मध्य प्रदेश में सरसों का आर्द्र-गलन रोग: एक व्यापक कृषि चुनौती
लेखक: प्रथम कुमार सिंह, स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर, आई.टी.एम. यूनीवर्सिटी, ग्वालियर, डॉ. प्रद्युम्न सिंह, वैज्ञानिक, बी. एम. कृषि महाविद्यालय, खण्डवा
26 सितम्बर 2024, भोपाल: मध्य प्रदेश में सरसों का आर्द्र-गलन रोग: एक व्यापक कृषि चुनौती – मध्य प्रदेश, भारत का एक प्रमुख कृषि राज्य, सरसों की खेती के लिए प्रसिद्ध है। सरसों यहाँ के किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है, जिसका उपयोग तेल उत्पादन के लिए किया जाता है। सरसों की खेती में कई रोग और कीट आते हैं, जिनमें आर्द्र-गलन रोग (Damping-Off) एक प्रमुख समस्या है। यह रोग सरसों की फसल की गुणवत्ता और उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इस लेख में, हम सरसों के आर्द्र-गलन रोग के कारण, लक्षण, प्रभाव, प्रबंधन और रोकथाम के उपायों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
आर्द्र-गलन रोग का परिचय
आर्द्र-गलन रोग (Damping-Off) एक फंगल रोग है जो मुख्यतः पीथियम (Pythium), फाइटोप्थोरा (Phytophthora), राइजोक्टोनिया (Rhizoctonia) और फ्यूजेरियम (Fusarium) नामक फंगस के कारण होता है। यह रोग सरसों की बीजलों और अंकुरों को प्रभावित करता है, जिससे वे गल जाते हैं और पौधों का विकास
रुक जाता है।
आर्द्र-गलन रोग के कारण
आर्द्र-गलन रोग के प्रमुख कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- फंगस का संक्रमण: पीथियम, फाइटोप्थोरा, राइजोक्टोनिया और फ्यूजेरियम फंगस के संक्रमण के कारण यह रोग होता है। ये फंगस मिट्टी, पानी और संक्रमित पौधों के अवशेषों के माध्यम से फैलते हैं।
- अनुकूल मौसम: गर्म और नम मौसम आर्द्र-गलन रोग के फैलाव के लिए अनुकूल होते हैं।
- अधिक नमी: मिट्टी में अधिक नमी और जल-जमाव होने से इस रोग का खतरा बढ़ जाता है।
- संक्रमित बीज: संक्रमित बीजों के उपयोग से भी यह रोग फैल सकता है।
- खराब जल निकासी: खेत में जल निकासी की खराब व्यवस्था होने से भी इस रोग का खतरा बढ़ जाता है।
आर्द्र-गलन रोग के लक्षण
आर्द्र-गलन रोग के लक्षण सरसों के पौधों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। मुख्य लक्षणों में शामिल हैं:
- बीजलों का गलना: बीजलों के गलने और सड़ने के कारण वे अंकुरित नहीं हो पाते।
- अंकुरों का मरना: अंकुरों का तना मिट्टी के पास से गलने लगता है और वे गिर जाते हैं।
- जड़ सड़न: पौधों की जड़ें गलने लगती हैं और उनका रंग भूरा या काला हो जाता है।
- पौधों का कमजोर विकास: रोग के कारण पौधों का विकास रुक जाता है और वे कमजोर हो जाते हैं।
- पत्तियों का पीला होना: पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाती हैं और उनमें वृद्धि नहीं होती।
आर्द्र-गलन रोग के प्रभाव
आर्द्र-गलन रोग का सरसों की फसल पर गंभीर प्रभाव पड़ता है:
- उत्पादन में कमी: आर्द्र-गलन रोग के कारण सरसों की फसल का उत्पादन कम हो जाता है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है।
- गुणवत्ता में कमी: रोगग्रस्त फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है, जिससे बाजार में उसकी कीमत कम हो जाती है।
- फसल की उम्र में कमी: यदि समय पर उपचार न किया जाए, तो फसल की उम्र भी कम हो जाती है और पौधे समय से पहले मर सकते हैं।
- लागत में वृद्धि: रोग प्रबंधन के लिए अधिक उर्वरक और कीटनाशकों की आवश्यकता होती है, जिससे खेती की लागत बढ़ जाती है।
आर्द्र-गलन रोग का प्रबंधन और रोकथाम
आर्द्र-गलन रोग के प्रबंधन और रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
- प्रतिरोधी किस्मों का चयन: सरसों की उन किस्मों का चयन करना चाहिए जो आर्द्र-गलन रोग के प्रति प्रतिरोधी हों।
- संतुलित उर्वरक उपयोग: संतुलित उर्वरक उपयोग करना चाहिए जिससे पौधों को सभी आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त हो सकें।
- फसल चक्रण: फसल चक्रण अपनाना चाहिए जिससे मिट्टी में रोगजनक जीवाणुओं का संचय न हो।
- सफाई और कीट नियंत्रण: खेत की सफाई और कीट नियंत्रण पर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि रोग फैलने से बचा जा सके।
- जैविक उपाय: जैविक उपायों का उपयोग करना चाहिए जैसे कि नीम का तेल, ट्राइकोडर्मा, और अन्य जैविक कवकनाशी।
- समय पर निगरानी: पौधों की समय पर निगरानी करनी चाहिए और रोग के शुरुआती लक्षणों का पता चलने पर त्वरित उपाय करने चाहिए।
- कार्बोक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% डी.एस 2 – 3 ग्राम प्रति किलो बीज में डाल कर बीज को उपचारित करें
- खड़ी फ़सल मे रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम12% + मेन्कौजेब 63% के मिश्रण का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में डाल कर छिड़काव करें। आवश्यकता पड़ने पर 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव को दोहराए। या फिर
- थियोफानेट मिथाइल 70% WP 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में डाल कर छिड़काव करें।
मध्य प्रदेश में आर्द्र-गलन रोग का प्रभाव
मध्य प्रदेश में आर्द्र-गलन रोग का प्रभाव विशेष रूप से किसानों और कृषि उत्पादन पर देखा जाता है। यहाँ के किसान अक्सर इस रोग से प्रभावित होते हैं, जिससे उनकी फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता में कमी आती है।
- आर्थिक प्रभाव: आर्द्र-गलन रोग के कारण किसानों को आर्थिक नुकसान होता है। उन्हें फसल से कम आमदनी प्राप्त होती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है।
- सरसों उद्योग पर प्रभाव: सरसों मध्य प्रदेश की एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। आर्द्र-गलन रोग के कारण सरसों की गुणवत्ता में कमी आने से उद्योग पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- किसानों की जीवनशैली: आर्द्र-गलन रोग से प्रभावित किसान आर्थिक तंगी और मानसिक तनाव का सामना करते हैं, जिससे उनकी जीवनशैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
सफलताओं और चुनौतियों का विश्लेषण
मध्य प्रदेश में आर्द्र-गलन रोग के प्रबंधन के लिए विभिन्न प्रयास किए गए हैं, जिनमें से कुछ सफल हुए हैं जबकि कुछ चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं।
- सरकारी पहल: सरकार ने किसानों को विभिन्न योजनाओं और सब्सिडी के माध्यम से सहायता प्रदान की है। उर्वरकों और कीटनाशकों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है।
- शोध और विकास: कृषि वैज्ञानिक और शोधकर्ता लगातार आर्द्र-गलन रोग के प्रबंधन के नए तरीकों की खोज में लगे हुए हैं। नई प्रतिरोधी किस्में विकसित की जा रही हैं।
- किसानों की भागीदारी: किसानों की भागीदारी और सहयोग से आर्द्र-गलन रोग के प्रबंधन में सुधार हुआ है। जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों को नवीनतम तकनीकों के बारे में जानकारी दी जा रही है।
आर्द्र-गलन रोग के स्थायी समाधान की दिशा में कदम
आर्द्र-गलन रोग के स्थायी समाधान के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- सतत कृषि पद्धतियाँ: सतत कृषि पद्धतियों को अपनाना चाहिए जिससे मिट्टी की स्वास्थ्य और पोषक तत्वों की उपलब्धता में सुधार हो सके।
- प्रतिरोधी किस्मों का विकास: प्रतिरोधी सरसों की किस्मों का विकास और प्रचार-प्रसार करना चाहिए जो आर्द्र-गलन रोग के प्रति सहनशील हों।
- किसानों की शिक्षा और प्रशिक्षण: किसानों को नियमित रूप से शिक्षा और प्रशिक्षण देना चाहिए ताकि वे नवीनतम तकनीकों और प्रबंधन उपायों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें।
- समुदाय आधारित प्रयास: समुदाय आधारित प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए जिसमें किसानों की भागीदारी हो और वे मिलकर आर्द्र-गलन रोग के प्रबंधन के लिए प्रयास करें।
निष्कर्ष
आर्द्र-गलन रोग मध्य प्रदेश में सरसों की खेती के लिए एक गंभीर चुनौती है। इसे प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। सरकार, वैज्ञानिक, शोधकर्ता और किसान मिलकर इस समस्या का समाधान खोज सकते हैं। जागरूकता, शिक्षा और नवीनतम तकनीकों के उपयोग से आर्द्र-गलन रोग को नियंत्रित किया जा सकता है और सरसों की फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। सतत कृषि पद्धतियों और प्रतिरोधी किस्मों के विकास से इस समस्या का स्थायी समाधान प्राप्त किया जा सकता है। आर्द्र- गलन रोग से निपटने के लिए सभी हितधारकों का सहयोग आवश्यक है, जिससे मध्य प्रदेश में सरसों की खेती को सुरक्षित और लाभप्रद बनाया जा सके।
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