39 प्रतिशत तेल वाली देश की पहली कुसुम किस्म विकसित की
- (विशेष प्रतिनिधि)
10 मार्च 2022, इंदौर । 39 प्रतिशत तेल वाली देश की पहली कुसुम किस्म विकसित की – देश में लगातार पांचवी बार स्वच्छता में सिरमौर रहे इंदौर को अब कृषि क्षेत्र ने भी गर्वित किया है। कृषि महाविद्यालय इंदौर के वैज्ञानिकद्वय डॉ. एम. के. सक्सेना और डॉ. उषा सक्सेना ने अपने अनवरत अनुसंधान से कुसुम (सैफ फ्लॉवर) की ऐसी नई किस्म आरवीएसएएफ 18-1 ईज़ाद की है, जिसमें कुसुम की अन्य किस्मों की अपेक्षा तेल की मात्रा 39 प्रतिशत है, इस कारण यह देश की पहली सर्वाधिक तेल वाली किस्म बन गई है। सात अन्य किस्मों से प्रतिस्पर्धा कर इंदौर के कृषि वैज्ञानिकों ने पहला स्थान हासिल किया है। दूसरे स्थान पर शोलापुर (महाराष्ट्र) रहा, जिसकी कुसुम की किस्म में तेल 33 प्रतिशत था। आरवीएसएएफ 18-1 को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित भी कर दिया गया है। आगामी मई-जून से इसके बीज किसानों को उपलब्ध होने की सम्भावना है। इस मौके पर कृषक जगत ने प्रमुख अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक डॉ. एम.के. सक्सेना से बातचीत की।
अनुसंधान की अनवरत यात्रा
डॉ. सक्सेना ने कृषक जगत को विभागीय प्रक्षेत्र पर बताया कि 1984 में मप्र में कुसुम फसल का पदार्पण हुआ और जेएसएफ-1 किस्म आई। इसके बाद इस केंद्र पर कुसुम की किस्में 1990 में जेएसआई -7, 1997 में जेएसआई-73, 2004 में जेएसआई -97 और 99, 2019 में आरवीएसएएफ-14-1 पर और 2021 में आरवीएसएएफ 18-1 पर अनुसंधान किया गया। बीते इन वर्षों में इन किस्मों में काँटों की समस्या, बिना काँटों की किस्म की उत्पादकता कम होना, कहीं तेल का प्रतिशत घटने, तो कहीं परिपक्वता अवधि अधिक होने से फसल को पक्षियों द्वारा नुकसान पहुंचाने की किसानों की शिकायतों पर विचार और अनुसंधान होता रहा। इन 15 सालों में कई बार असफलताएं भी मिलीं, लेकिन अनुसंधान की यह यात्रा अनवरत जारी रही। 2005 से ही यह कसक थी कि ऐसी किस्म तैयार की जाए जिसमें तेल की मात्रा अधिक हो। मेरे इस अनुसंधान में कुलपति श्री एसके राव भी रूचि लेते रहे और यथा समय मार्गदर्शन देते रहे। अंतत: 2021 में यह सपना पूरा हुआ।
अच्छे अंकुरण के लिए यह करें
एग्रोनॉमिस्ट श्री ओपी गरोठिया ने बताया कि कुसुम के अच्छे अंकुरण के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी रखें। बोनी के समय जहाँ नमी कम है, तो बोनी के बाद अंकुरण होने पर पौधे को छान (थिनिंग) दें। नमी की कमी के कारण यदि अंकुरण में समय ज्यादा लगता है, तो एक हल्की सिंचाई कर दें। अंकुरण के 20 दिन के अंदर पौधों के ऊपर कोई कीट दिखाई दे या न दिखाई दे एफिड से संरक्षण के लिए कीटनाशक का एक छिडक़ाव ज़रूर करें। इससे एक माह तक फसल सुरक्षित रहेगी, पौधों की वृद्धि भी अच्छी होगी और समय से सब चीजें होंगी। डॉ. सक्सेना ने कहा कि पौधों को पशु को खिलाया जा सकता है, क्योंकि उसमें शुरू में कांटे नहीं होते और दूसरा यह कि यह आयरन का बड़ा स्रोत है। इसे पालक की तरह भाजी बनाकर भी खाया जा सकता है।
गुणकारी फूल
इसमें विटामिन बी-12, बी-1, बी-2, विटामिन-सी और विटामिन-ई उपलब्ध है। दानों के अलावा फूलों का भी उपयोग होने लगा। इसके सूखे लाल-पीले फूलों का उपयोग केसर के मिश्रण के अलावा महंगे रंग, लिपस्टिक और कॉस्मेटिक में भी किया जाता है। इसका तेल हृदय रोगियों के लिए बहुत लाभदायक है, क्योंकि इसमें असंतृप्त वसीय अम्ल है। इसके फूलों को गर्म पानी में डालकर 15-20 मिनट रखने पर जो अर्क बनता है उसे पीने से कमर दर्द, महिलाओं की समस्याओ, घटनों का दर्द आदि में बहुत लाभ होता है। पीले रंग में हल्दी के गुणधर्म होने से यह खून को पतला करता है।
आरवीएसएएफ 18-1 की विशेषताएं
डॉ. सक्सेना ने कहा कि कुसुम की इस किस्म में न्यूनतम तेल 39 प्रतिशत है। जो अन्य किस्मों से 9 प्रतिशत ज़्यादा है। यह भारत की ऐसी पहली किस्म है, जिसमें तेल का प्रतिशत सर्वाधिक है और उत्पादन भी अच्छा मिला। शाखाएं भी पर्याप्त हंै। रसीलापन कम है। किसान के लिए काटने की समस्या भी कम हो गई। यदि उत्पादन 18 क्विंटल/हेक्टेयर भी मिले तो भी लाभ इसलिए ज़्यादा है, क्योंकि तेल 9 प्रतिशत बढ़ गया है। नेल थम्ब विधि से नाख़ून से दाने को दबाने पर दाने के कटने /डेंट आने से पता लगा कि इसमें तेल ज़्यादा है। फिर चयन कर सिंगल प्लांट से पेडिग्री मैथड से यह वेरायटी बनाई है। अब इस केंद्र में कुसुम की 30 प्रतिशत से लेकर 39 प्रतिशत तेल वाली किस्में उपलब्ध हैं। 16 क्विंटल/हे. उपज में 39 प्रतिशत की दर से यदि तेल की गणना करें तो यह करीब 6 क्विंटल होता है। यदि इसे 5 क्विंटल भी मानें और 150 रु/ किलो की दर से जोड़ें तो यह 75000 रु तो तेल का ही हो गया। बाकी की बची खली 25000 रु की भी मानें तो किसान को एक हेक्टेयर में करीब एक लाख के आसपास मिल गया, जबकि उसने खेत में 12-14 किलो बीज डाला है। इसके एक किलो बीज से एक क्विंटल उत्पादन लिया जा सकता है। यह कम पानी में हो रही है। यदि पानी उपलब्ध है 55-60 दिन में एक पानी दे दें और अधिकतम दो पानी दे सकते हैं। जितना पानी देंगे, उससे उत्पादन में 25 प्रतिशत की वृद्धि होगी। यह अगेती रबी की फसल है जिसे सितंबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के प्रथम सप्ताह तक बोया जा सकता है।
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