलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति नष्ट होने के साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान होता है। साथ ही कई बार गंभीर घटनाएं भी हो जाती है। किसान भाई पराली के उचित प्रबंधन हेतु हेप्पी सीडर, सुपर सीडर सहित अन्य उन्नत कृषि यंत्रों का उपयोग करें। इन कृषि यंत्रों के लिए शासन द्वारा अनुदान भी दिया जाता है। उन्होंने कहा कि धान की कटाई रीपर से ही की जाए।

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संभागायुक्त सिंह ने उर्वरकों के संतुलित उपयोग पर चर्चा करते हुए कहा कि खेती में डीएपी की जगह एनपीके का उपयोग करने की सलाह दी। एनपीके में पोटाश भी होता है, जो कि डीएपी में नहीं होता। संवाद के दौरान किसानों ने बताया कि इस बार उनके द्वारा नवाचार के रूप में अश्वगंधा की खेती शुरू की गई है। अभी अश्वगंधा विक्रय के लिए नीमच या अन्य जिलों में जाना पड़ता है। जिले में ही अश्वगंधा विक्रय के लिए बाजार उपलब्ध हो तो अन्य किसान भी इसकी खेती के लिए प्रेरित होंगे।

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